रांची: झारखंड की 14 लोकसभा सीटों पर जीत के लिए जोर अजमाईश चल रही है. भाजपा का दावा है कि एनडीए गठबंधन इसबार सभी 14 सीटों पर जीत हासिल करेगा. लेकिन हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद इंडिया गठबंधन भी इस बात को लेकर कॉन्फिडेंट है कि भाजपा का तिलिस्म टूटेगा और गठबंधन को सबसे ज्यादा सीटें मिलेंगी. चुनाव होने तक वोटरों को ऐसे दावे सुनने को मिलते रहेंगे. लेकिन सच तो यह है कि झारखंड में असली लड़ाई एसटी के लिए रिजर्व पांच सीटों को लेकर है. 2019 के चुनाव में राजमहल, दुमका, सिंहभूम, खूंटी और लोहरदगा में से राजमहल और सिंहभूम को छोड़कर शेष तीन सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी. ये ऐसी सीटें हैं जहां से चौंकाने वाले नतीजे सामने आते रहे हैं.
राजमहल (एसटी) सीट का समीकरण
साहिबगंज की राजमहल, बोरियो, बरहेट और पाकुड़ की लिट्टीपाड़ा, पाकुड़ और महेशपुर विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर बना है राजमहल लोकसभा सीट. राज्य बनने से पहले तक इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था. लेकिन झारखंड बनने के बाद 2004 से 2019 के बीच हुए चार चुनावों की बात करें तो 2004 में झामुमो के हेमलाल मुर्मू ने कांग्रेस के थॉमस हांसदा को महज 3 हजार वोट के अंतर से हराया था. इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सोम मरांडी ने भी जबरदस्त टक्कर दी थी. 2009 में इस सीट से भाजपा के देवीधन बेसरा ने जीत दर्ज की थी. हालांकि 2014 और 2019 में मोदी लहर के बावजूद यहां से झामुमो के विजय हांसदा विजयी रहे. इसबार भाजपा ने ताला मरांडी को प्रत्याशी बनाया है.
राजमहल सीट पर झामुमो के विजय हांसदा को 5,07,830 वोट तो भाजपा के हेमलाल मुर्मू को 4,08,688 वोट मिले थे. भाजपा ने राजमहल विधानसभा क्षेत्र में करीब 23 हजार वोट की बढ़त हासिल की थी. लेकिन में बोरियो में करीब 11 हजार, बरहेट में 13 हजार, लिट्टीपाड़ा में करीब 16 हजार, पाकुड़ में 59 हजार और महेशपुर में करीब 31 हजार वोट की कांग्रेस को बढ़त मिली थी.
दुमका (एसटी) सीट का समीकरण
दुमका लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें हैं. इनमें दुमका, शिकारीपाड़ा, नाला, जामा के अलावा जामताड़ा जिले का जामताड़ा और देवघर जिले का सारठ विधनसभा सीट शामिल है. झारखंड बनने के बाद से 2019 तक हुए चार चुनावों में लगातार तीन बार झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन सब पर हावी रहे. उन्होंने 2004 में भाजपा के सोनेलाल हेम्ब्रम को हराया. 2009 और 2014 में भाजपा के सुनील सोरेन को हराया लेकिन 2019 में शिबू सोरेन अपने ही शागिर्द रहे भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन से हार गये. इसबार शिबू सोरेन खराब स्वास्थ्य के कारण चुनाव लड़ने की स्थिति में भी नहीं है. चर्चा है कि जेल में रहते हुए हेमंत सोरेन या उनकी पत्नी कल्पना सोरेन अपने परंपरागत सीट को बचाने के लिए उतर सकते हैं.
दुमका में भाजपा को करीब 9 हजार 500, जामा से भाजपा को करीब 8 हजार से अधिक, सारठ में भाजपा को 20 हजार से अधिक, नाला में भाजपा को 30 हजार से अधिक, जामताड़ा में झामुमो को 20 हजार से अधिक और शिकारीपाड़ा में झामुमो को करीब 20 हजार अधिक वोट मिले थे.
