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फर्रुखाबाद नीम करोली धाम; बिना टिकट मिलने पर बाबा को उतारा तो एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाई ट्रेन - SECRET OF BABA NEEM KAROLI

BABA NEEM KAROLI SECRET : देश-विदेश से भक्त पहुंचते हैं बाबा के धाम. नीम करोली बाबा से जुड़े हैं कई रोचक किस्से.

बाबा नीम करोली की मान्यता का राज़, देश-विदेश तक नीम करोली विख्यात.
फर्रुखाबाद - जब बाबा नीम करोली को कोच से उतार दिया था, एक इंच नहीं हिली थी ट्रेन, जानिए पूरी कहानी (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 25, 2024, 1:05 PM IST

फर्रुखाबाद : जिला मुख्यालय से करीब 30 से 35 किलोमीटर दूर नीम करोली धाम है. यह देश और दुनिया में विख्यात है. पूरे विश्व से भक्त बाबा के मंदिर में आते हैं. यहां उनकी मनोकामना पूर्ण होती है. मंगलवार और शनिवार को यहां पर भक्तों की भीड़ ज्यादा रहती है. जिला प्रशासन की ओर से भक्तों को कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं. नीम करोली बाबा से जुड़ी कई रोचक कहानियां हैं.

पुजारी ने बाबा के जीवन के बारे में बताया. (Video Credit; ETV Bharat)

हरी झंडी के बावजूद आगे नहीं बढ़ पाई ट्रेन : मंदिर के पुजारी त्यागी महराज ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि एक बार नीम करोली बाबा ट्रेन के फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सफर कर रहे थे. इस दौरान टिकट की चेकिंग होने लगी. इस दौरान बाबा के पास टिकट नहीं मिला. इस पर उन्हें ट्रेन से नीचे उतार दिया गया. रेलवे कर्मी ने ट्रेन को रवाना करने के लिए हरी झंडी भी दिखा दी, लेकिन ट्रेन एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पा रही है.

बाबा के ट्रेन में बैठते ही चलने लगी ट्रेन : पायलट ने कई कोशिश की लेकिन नाकाम रहा. इस दौरान एक मजिस्ट्रेट जो बाबा को पहले से जानता था, उसने अधिकारियों से बाबा से माफी मांगने के लिए कहा. यह भी कहा कि बाबा को सम्मानपूर्वक ट्रेन में बैठाएं. अधिकारियों ने मजिस्ट्रेट की बात मानी. बाबा को सम्मानपूर्वक ट्रेन में बैठाया. बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन चल पड़ी. तभी से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया.

दिनभर गुफा में रहते थे बाबा : मंदिर के पुजारी ने बताया कि संत बाबा नीम करोली का जन्म आगरा के ग्राम अकबरपुर में संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वह लक्ष्मीनारायण बाबा के नाम से जाने जाते थे. बाबा ने भ्रमण के लिए जनपद से प्रस्थान किया था. इसके बाद से वह फर्रुखाबाद में रहे. उनकी साधना में सुविधा हो, इसके लिए जमीन के नीचे एक गुफा बना दी गई. बाबा दिनभर गुफा में रहते हैं. इसके बाद रात्रि के अंधेरे में कब बाहर निकल जाते, किसी ने उन्हें नहीं देखा.

केवल एक धोती ही पहनते थे : मौजूदा समय में प्राकृतिक कारणों से वह गुफा नष्ट हो गई है. इसके बाद इस गुफा के निकट में ही एक दूसरी गुफा का निर्माण किया गया. इस गुफा की ऊपरी भूमि पर बाबा ने एक हनुमान मंदिर बनवाया. इसकी प्रतिष्ठा में उन्होंने 1 महीने का महायज्ञ किया था. इस अवसर पर उन्होंने अपनी जटाएं भी उतरवा दी और मात्र एक धोती धारण कर आधी धोती पहनते और आधी ओढ़ते थे. कुछ कारणों से 18 वर्ष रहने के उपरांत बाबा ने नीम करोली गांव को हमेशा के लिए त्याग कर इसके नाम को स्वयं धारण कर इसे विश्व विख्यात एवं अमर बना दिया.

राम भक्त हनुमान से मेल खाती हैं बाबा की लीलाएं : पुजारी बताया बाबा हनुमान के भक्त नहीं अवतार थे. उनकी लीलाएं हनुमान जी की लीलाओं से अधिक मेल खाती हैं. वे सदा हनुमान के रूप में ही पूजे गए. बाबा में भेद दृष्टि नहीं थी. वे स्वयं लोगों के घरों में जाकर अपनी आलौकिक शक्ति से उनका उद्धार करते थे. उन्होंने असंख्य लोगों की परवरिश कर उन्हें शिक्षा दिलाई और कितनों का विवाह करवाया. वे संतानहीनों को संतति सुख प्रदान करने का आशीर्वाद देते थे. बाबा रोगों से छुटकारा दिलाने और संकटों से बचाने में सिद्ध थे. इस प्रकार बाबा अपने व्यापक कार्यों में सदा लगे रहते थे. बाबा के लिए असंभव कुछ भी नहीं था.

