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काजरी ने विकसित की मोठ की दो किस्में, बढ़ेगा उत्पादन, किसान होंगे मालामाल - two new varieties of moth - TWO NEW VARIETIES OF MOTH

जोधपुर के काजरी संस्थान ने राजस्थान में प्रमुखता से बोए जाने वाले मोठ की दो नई किस्मों का आविष्कार किया है. इन किस्मों से करीब 30 प्रतिशत तक उत्पादन ज्यादा होगा.

two new varieties of moth
काजरी ने विकसित की मोठ की दो किस्में (photo etv bharat jodhpur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 15, 2024, 6:32 AM IST

काजरी ने विकसित की मोठ की दो किस्में (photo etv bharat dungarpur)

जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के वैज्ञानिकों ने मोठ की दो नई किस्में इजाद की हैं. इन्हें भारत सरकार की केंद्रीय फसल किस्म विमोचन एवं अधिसूचना समिति ने मोठ उत्पादन के सभी क्षेत्रों के लिए अधिसूचित कर दिया है. करीब चार साल की अथक मेहनत और हर क्षेत्र में अलग अलग परीक्षण के बाद काजरी को यह सफलता मिली है. इन दोनों को किस्मों को मोठ-4 व मोठ-5 नाम दिया गया है. यह किसानों को मिलना शुरू हो गई है. खास बात यह है कि इन दोनों किस्मों के काम में लेने से किसान वर्तमान में प्रचलित मोठ के बीज की फसल से 25 से 30 फीसदी अधिक उत्पादन ले सकते हैं.

काजरी के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ रामअवतार शर्मा ने बताया कि मोठ की दोनों किस्में न्यूट्रिशियन ब्रिडिंग तकनीक से तैयार की गई हैं. इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता नियंत्रित की जा सकती है. इन किस्मों में 30 से 32 दिन में फूल आते हैं. 60 से 65 दिन में पक जाती है. अतिरिक्त पानी मिलने पर और पैदावार बढ़ जाती हैं. इसका पूरे देश में परीक्षण हुआ है. गुजरात और राजस्थान में हुए परीक्षण में 25 से तीस फीसदी उत्पादन बढ़ा है. काजरी की इस शोध परियोजना में अन्वेषक डॉ रामअवतार शर्मा के साथ सह अन्वेषक डॉ एचआर महला, डॉ खुशवंत चौधरी और डॉ केएस जादौन शामिल थे.

पढ़ें: काजरी का अनोखा प्रयोग, पॉली हाउस में बेल पर उगाए बिना बीज के बैंगन, किसानों को होगा फायदा

मौसम के उतार चढ़ाव सहन करने में सक्षम: डॉ रामअवतार शर्मा ने बताया कि दोनों किस्मों की फसल मौसम के उतार चढ़ाव को सहन करने में सक्षम हैं. इसका बीज हमने काजरी में उपलब्ध करवाया है. सामान्य मोठ के बीज से एक हैक्टेयर में पांच से छह क्विंटल उत्पादन होता है. मौसम बदलने पर इसमें कमी भी हो जाती है, जो घट कर तीन क्विंटल तक रह जाता है. नई दोनों किस्मों में छह से सात क्विंटल उत्पाद तो आएगा ही मौसम में परिवर्तन होने पर पर कमी नहीं होगी, यदि पानी अतिरिक्त मिल जाता है तो इसमें बढ़ोतरी हो जाएगी. यह दोनों किस्में पानी के साथ विशेष सकारात्मक संबंध रखती हैं, जैसे जैसे पानी बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे पैदावार बढ़ती जाती है.

98 प्रतिशत पैदावार राजस्थान में: मोठ की 98 प्रतिशत पैदावार राजस्थान में ही होती हैं. इसमें बीकानेर, चूरू, बाड़मेर व जोधपुर जिला शामिल है. मोठ का उपयोग वर्तमान में बाजार में बिकने वाले पैक सनेक्स, भुजिया सहित अन्य में होता है. इसके अलावा राजस्थान में घरों में मोठ का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. काजरी द्वारा विकसित दोनों किस्में जुलाई के प्रथम सप्ताह से अगस्त के प्रथम सप्ताह तक बोई जा सकती है. बुवाई के चालीस दिन बाद भी वर्षा होती है तो यह 60 से 65 दिनों में पक जाती है. अगर 50 से 55 दिन बाद बारिश होती है तो 80 दिन में पकती है, उपज में 25 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो जाती है.

