नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव में कहीं राष्ट्रीय मुद्दों की बात हो रही है तो कहीं क्षेत्रीय मुद्दों की. दिल्ली में लोकसभा चुनाव में अधिकतर इलाकों में स्थानीय मुद्दे हावी हैं. आज उत्तर पूर्वी लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली करावल नगर विधानसभा में ईटीवी भारत ने मतदाताओं से उनके इलाके के मुद्दे और समस्याएं जानने की कोशिश की. साथ ही उनसे पूछा कि 25 मई को वे किस मुद्दे को ध्यान में रखकर मतदान करेंगे.
श्रीराम कॉलोनी में रहने वाले अधिकतर लोगों ने स्थानीय समस्याओं साफ-सफाई, जल निकासी, टूटी सड़क, बेरोजगारी और अवैध कॉलोनी के नाम पर डीडीए द्वारा की जा रही वसूली को बड़ा मुद्दा बताया. यहां के रहने वाले वकील खान ने बताया कि पिछले 10 साल से यहां भाजपा के सांसद और 25 साल से भाजपा के विधायक हैं. मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में होने की वजह से किसी ने कोई काम नहीं कराया.
वकील खान ने कहा कि सफाई का काम निगम का है, लेकिन यहां स्थानीय निगम पार्षद आम आदमी पार्टी के हैं. उनसे भी साफ-सफाई को लेकर कई बार शिकायतें की गई हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती. इस इलाके में कोई पार्क भी नहीं है. जिसमें कभी बच्चे खेलने या बैठने चले जाएं. पार्क होने से बुजुर्गों को भी बैठने और समय पास करने के लिए एक जगह मिल जाती है.
स्थानीय निवासी वकील हसन ने बताया कि यहां पर किसी नेता ने आज तक विकास के नाम पर कुछ नहीं कराया. उन्होंने कहा कि यहां भाजपा के मनोज तिवारी सांसद हैं. हम लोग विशेष समुदाय से आते हैं तो हम ये कह सकते हैं कि हमने सांसद को वोट नहीं दिया है. लेकिन, हिंदू बहुल इलाकों में तो काम कराना चाहिए. लेकिन, उन इलाकों में भी काम नहीं हुआ है. सभी जगह गंदगी के अंबार हैं.
वकील हसन ने बताया कि यहां रोजगार की भी समस्या है. सरकार से लोगों को कोई मदद नहीं मिल रही है. यहां तक कि डीडीए ने मकान भी तोड़ दिया. जबकि मैं उत्तराखंड की सिल्क्यारा टनल से मजदूरों को निकालने वाली टीम में शामिल था. उस समय मुझे बहुत सराहा गया. लेकिन, तीन महीने बाद ही मेरा मकान तोड़ दिया गया. पूरे इलाके में सिर्फ मेरे अकेले का ही मकान तोड़ा गया. मकान टूटने के बाद मुझे एलजी और सांसद मनोज तिवारी ने मकान देने का वायदा भी किया. लेकिन, आज तक लौटकर कोई खबर नहीं ली. हम एक बार मनोज तिवारी के आवास पर भी गए लेकिन, कोई सुनवाई नहीं हुई.
वकील हसन ने बताया कि वो अभी छह हजार रुपये महीने किराए पर कमरा लेकर रह रहे हैं. अभी उनके पास कोई काम भी नहीं है. कॉलोनी की बसावट 40 साल से भी ज्यादा पुरानी है. लेकिन, अब भी अवैध कॉलोनी बताकर मकानों तोड़ने की धमकी देकर यहां से डीडीए के अधिकारी वसूली करते हैं. यहां की बड़ी समस्या है.
वहीं, शबाना हसन ने बताया कि ढंग का अस्पताल भी नहीं है. न ही कोई मोहल्ला क्लीनिक है. सिर्फ डिस्पेंसरी है, उसमें भी ढंग से मरीजों को देखा नहीं जाता है. मोहम्मद जान ने बताया कि बारिश में सड़कों के गड्ढों में पानी भर जाता है. यहां से निकलना भी मुश्किल हो जाता है. बेरोजगारी की समस्या बहुत बड़ी है. मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है.
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