भरतपुर. दुनिया भर में पक्षियों के स्वर्ग और उनके शीतकालीन प्रवास के रूप में पहचाना जाने वाला केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान पर्यटकों की भी खासी पसंद है. सर्दियों के मौसम में यहां 350 से ज्यादा प्रजाति के पक्षी प्रवास पर आते हैं. वहीं लाखों की संख्या में पर्यटक भी यहां पहुंचते हैं. आज हम केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की खासियत के साथ ही यह भी बताएंगे कि आप किस तरह से यहां पहुंच सकते हैं और कैसे उद्यान घूम सकते हैं.
ऐसे पहुंचे घना : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर शहर से गुजर रहे आगरा जयपुर हाईवे पर स्थित है. यह भरतपुर रोडवेज बस स्टैंड से 4.3 किलोमीटर, भरतपुर रेलवे स्टेशन से 5.5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. भरतपुर आने वाले पर्यटक आगरा, जयपुर या दिल्ली से बस, ट्रेन या फिर टैक्सी से आसानी से पहुंच सकते हैं. आगरा से घना की दूरी 55.4 किमी, दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से 199 किमी और जयपुर से 184 किमी दूरी है.
ऐसे घूमें घना : घना घूमने आने वाले पर्यटकों के लिए तीन श्रेणी में प्रवेश शुल्क रखा गया है. भारतीय पर्यटकों का प्रवेश शुल्क 136 रुपए, विद्यार्थी का 56 रुपए और विदेशी पर्यटक का प्रवेश शुल्क 851 रुपए निर्धारित किया गया है. पर्यटक घना घूमने के लिए साइकिल, ई-रिक्शा, तांगे का इस्तेमाल कर सकते हैं. साइकिल का किराया 150 रुपए प्रति व्यक्ति, ई-रिक्शा का किराया दो घंटे के 800 रुपए हैं. साथ में अनिवार्य रूप से नेचर गाइड भी लेना होगा, जिसका शुल्क दो घंटे का 800 रुपए निर्धारित है. तांगा का तीन घंटे का शुल्क 1200 रुपए है. घना के अंदर पर्यटक नौकायन का लुत्फ भी उठा सकते हैं. छोटी नौका (4 सीटर) का एक घंटे का शुल्क 300 रुपए और बड़ी नौका (8 सीटर) का एक घंटे का 600 रुपए है.
घना का इतिहास : 18वीं शताब्दी में भरतपुर राज्य के शासक महाराजा सूरजमल ने 3270 हेक्टेयर क्षेत्र में अजान बांध बनवाया. वर्ष 1850 से 1899 के दौरान गुजरात में मोर्वी रियासत के प्रशासक हरभामजी ने इस क्षेत्र में पानी के नियंत्रण के लिए नहरों और बांधों की प्रणाली शुरू की. 19वीं सदी के अंत में नहरें और बांध बनने के बाद इस क्षेत्र में ताजे पानी का दलदल बनना शुरू हुआ, जिससे यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आकर्षित होने लगे. भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन ने वर्ष 1902 में संगठित बत्तख आखेट स्थल के रूप में इसका औपचारिक रूप से उद्घाटन किया और वर्ष 1956 तक यह आखेट चलता रहा. घना वर्ष 1981 में एक उच्च स्तरीय संरक्षण दर्जा प्राप्त राष्ट्रीय पार्क के रूप में स्थापित हुआ. वर्ष 1985 में उद्यान को विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिया गया.
घना की जैव विविधता : घना अपने 2873 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला जैव विविधता का भंडार है. राजस्थान में पक्षियों की कुल 510 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से अकेले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में करीब 380 पक्षियों की प्रजातियां चिह्नित की जा चुकी हैं. राजस्थान में रेंगने वाले (सरीसृप) जीवों की करीब 40 प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें करीब 25 से 29 प्रजातियां घना में मौजूद हैं. राजस्थान में तितलियों की करीब 125 प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें से करीब 80 प्रजाति घना में मिलती हैं. वहीं, राजस्थान में मेंढक की 14 प्रजातियां हैं, जिनमें से 9 प्रजाति घना में हैं. इसी तरह राजस्थान में कछुओं की 10 प्रजातियों में से 8 प्रजाति घना में मिलती हैं.
ऐसे करें पक्षियों की पहचान : यूं तो एक आम पर्यटक के लिए पक्षियों को पहचानना आसान नहीं होता. यही वजह है कि घना में पर्यटकों को पक्षियों व जीव जंतुओं की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए नेचर गाइड की सुविधा उपलब्ध करा रखी है. साथ ही घना में जगह जगह पक्षियों के फोटो के साथ उनकी प्रमुख जानकारी के साथ छोटे छोटे बोर्ड लगा रखे हैं, जिनसे पक्षियों की पहचान हो सकती है.