यह भी पढ़े : अयोध्या से जनकपुर जाएगी राम बारात, 17 राज्यों के भक्त होंगे शामिल, तिरुपति के 40 पंडित कराएंगे विवाह

फर्रुखाबाद : जिला मुख्यालय से करीब 30 से 35 किलोमीटर दूर नीम करोली धाम है. यह देश और दुनिया में विख्यात है. पूरे विश्व से भक्त बाबा के मंदिर में आते हैं. यहां उनकी मनोकामना पूर्ण होती है. मंगलवार और शनिवार को यहां पर भक्तों की भीड़ ज्यादा रहती है. जिला प्रशासन की ओर से भक्तों को कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं. नीम करोली बाबा से जुड़ी कई रोचक कहानियां हैं.

पुजारी ने बाबा के जीवन के बारे में बताया. (Video Credit; ETV Bharat)

हरी झंडी के बावजूद आगे नहीं बढ़ पाई ट्रेन : मंदिर के पुजारी त्यागी महराज ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि एक बार नीम करोली बाबा ट्रेन के फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सफर कर रहे थे. इस दौरान टिकट की चेकिंग होने लगी. इस दौरान बाबा के पास टिकट नहीं मिला. इस पर उन्हें ट्रेन से नीचे उतार दिया गया. रेलवे कर्मी ने ट्रेन को रवाना करने के लिए हरी झंडी भी दिखा दी, लेकिन ट्रेन एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पा रही है.

बाबा के ट्रेन में बैठते ही चलने लगी ट्रेन : पायलट ने कई कोशिश की लेकिन नाकाम रहा. इस दौरान एक मजिस्ट्रेट जो बाबा को पहले से जानता था, उसने अधिकारियों से बाबा से माफी मांगने के लिए कहा. यह भी कहा कि बाबा को सम्मानपूर्वक ट्रेन में बैठाएं. अधिकारियों ने मजिस्ट्रेट की बात मानी. बाबा को सम्मानपूर्वक ट्रेन में बैठाया. बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन चल पड़ी. तभी से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया.

दिनभर गुफा में रहते थे बाबा : मंदिर के पुजारी ने बताया कि संत बाबा नीम करोली का जन्म आगरा के ग्राम अकबरपुर में संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वह लक्ष्मीनारायण बाबा के नाम से जाने जाते थे. बाबा ने भ्रमण के लिए जनपद से प्रस्थान किया था. इसके बाद से वह फर्रुखाबाद में रहे. उनकी साधना में सुविधा हो, इसके लिए जमीन के नीचे एक गुफा बना दी गई. बाबा दिनभर गुफा में रहते हैं. इसके बाद रात्रि के अंधेरे में कब बाहर निकल जाते, किसी ने उन्हें नहीं देखा.

केवल एक धोती ही पहनते थे : मौजूदा समय में प्राकृतिक कारणों से वह गुफा नष्ट हो गई है. इसके बाद इस गुफा के निकट में ही एक दूसरी गुफा का निर्माण किया गया. इस गुफा की ऊपरी भूमि पर बाबा ने एक हनुमान मंदिर बनवाया. इसकी प्रतिष्ठा में उन्होंने 1 महीने का महायज्ञ किया था. इस अवसर पर उन्होंने अपनी जटाएं भी उतरवा दी और मात्र एक धोती धारण कर आधी धोती पहनते और आधी ओढ़ते थे. कुछ कारणों से 18 वर्ष रहने के उपरांत बाबा ने नीम करोली गांव को हमेशा के लिए त्याग कर इसके नाम को स्वयं धारण कर इसे विश्व विख्यात एवं अमर बना दिया.

राम भक्त हनुमान से मेल खाती हैं बाबा की लीलाएं : पुजारी बताया बाबा हनुमान के भक्त नहीं अवतार थे. उनकी लीलाएं हनुमान जी की लीलाओं से अधिक मेल खाती हैं. वे सदा हनुमान के रूप में ही पूजे गए. बाबा में भेद दृष्टि नहीं थी. वे स्वयं लोगों के घरों में जाकर अपनी आलौकिक शक्ति से उनका उद्धार करते थे. उन्होंने असंख्य लोगों की परवरिश कर उन्हें शिक्षा दिलाई और कितनों का विवाह करवाया. वे संतानहीनों को संतति सुख प्रदान करने का आशीर्वाद देते थे. बाबा रोगों से छुटकारा दिलाने और संकटों से बचाने में सिद्ध थे. इस प्रकार बाबा अपने व्यापक कार्यों में सदा लगे रहते थे. बाबा के लिए असंभव कुछ भी नहीं था.

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