नई दिल्ली: दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में तीन भाइयों को संगठित अपराध के आरोपों से बरी कर दिया है. विशेष न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा, "महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के तहत मामला दर्ज करने की अनुमति सक्षम प्राधिकारी द्वारा बिना उचित विचार-विमर्श के दी गई थी."
यह केस अगस्त 2013 में दिल्ली के सीलमपुर पुलिस स्टेशन में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के तहत दर्ज किया गया था. मामले में तीन भाइयों - मोहम्मद उमर उर्फ पाउ, कमालुद्दीन उर्फ कमाल, और मोहम्मद जमाल उर्फ रांझा के साथ उनके पिता मोहम्मद इकबाल गाजी पर भी आरोप लगाए गए थे. जिनमें से मोहम्मद इकबाल की मुकदमे के दौरान ही मौत हो गई.
दिल्ली पुलिस का आरोप था कि ये भाई एक संगठित अपराध सिंडिकेट चला रहे थे और उन पर अवैध संपत्ति अर्जित करने का आरोप भी था. पुलिस ने इस मामले में मकोका की धारा 3(2) और (4) के तहत मामला दर्ज किया था.
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अदालत का निर्णय: कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि इस मामले में MCOCA के तहत केस दर्ज करने की मंजूरी अपर्याप्त थी. न्यायाधीश ने कहा, "मुलजिमों के खिलाफ संगठित अपराध का आरोप सिद्ध करने के लिए अभियोजन पक्ष ने आवश्यक कानूनी सामग्री प्रदान नहीं की. शिक्षा और आधार के बिना केवल आरोप लगाने से इन आरोपों का निर्वहन नहीं हो सकता." न्यायाधीश प्रमाचला ने स्वीकारोक्ति बयान को भी खारिज करते हुए कहा कि इस तरह के बयानों का कोई मौलिक महत्व नहीं होता जब तक उनके पीछे कोई ठोस सबूत नहीं होते.
इनसानियत और न्याय: कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर साबित किया कि न्याय की प्रक्रिया में जांच प्रक्रिया की शुचिता और एक उचित सुनवाई महत्वपूर्ण है. इस मामले में आरोपियों ने 20 जून 2016 से लेकर अब तक लगभग 8 साल 4 महीने हिरासत में बिताए हैं.
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