दुमकाः कहते हैं कुछ बेहतर कर दिखाने की इच्छा हो और इरादे बुलंद हो तो रास्ते निकल ही जाते हैं. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है दुमका की 21 वर्षीय लड़की दिव्या कुमारी ने, जो आदिम जनजाति पहाड़िया समाज से आती है. दिव्या की मां हार्डकोर नक्सली थी, जिसने कई नक्सली वारदात को अंजाम दिया. जब दिव्या ने होश संभाला तो मां को इस रास्ते पर चलता देख उसे काफी दुख हुआ. धीरे-धीरे उसने अपनी मां को समझा - बुझाकर कर आत्मसमर्पण करवाया. फिर सरकार के द्वारा संचालित आवासीय विद्यालय से मैट्रिक कर आज स्नातक की पढ़ाई कर रही है. सबसे खास बात यह है कि वह स्लम एरिया के बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रही है.
नक्सल प्रभावित और संसाधनविहीन दिव्या के इरादे हैं बुलंद
दरअसल दुमका जिले के नक्सल प्रभावित काठीकुंड प्रखंड के महुआगढ़ी गांव की रहने वाली दिव्या कुमारी आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय से आती है. उनके पिता का छोटे - मोटे किसान हैं. जब दिव्या बहुत छोटी थी उस वक्त ही उसके पिता और मां आपसी विवाद के बाद एक दूसरे से अलग हो गए. 2008 के बाद जब दुमका में नक्सली गतिविधियां तेज हुईं तो दिव्या की मां नक्सली दस्ते में शामिल हो गई. दुमका में होने वाले लगभग सभी नक्सली वारदात में वह शामिल रही. दिव्या बताती है कि उसने अपने गांव महुआगढ़ी गांव से कुछ ही दूर पर स्थित अपने ननिहाल कुंडापहाड़ी में बचपन बिताया. बाद में उसका नामांकन झारखंड सरकार के कल्याण विभाग द्वारा संचालित अनुसूचित जनजाति बालिका आवासीय विद्यालय, ग्राम - नकटी में हो गया, जहां से उसने मैट्रिक की परीक्षा पास की.
मां को नक्सली के रूप में देख होता था काफी दुख, दलदल से निकाला बाहर
इधर जब दिव्या बड़ी हुई और उसने यह जाना कि उसकी मां एक नक्सली है तो उसे काफी दुख होता. वह कहती है कि मां एमसीसी में शामिल थी और लोग उसे इस नजरिए से देखते थे तो काफी तकलीफ होता था. होश संभालने के बाद उसने ठान लिया की मां को इस दलदल से निकालेगी. उसने मां को समझाना शुरू किया, बताया कि यह रास्ता विनाश की ओर ले जाने वाला है. आखिरकार वर्ष 2019 में उसकी मां ने हथियार के साथ पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
मां को सही रास्ते पर लाने के बाद खुद को संवारने में जुटी दिव्या
मां को नक्सलवाद के दलदल से निकालने के बाद दिव्या अपना जीवन संवारने में जुड़ गई. मैट्रिक के बाद उसने इंटरमीडिएट दुमका के एसपी महिला महाविद्यालय से की. अभी वर्तमान में स्नातक की पढ़ाई दुमका के आदित्य नारायण महाविद्यालय से कर रही है. वह अर्थशास्त्र की छात्रा है और सेमेस्टर 4 में अध्ययनरत है.
स्लम एरिया के बच्चों को दे रही है शिक्षा
दुमका शहर में महाविद्यालय की पढ़ाई करने आई दिव्या को रहने के लिए कल्याण विभाग का छात्रावास तो मिल गया पर सामने एक बड़ी समस्या यह थी कि वह अपना राशन और पढ़ाई का खर्च कहां से निकाले. इसके लिए वह जिला प्रशासन से मिली. जिला प्रशासन ने उसे राह दिखाई. दुमका के कृषि बाजार प्रांगण में जो हाट परिसर है, वहां के मार्केटिंग सेक्रेट्री संजय कच्छप के द्वारा हाट परिसर में ही झुग्गी - झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए एक छोटा सा संध्याकालीन विद्यालय संचालित किया जा रहा है. जहां बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है. उसमें दिव्या को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई.
