जैसलमेर. देश की पश्चिमी छोर पर बसे राजस्थान के सीमावर्ती जैसलमेर जिले में इन दिनों कर्रा रोग ने कहर बरपा रखा है. पशुपालन विभाग के पास फिलहाल इसका कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है. जिले के सांवता भैंसड़ा, बैतीणा लाला कराड़ा, नया कराड़ा, भोपा भीखसर, रासला मुलाना, चांधन लाठी और मेहराजोत क्षेत्र में कर्रा रोग का प्रकोप ज्यादा है. हालांकि, प्रत्येक गांव में गायों में यह रोग फैल चुका है. 2022 में लंपी बीमारी ने गायों पर कहर बरपाया था. वहीं, अब कर्रा रोग ने पशुपालकों की चिंता बढ़ा दी है. कर्रा रोग गायों में तेजी से फैल रहा है. गौ पालक कर्रा रोग को लेकर चिंतित है. आंखों से सामने गाय दम तोड़ रही है, लेकिन पंचायतें व पशुपालन विभाग भी ठोस इंतजाम नहीं कर रहे हैं.
जैसलमेर में कर्रा रोग तेजी से फैल रहा है. इसमें पशुपालन विभाग व पशुपालकों की लापरवाही भी सामने आई है. इस रोग से ग्रसित होकर गाये दम तोड़ रही है, लेकिन मृत गायों के शवों का निस्तारण सही तरीके से नहीं किया जा रहा है. लोग गायों के शवों को गांव के पास ही खुले में छोड़ रहे हैं. इससे दूसरी गाय शवों के अवशेष व हड्डियों को चाटती हैं, जिससे स्वस्थ गाय भी कर्रा रोग की चपेट में आ जाती है.
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गायों के शवों को गड्ढा खोद कर दफना देना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. इसको लेकर ग्राम पंचायतें व पशुपालन विभाग भी ठोस इंतजाम नहीं कर रहे हैं. वर्ष 2022 में जिले में लम्पी स्किन डिजीज बीमारी ने गायों पर जमकर कहर बरपाया था. सरकारी रिकॉर्ड में लम्पी से सिर्फ 982 गायों की मौत बताई गई थी, जबकि गौशालाओं सहित जिलेभर में करीब 5 हजार से अधिक गायों ने लम्पी बीमारी की चपेट में आकर काल का ग्रास बन गईं थीं. अब कर्रा रोग गायों में तेजी से फैल रहा है. गौ पालक कर्रा रोग को लेकर चिंतित हैं. आंखों के सामने गाय दम तोड़ रही है, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे हैं.
गायों में फैल रही इस बीमारी को लेकर पशुपालन विभाग के जॉइंट डायरेक्टर सुरेंद्र सिंह तंवर ने बताया कि यह इस बीमारी का बचाव ही उपचार है. गर्मियों के मौसम की शुरुआत के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में गायों के मृत पशुओं के अवशेष व हड्डियां आदि खाने से पशुओं में कर्रा रोग हो जाता है. दुधारु गायों के शरीर में फासफोरस एवं अन्य पोषक तत्वों की कमी के कारण ये पशु मृत पशुओं की हड्डियां खाना शुरू कर देते हैं. पशुपालक अपने दुधारु पशुओं को घर में बांध कर रखें. मृत पशुओं के शवों का निस्तारण वैज्ञानिक विधि से गड्डा खोद कर दफना कर करें. ग्राम पंचायत के सहयोग से गांव से 2-3 किमी की दूरी पर चार दीवारी बनाकर बंद बाड़े में मृत पशुओं के शवों को डालें.