ETV Bharat / state

छोटे सेंटर पर स्क्रीनिंग के लिए केजीएमयू ने तैयार किया फॉर्मूला, खून की जांच से पहले पता चलेगी बीमारी की गंभीरता - KGMU blood test formula - KGMU BLOOD TEST FORMULA

केजीएमयू ने खून की जांच के आधार पर ऐसा फॉर्मूला तैयार किया है, जिससे बायोप्सी के बीमारी की गंभीरता का पता लगाया जा सकता है.

Etv Bharat
KGMU BLOOD TEST FORMULA (Etv Bharat reporter)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 19, 2024, 9:16 AM IST


लखनऊ: लिवर सिरोसिस की पहचान के लिए बायोप्सी एकमात्र साधन है. इसी से उसकी गंभीरता का आकलन किया जा सकता है. अब केजीएमयू ने खून की जांच के आधार पर ऐसा फॉर्मूला तैयार किया है, जिससे बायोप्सी से पहले बीमारी की गंभीरता का पता लग जाएगा. इसकी सहायता से छोटे केंद्रों पर बीमारी की पहचान तथा स्क्रीनिंग दोनों काम हो सकेंगे.

केजीएमयू के गैस्ट्रो मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुमित रुंगटा ने बताया, कि शराब और अन्य वजह से लिवर सिरोसिस की समस्या होती है. यह एक स्थायी घाव है, जिससे लिवर को नुकसान पहुंचाता है और वह अपना काम सही से नहीं कर पाता है. लिवर सिरोसिस की वजह से आहार नली से लिवर तक खून पहुंचने में बाधा आती है. इससे पोर्टल हाइपरटेंशन की स्थिति पैदा होती है. इस स्थिति में नसों पर दबाव पड़ता है, उनमें रक्त स्त्राव हो जाता है. लिवर सिरोसिस के मरीजों में मौत का सबसे बड़ा कारण आहार नली की वाहिकाओं (एसोफेजियल वेरिसिस) में रक्तस्त्राव होना होता है.

इसलिए इंडोस्कोपी के माध्यम से बायोप्सी करके लिवर सिरोसिस की स्थिति का आकलन किया जाता है. समस्या यह है, कि हर सेंटर पर बायोप्सी की सुविधा नहीं है. साथ ही मरीजों के भारी दबाव के चलते सभी की जांच में काफी समय लगता है. इस अध्ययन में एक फॉर्मूला तैयार किया गया है. जिसमें, खून की जांच के माध्यम से मरीजों में लिवर सिरोसिस की स्थिति का आकलन किया जा सकता है. मरीजों की स्क्रीनिंग के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

इसे भी पढ़े-केजीएमयू में सैंपलों की जांच के दौरान 10 जूनियर रेजिडेंट की तबीयत बिगड़ी, जांच कमेटी पर उठे सवाल - KGMU Formalin Reaction

ऐसे बना फॉर्मूला: डॉ. सुषमा स्वराज ने बताया, कि एक बार लिवर सिरोसिस की पहचान होने के बाद छह माह तक उसकी मॉनीटरिंग करनी होती है. इसके आधार पर इलाज की दिशा तय होती है और खतरे का आकलन होता है. खून के कई मानकों का उपयोग लिवर की स्थिति देखने के लिए किया जाता है. इन्हीं में से एलेनिन एमिनोट्रांस्फरेज (एएलटी) एक टेस्ट है. मरीज के एएलटी को उसकी प्लेटलेट्स काउंट से भाग देकर एक वैल्यू निकाली जाती है. इस फॉर्मूले को एमिनोट्रांस्फरेज प्लेटलेट्स रेशियो इंडेक्स (एपीआरआई) कहा जाता है. यह रेशियो जितना ज्यादा होगा, मरीज के लिवर की स्थिति उतनी खराब होगी. इस आधार पर न सिर्फ मरीज की स्थिति का आकलन होता है, बल्कि उसे इलाज के लिए हायर सेंटर पर रेफर भी किया जा सकता है.

109 मरीजों पर अध्ययन के आधार पर तैयार हुआ फॉर्मूला: केजीएमयू के फिजियोलॉजी विभाग की एसआर डॉ. सुषमा स्वराज ने अपनी थीसिस में यह फॉर्मूला तैयार किया है. इसमें उनके साथ डॉ. सुमित रुंगटा, प्रो. नरसिंह वर्मा, डॉ. संदीप भट्टाचार्य और डॉ. श्रद्धा सिंह शामिल हैं. इसे जर्नल ऑफ फेमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में प्रकाशित करके मान्यता दी गई है. डॉ. सुषमा ने बताया, कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बढ़ती भीड़ और लिवर के बढ़ते मरीजों को देखते हुए इस अध्ययन की रूपरेखा तैयार की गई. इसमें 109 मरीजों को शामिल किया गया.

