सहरसा : कहते हैं यूपीएससी की जब भी बात आती है, लोग बिहार का नाम लेने लगते हैं. यहां के होनहार बच्चे इतनी लगन से मेहनत करते हैं कि सफलता उनके कदमों को चूमती है. वैसे बिहार में कुछ गांव के लोगों ने अपना परचम लहराया तो उस गांव को ही लोग आईएएस-आईपीएस वाला गांव कहने लगे. एक ऐसा ही गांव का नाम है बनगांव.
IAS-IPS वाला गांव बनगांव : ऐसा कहा जाता है कि सहरसा जिला का यह गांव भारत में एक अलग ही स्थान रखता है. हो भी क्यों ना, जब गांव के एक साथ 17-18 IAS-IPS देश के विभिन्न हिस्सों कार्यरत हों, तो किसी का भी सिर गर्व से ऊंचा ही रहेगा. यहां के लोग भी खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. लोगों का कहना है कि इस मिट्टी में वह जूनून है कि बच्चे कुछ भी करने के लिए प्रेरित रहते हैं.
आजादी से पहले शिक्षा की अलख : इसी गांव में एक लक्ष्मेश्वर झा थे, जो 1922 में इंग्लिश में एमए किये. 1928 में पटना यूनिवर्सिटी से लॉ भी किये. वो शिक्षा के प्रति समर्पित रहे. अपना कैरियर हेडमास्टर से शुरु किये. फारबिसगंज, कुर्सेला में पदस्थापित रहे. इसके बाद गांव में 1939 में एक हाई स्कूल खोला. उस हाई स्कूल के कारण इस गांव में शिक्षा ने बहुत जोड़ पकड़ा. उस समय यहां लोग दूर-दूर से पढ़ने आते थे.
गांव के पहले IAS ने बताया कैसे कारवां आगे बढ़ा : बनगांव गांव के रहने वाले प्रथम आईएएस उदय शंकर झा उर्फ नारायण झा से ईटीवी भारत ने फोन पर बात की. उन्होंने कहा कि, ''मैं 1965 में मैट्रिक किया और पटना साइंस कॉलेज से फिजिक्स में MSC किया. साथ ही साइंस कॉलेज में एक साल लेक्चरर भी रहा. 1974 में यूपीएससी में पास किया. उसके बाद मैं रेलवे में चला गया. एक अशोक झा भी थे, जो इनकम टैक्स में चले गए. 1985 में रंजन खां आईएएस में आये, फिर 1991 में डॉ. सरोज झा आये, आलोक ठाकुर, राकेश मिश्रा आईपीएस में आये. इस तरह से सिलसिला चलता रहा. इसके बाद हर साल आईएएस-आईपीएस या विभिन ट्रेंड में लोग आते रहे.''
दो सालों से नहीं किया है कोई क्रैक : हालांकि पिछले दो सालों से इस गांव का कोई सदस्य यूपीएससी क्लीयर नहीं कर पाया है. वैसे गांव के लोग कहते हैं कि इसमें किसी की नजर वाली बात नहीं है. अब तो कई क्षेत्र हैं जिसमें बच्चे अपना नाम कमा रहे हैं. आईटी का क्षेत्र हो या स्टार्टअप का. इस गांव के होनहार इस ओर भी काफी आगे बढ़ रहे हैं.
''सफलता का पैमाना सिर्फ आईएएस-आईपीएस बनना तो नहीं है. अन्य क्षेत्रों मे बनगांव के लोग काम कर रहे हैं. कुछ युवा जल्द सफल होना चाहते हैं. इसलिए कई बार नौकरी में जल्द चले जा रहे हैं. मैं अपने पूर्व के अधिकारी गार्जियन से अनरोध करना चाहेंगे कि वो देखें कि आखिर यहां आईएएस-आईपीएस में कमीं क्यों हो रही है.''- संजय वत्स, ग्रामीण
अन्य क्षेत्र में भी गांव के लोग लहरा रहे परचम : ऐसा नहीं कि इस गांव के लोग सिर्फ यूपीएससी में ही नाम कमाया है. बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी अपना नाम रोशन किया है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ल्ड बैंक के अधिकारी के रूप में भी इस गांव के सदस्य काम कर रहे हैं. मेडिकल और व्यवसायिक क्षेत्र में भी अपना परचम लहरा रहे हैं.
लक्ष्मीनाथ गोंसाई की तपोभूमि : इस गांव की सबसे बड़ी खासियत है कि पिछले 200-300 सालों में जब से बाबा लक्ष्मीनाथ गोंसाई यहां रहने लगे, तबसे इस गांव का भला होने लगा. बाबा लक्ष्मीनाथ गोंसाई जी की यहां तपोभूमि थी. यहां पर उन्होंने तपस्या और लोगों की सेवा की. उनकी प्रेरणा से यहां समाज सुधार का काम पहले से शुरू हो गया. यहां बबुआ खां एक समाज सुधारक थे, जिन्होंने धर्म सभा की परंपरा चलाई. उसके बाद यहां शिक्षा पर काफी जोड़ दिया गया.
कैसे पड़ा नाम बनगांव : लोगों का कहना है कि यहां वन देवी का देवस्थल है. यहां बहुत जंगल हुआ करता था, जो देवना में स्थापित है. उसी वन देवी के नाम पर बनगांव का नाम दिया गया है. बनगांव में सभी समाज और जात के लोग रहते हैं, लेकिन इस गांव में ब्राह्मण समाज की संख्या सबसे ज्यादा है.
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