दिव्या का भी यह सपना है कि वह बड़ी होकर शिक्षक बने और समाज की सेवा करे. ऐसे में जब उसे गरीब बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी मिली और बताया गया कि उसके इसके एवज में राशन और पढ़ाई - लिखाई का खर्चा दिया जाएगा तो उसे लगा कि यह तो एक पंथ - दो काज है. अब अपनी भी आजीविका चलेगी, गरीब और जरूरतमंद बच्चों के बीच शिक्षा की ज्योति जलाएगी. साथ ही उसके भविष्य की जो सरकारी शिक्षक बनने की योजना है , उसकी तैयारी हो जाएगी. पिछले कुछ महीने से दिव्या काफी मन लगाकर बच्चों को पढ़ा रही है. इसमें से कई ऐसे बच्चे हैं जो पहले स्कूल भी नहीं गए, लेकिन दिव्या उन्हें पढ़ाया और मार्केटिंग सेक्रेट्री संजय कच्छप की मदद से उनका नामांकन सरकारी स्कूलों में कराया.
दिव्या कहती है कि इन बच्चों को पढ़ा कर मुझे काफी खुशी मिलती है. वह कहती है कि भविष्य में मुझे सरकारी विद्यालय की शिक्षक बनना है. मैं अपनी पोस्टिंग सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में लेना चाहूंगी, जहां शिक्षा का माहौल नहीं है, जहां बच्चे स्कूल जाना नहीं चाहते और न ही उनके माता - पिता को अपने बच्चों की पढ़ाई की चिंता है. वह कहती है कि वैसे बच्चों का जीवन संवार कर मुझे तसल्ली मिलेगी.
बच्चे और उनके अभिभावक हैं काफी खुश
दिव्या के द्वारा ऐसे बच्चों को पढ़ाया जा रहा है जिनके अभिभावक रिक्शा - ठेला चला कर या दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा कर अपनी आजीविका चलाते हैं. वे अपने बच्चों के शिक्षा के प्रति ज्यादा गंभीर नहीं है. दिव्या उन बच्चों को अपने विद्यालय तक लाकर उनका जीवन संभालने में लगी है. बच्चे कहते हैं कि दीदी काफी प्यार से पढ़ाती हैं. हमलोग जिस सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं, दीदी की पढ़ाई वहां भी काफी काम आता है. इधर बच्चों के अभिभावक कहते हैं कि अगर दिव्या हमारे बच्चों को नहीं पढ़ाती तो हमारे पास तो इतने रुपए भी नहीं थे कि हम ट्यूशन पढ़ पाते. यह हमारे बच्चों का जीवन संवार रही है. बच्चे और अभिभावक दोनों काफी खुश हैं.
क्या कहते हैं दुमका के मार्केटिंग सेक्रेट्री
दिव्या को नई दिशा देने में दुमका के मार्केटिंग सेक्रेट्री संजय कच्छप का भी बहुत बड़ा योगदान है. संजय कच्छप को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाइब्रेरी मैन का नाम दिया है और अपने मन की बात कार्यक्रम में उनका जिक्र भी किया है. उन्होंने झारखंड में अब तक 40 से अधिक लाइब्रेरी की स्थापना की है, जहां बच्चों को बिना फीस दिए पढ़ने का मौका मिल रहा है. दुमका के हाट परिसर में भी उन्होंने एक छोटा सा विद्यालय खोल रखा है. इसी में उन्होंने दिव्या को पढ़ाने का मौका दिया. दिव्या भी अपनी जिम्मेदारी पर खरी उतरी. संजय कच्छप बताते हैं कि दिव्या जब मुझसे मिली तो मैंने उसमें आगे बढ़ने की ललक दिखी. मैंने तो उसे रास्ता दिखाया है जिस पर वह काफी मेहनत के साथ आगे बढ़ रही है.
दृढ़ संकल्प से राह हो जाती है आसान
पहाड़िया समाज की दिव्या कुमारी के इस कहानी से यह पता चलता है कि अगर दृढ़ संकल्प को लेकर कुछ बेहतर करने की इच्छा हो तो राहें आसान हो जाती हैं.
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