यह भी पढ़े-केजीएमयू में डीएनए व फिंगर प्रिंट लैब खुलेगी, दो घंटे में जारी करेगी रिपोर्ट - KGMU DNA And Fingerprint Lab


लखनऊ: लिवर सिरोसिस की पहचान के लिए बायोप्सी एकमात्र साधन है. इसी से उसकी गंभीरता का आकलन किया जा सकता है. अब केजीएमयू ने खून की जांच के आधार पर ऐसा फॉर्मूला तैयार किया है, जिससे बायोप्सी से पहले बीमारी की गंभीरता का पता लग जाएगा. इसकी सहायता से छोटे केंद्रों पर बीमारी की पहचान तथा स्क्रीनिंग दोनों काम हो सकेंगे.

केजीएमयू के गैस्ट्रो मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुमित रुंगटा ने बताया, कि शराब और अन्य वजह से लिवर सिरोसिस की समस्या होती है. यह एक स्थायी घाव है, जिससे लिवर को नुकसान पहुंचाता है और वह अपना काम सही से नहीं कर पाता है. लिवर सिरोसिस की वजह से आहार नली से लिवर तक खून पहुंचने में बाधा आती है. इससे पोर्टल हाइपरटेंशन की स्थिति पैदा होती है. इस स्थिति में नसों पर दबाव पड़ता है, उनमें रक्त स्त्राव हो जाता है. लिवर सिरोसिस के मरीजों में मौत का सबसे बड़ा कारण आहार नली की वाहिकाओं (एसोफेजियल वेरिसिस) में रक्तस्त्राव होना होता है.

इसलिए इंडोस्कोपी के माध्यम से बायोप्सी करके लिवर सिरोसिस की स्थिति का आकलन किया जाता है. समस्या यह है, कि हर सेंटर पर बायोप्सी की सुविधा नहीं है. साथ ही मरीजों के भारी दबाव के चलते सभी की जांच में काफी समय लगता है. इस अध्ययन में एक फॉर्मूला तैयार किया गया है. जिसमें, खून की जांच के माध्यम से मरीजों में लिवर सिरोसिस की स्थिति का आकलन किया जा सकता है. मरीजों की स्क्रीनिंग के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

इसे भी पढ़े-केजीएमयू में सैंपलों की जांच के दौरान 10 जूनियर रेजिडेंट की तबीयत बिगड़ी, जांच कमेटी पर उठे सवाल - KGMU Formalin Reaction

ऐसे बना फॉर्मूला: डॉ. सुषमा स्वराज ने बताया, कि एक बार लिवर सिरोसिस की पहचान होने के बाद छह माह तक उसकी मॉनीटरिंग करनी होती है. इसके आधार पर इलाज की दिशा तय होती है और खतरे का आकलन होता है. खून के कई मानकों का उपयोग लिवर की स्थिति देखने के लिए किया जाता है. इन्हीं में से एलेनिन एमिनोट्रांस्फरेज (एएलटी) एक टेस्ट है. मरीज के एएलटी को उसकी प्लेटलेट्स काउंट से भाग देकर एक वैल्यू निकाली जाती है. इस फॉर्मूले को एमिनोट्रांस्फरेज प्लेटलेट्स रेशियो इंडेक्स (एपीआरआई) कहा जाता है. यह रेशियो जितना ज्यादा होगा, मरीज के लिवर की स्थिति उतनी खराब होगी. इस आधार पर न सिर्फ मरीज की स्थिति का आकलन होता है, बल्कि उसे इलाज के लिए हायर सेंटर पर रेफर भी किया जा सकता है.

109 मरीजों पर अध्ययन के आधार पर तैयार हुआ फॉर्मूला: केजीएमयू के फिजियोलॉजी विभाग की एसआर डॉ. सुषमा स्वराज ने अपनी थीसिस में यह फॉर्मूला तैयार किया है. इसमें उनके साथ डॉ. सुमित रुंगटा, प्रो. नरसिंह वर्मा, डॉ. संदीप भट्टाचार्य और डॉ. श्रद्धा सिंह शामिल हैं. इसे जर्नल ऑफ फेमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में प्रकाशित करके मान्यता दी गई है. डॉ. सुषमा ने बताया, कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बढ़ती भीड़ और लिवर के बढ़ते मरीजों को देखते हुए इस अध्ययन की रूपरेखा तैयार की गई. इसमें 109 मरीजों को शामिल किया गया.

यह भी पढ़े-केजीएमयू में डीएनए व फिंगर प्रिंट लैब खुलेगी, दो घंटे में जारी करेगी रिपोर्ट - KGMU DNA And Fingerprint Lab

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.