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अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर जानिए दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरों का हाल? - International Labour Day 2024

देश भर में एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले मजदूर पहले जहां थे, आज भी वही है. यहां मजदूरों को प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है.

दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरों का हाल?
दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरों का हाल?
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : May 1, 2024, 4:39 PM IST

दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरों का हाल?

नई दिल्ली: हर साल एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मई दिवस, कामगार दिवस, श्रम दिवस और श्रमिक दिवस जैसे नामों से भी जाना जाता है. दुनियाभर में इस दिन को मनाने के पीछे एक बेहद खास उद्देश्य है. देश के अंदर काफी संख्या में मजदूर रहते हैं. राजधानी दिल्ली में विभिन्न राज्यों से लोग मजदूरी के लिए आते हैं. ऐसे में ईटीवी भारत ने दिल्ली के कोटला मुबारकपुर लेबर चौक पर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले मजदूरों से बातचीत की और उनके हालात के बारे में जाना.

पश्चिम बंगाल के रहने वाले राजीव मंडल ने बताया कि पिछले चार-पांच सालों से वह दिल्ली में रहकर मजदूरी का काम करते हैं. वह एक राज मिस्त्री है. वह अपने परिवार के साथ रहते हैं. उनका कहना है कि इस समय काम काफी मंदा है. वह हर रोज लेबर चौक पर आते हैं, लेकिन कभी-कभार ही काम मिलता है. जब कभी काम मिलता है तो दिहाड़ी मजदूरी 500 से 700 मिलते हैं. कभी कभार 800 मिलते हैं.

राजीव मंडल ने बताया कि कोरोना के समय वह घर चले गए थे. काफी नुकसान हुआ था. कुछ साथी तो वापस दिल्ली आ गए, लेकिन कुछ साथी ऐसे हैं जो गांव में ही रह गए. पश्चिम बंगाल में 500 मजदूरी मिलती है. दिल्ली में 700 से 800 मिल जाती है इसलिए दिल्ली आए हैं. इस समय काम धंधा काफी कम मिलता है. उन्होंने बताया कि बंगाल में राशन पानी तो मुफ्त में मिल जाता है. लेकिन वहां पर पैसा कम मिलता है.

वहीं, उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के रहने वाले कासिम ने बताया कि यूपी में रोजगार उतना नहीं है जितना होना चाहिए. पिछले कई सालों से दिल्ली में रह रहे हैं. चार-पांच हजार रुपए में कमरा मिल जाता है. उसमें चार-पांच लोग रहते हैं. फैमिली के लोग सभी गांव में रहते हैं. थोड़ी बहुत खेती है उसी से गुजारा होता है. अभी हम लोग काम की तलाश में दिल्ली आए हुए हैं. यहां पर महीने में 15 दिन तो कभी 20 दिन काम मिलता है, बाकी 10 दिन खाली रहते हैं.

मोहम्मद अलाउद्दीन ने बताया कि वह बिहार के रहने वाले हैं लेकिन दिल्ली में रहते हैं. यहां वह काम की तलाश में आए हैं. लेबर का काम करते हैं. रोज लेवर चौक पर आकर खड़े हो जाते हैं कभी काम मिलता है कभी नहीं मिलता है. इस समय काम में काफी मंदा है. गांव से यहां पर ठीक-ठाक काम मिल जाता है. गांव में 500 तिहाड़ी मजदूरी मिलती है तो यहां 700 से 800 मिलती है. उन्होंने बताया कि गांव में परिवार के लोग साथ रहते हैं, लेकिन वहां पर रोजगार नहीं है.

बता दें, यह किसी एक मजदूर का हाल नहीं है बल्कि दिल्ली के सभी मजदूरों का यही हाल है. मजदूरों ने बताया कि हर साल मजदूर दिवस मनाया जाता है. लेकिन, मजदूरों को लेकर प्रशासन और सरकार कभी कोई उनके हित में घोषणा नहीं करती है.

दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरों का हाल?

नई दिल्ली: हर साल एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मई दिवस, कामगार दिवस, श्रम दिवस और श्रमिक दिवस जैसे नामों से भी जाना जाता है. दुनियाभर में इस दिन को मनाने के पीछे एक बेहद खास उद्देश्य है. देश के अंदर काफी संख्या में मजदूर रहते हैं. राजधानी दिल्ली में विभिन्न राज्यों से लोग मजदूरी के लिए आते हैं. ऐसे में ईटीवी भारत ने दिल्ली के कोटला मुबारकपुर लेबर चौक पर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले मजदूरों से बातचीत की और उनके हालात के बारे में जाना.

पश्चिम बंगाल के रहने वाले राजीव मंडल ने बताया कि पिछले चार-पांच सालों से वह दिल्ली में रहकर मजदूरी का काम करते हैं. वह एक राज मिस्त्री है. वह अपने परिवार के साथ रहते हैं. उनका कहना है कि इस समय काम काफी मंदा है. वह हर रोज लेबर चौक पर आते हैं, लेकिन कभी-कभार ही काम मिलता है. जब कभी काम मिलता है तो दिहाड़ी मजदूरी 500 से 700 मिलते हैं. कभी कभार 800 मिलते हैं.

राजीव मंडल ने बताया कि कोरोना के समय वह घर चले गए थे. काफी नुकसान हुआ था. कुछ साथी तो वापस दिल्ली आ गए, लेकिन कुछ साथी ऐसे हैं जो गांव में ही रह गए. पश्चिम बंगाल में 500 मजदूरी मिलती है. दिल्ली में 700 से 800 मिल जाती है इसलिए दिल्ली आए हैं. इस समय काम धंधा काफी कम मिलता है. उन्होंने बताया कि बंगाल में राशन पानी तो मुफ्त में मिल जाता है. लेकिन वहां पर पैसा कम मिलता है.

वहीं, उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के रहने वाले कासिम ने बताया कि यूपी में रोजगार उतना नहीं है जितना होना चाहिए. पिछले कई सालों से दिल्ली में रह रहे हैं. चार-पांच हजार रुपए में कमरा मिल जाता है. उसमें चार-पांच लोग रहते हैं. फैमिली के लोग सभी गांव में रहते हैं. थोड़ी बहुत खेती है उसी से गुजारा होता है. अभी हम लोग काम की तलाश में दिल्ली आए हुए हैं. यहां पर महीने में 15 दिन तो कभी 20 दिन काम मिलता है, बाकी 10 दिन खाली रहते हैं.

मोहम्मद अलाउद्दीन ने बताया कि वह बिहार के रहने वाले हैं लेकिन दिल्ली में रहते हैं. यहां वह काम की तलाश में आए हैं. लेबर का काम करते हैं. रोज लेवर चौक पर आकर खड़े हो जाते हैं कभी काम मिलता है कभी नहीं मिलता है. इस समय काम में काफी मंदा है. गांव से यहां पर ठीक-ठाक काम मिल जाता है. गांव में 500 तिहाड़ी मजदूरी मिलती है तो यहां 700 से 800 मिलती है. उन्होंने बताया कि गांव में परिवार के लोग साथ रहते हैं, लेकिन वहां पर रोजगार नहीं है.

बता दें, यह किसी एक मजदूर का हाल नहीं है बल्कि दिल्ली के सभी मजदूरों का यही हाल है. मजदूरों ने बताया कि हर साल मजदूर दिवस मनाया जाता है. लेकिन, मजदूरों को लेकर प्रशासन और सरकार कभी कोई उनके हित में घोषणा नहीं करती है.

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