सिंहभूम (एसटी) सीट का समीकरण
सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें हैं. इनमें से पांच पर झामुमो और एक पर कांग्रेस का कब्जा है. सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, जगनाथपुर, मनोहरपुर और चक्रधरपुर विधानसभा को कवर करता है. सरायकेला से झामुमो विधायक चंपाई सोरेन वर्तमान में मुख्यमंत्री भी हैं. सभी विधानसभा सीटें भी एसटी के लिए रिजर्व हैं. राज्य बनने के बाद 2004 से 2019 के बीच हुए चार चुनावों में कांग्रेस ने दो बार, भाजपा ने एक बार और निर्दलीय के रुप में मधु कोड़ा ने एक बार चुनाव जीता है.
2019 के चुनाव में यही एकमात्र सीट थी जिसपर गीता कोड़ा ने जीत दर्ज कर कांग्रेस का खाता खोला था. लेकिन इसबार गीता कोड़ा भाजपा की प्रत्याशी बन गई हैं. इससे सिंहभूम का पूरा समीकरण बिगड़ गया है. राज्य बनने के बाद 2004 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के बागुन सुम्ब्रई जीते थे. लेकिन 2009 तक राज्य की सत्ता में दबदबा बढ़ने से मधु कोड़ा निर्दलीय होने के बावजूद सांसद बन गये. उन्होंने भाजपा के बड़कुंअर गगराई को हरा दिया. हालांकि 2014 में मोदी लहर ने भाजपा के लक्ष्मण गिलुआ को जीत दिला दी लेकिन 2019 में मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ने लक्ष्मण गिलुआ से हार का बदला ले लिया. ' हो ' आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में कोड़ा परिवार का दबदबा रहा है. 2014 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान की 14 में से 12 विधानसभा सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी. लेकिन 2019 में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया. इस बार गीता कोड़ी की वजह से भाजपा को अपनी जमीन वापस लेने की आस जगी है.
खूंटी (एसटी) सीट की समीकरण
खूंटी लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें हैं. इनमें खरसांवा और तमाड़ सीट पर झामुमो, खूंटी और तोरपा सीट पर भाजपा की जीत हुई थी. जबकि सिमडेगा और कोलेबिरा सीट कांग्रेस के खाते में हैं. यह भाजपा की परंपरागत सीट रही है. यहां से 1989 से 1999 तक हुए पांच चुनावों में भाजपा के कड़िया मुंडा जीते थे. उन्हें 2004 में कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा ने हराया था. लेकिन 2009 और 2014 में फिर कड़िया मुंडा काबिज रहे.
हालांकि 2019 में कड़िया मुंडा की जगह भाजपा ने अर्जुन मुंडा को उतारा लेकिन वह कांग्रेस के कालीचरण मुंडा से महज 1,490 वोट के अंतर से जीते थे. उनकी जीत में तमाड़ और खरसांवा के लोगों ने निर्णायक भूमिका अदा की थी. इस बार फिर भाजपा ने अर्जुन मुंडा को खूंटी की कमान दी है. अर्जुन मुंडा की राह कैसी होगी यह इंडिया गठबंधन द्वारा प्रत्याशी के नाम की घोषणा के बाद पता चलेगा. चर्चा है कि अगर कालीचरण मुंडा को फिर उतारा गया तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है.
लोहरदगा (एसटी) सीट का समीकरण
लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं. इनमें मांडर में कांग्रेस, लोहरदगा में कांग्रेस, सिसई में झामुमो, गुमला में झामुमो और विशुनपुर में झामुमो का कब्जा है. इसके बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सुदर्शन भगत की जीत हुई थी. लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत ने जबरदस्त टक्कर दी थी. उनको भाजपा प्रत्याशी महज 10 हजार 363 वोट के अंतर से जीते थे.
2014 में मोदी लहर के बावजूद सुर्दर्शन भगत कांग्रेस प्रत्याशी रहे रामेश्वर उरांव से सिर्फ 6,489 वोट के अंतर से जीत पाए थे. 2009 के चुनाव में में ही भाजपा के सुदर्शन भगत ही जीते थे लेकिन उन्हें बतौर निर्दलीय चमरा लिंडा ने जबरदस्त टक्कर दी थी. इसबार भाजपा ने तीन बार से सांसद रहे सुदर्शन भगत की जगह समीर उरांव को प्रत्याशी बनाया है. इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता रहा है.
ये भी पढ़ें-