काजरी ने विकसित की मोठ की दो किस्में (photo etv bharat dungarpur)

जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के वैज्ञानिकों ने मोठ की दो नई किस्में इजाद की हैं. इन्हें भारत सरकार की केंद्रीय फसल किस्म विमोचन एवं अधिसूचना समिति ने मोठ उत्पादन के सभी क्षेत्रों के लिए अधिसूचित कर दिया है. करीब चार साल की अथक मेहनत और हर क्षेत्र में अलग अलग परीक्षण के बाद काजरी को यह सफलता मिली है. इन दोनों को किस्मों को मोठ-4 व मोठ-5 नाम दिया गया है. यह किसानों को मिलना शुरू हो गई है. खास बात यह है कि इन दोनों किस्मों के काम में लेने से किसान वर्तमान में प्रचलित मोठ के बीज की फसल से 25 से 30 फीसदी अधिक उत्पादन ले सकते हैं.

काजरी के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ रामअवतार शर्मा ने बताया कि मोठ की दोनों किस्में न्यूट्रिशियन ब्रिडिंग तकनीक से तैयार की गई हैं. इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता नियंत्रित की जा सकती है. इन किस्मों में 30 से 32 दिन में फूल आते हैं. 60 से 65 दिन में पक जाती है. अतिरिक्त पानी मिलने पर और पैदावार बढ़ जाती हैं. इसका पूरे देश में परीक्षण हुआ है. गुजरात और राजस्थान में हुए परीक्षण में 25 से तीस फीसदी उत्पादन बढ़ा है. काजरी की इस शोध परियोजना में अन्वेषक डॉ रामअवतार शर्मा के साथ सह अन्वेषक डॉ एचआर महला, डॉ खुशवंत चौधरी और डॉ केएस जादौन शामिल थे.

पढ़ें: काजरी का अनोखा प्रयोग, पॉली हाउस में बेल पर उगाए बिना बीज के बैंगन, किसानों को होगा फायदा

मौसम के उतार चढ़ाव सहन करने में सक्षम: डॉ रामअवतार शर्मा ने बताया कि दोनों किस्मों की फसल मौसम के उतार चढ़ाव को सहन करने में सक्षम हैं. इसका बीज हमने काजरी में उपलब्ध करवाया है. सामान्य मोठ के बीज से एक हैक्टेयर में पांच से छह क्विंटल उत्पादन होता है. मौसम बदलने पर इसमें कमी भी हो जाती है, जो घट कर तीन क्विंटल तक रह जाता है. नई दोनों किस्मों में छह से सात क्विंटल उत्पाद तो आएगा ही मौसम में परिवर्तन होने पर पर कमी नहीं होगी, यदि पानी अतिरिक्त मिल जाता है तो इसमें बढ़ोतरी हो जाएगी. यह दोनों किस्में पानी के साथ विशेष सकारात्मक संबंध रखती हैं, जैसे जैसे पानी बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे पैदावार बढ़ती जाती है.

98 प्रतिशत पैदावार राजस्थान में: मोठ की 98 प्रतिशत पैदावार राजस्थान में ही होती हैं. इसमें बीकानेर, चूरू, बाड़मेर व जोधपुर जिला शामिल है. मोठ का उपयोग वर्तमान में बाजार में बिकने वाले पैक सनेक्स, भुजिया सहित अन्य में होता है. इसके अलावा राजस्थान में घरों में मोठ का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. काजरी द्वारा विकसित दोनों किस्में जुलाई के प्रथम सप्ताह से अगस्त के प्रथम सप्ताह तक बोई जा सकती है. बुवाई के चालीस दिन बाद भी वर्षा होती है तो यह 60 से 65 दिनों में पक जाती है. अगर 50 से 55 दिन बाद बारिश होती है तो 80 दिन में पकती है, उपज में 25 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो जाती है.

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