लखनऊ : कारगिल के युद्ध में हमारी सेना ने अदम्य साहस का परिचय दिया और पाकिस्तान सेना को धूल चटाई. कारगिल की लड़ाई बिल्कुल भी आसान नहीं थी. दुश्मन पहाड़ों के ऊपर से लगातार अटैक कर रहा था, लेकिन जमीन से लेकर चोटी तक चढ़कर दुश्मन सेना को मिट्टी में मिला देने का जज्बा हमारे जवानों ने दिखाया. उनके पराक्रम से पाकिस्तानी सेना भाग खड़ी हुई और हमारे वीर जवानों ने कारगिल की जंग में फतह हासिल की. विश्व को बता दिया कि भारतीय सेना में कितनी क्षमता है. कारगिल की लड़ाई में कैसे सेना के जवानों ने जीत पाई इसकी कहानी हम सेना के पूर्व जवान की जुबानी सुनेंगे. पूर्व मेजर आशीष चतुर्वेदी से कारगिल युद्ध को लेकर ईटीवी भारत की खास बातचीत.
सवाल : आप युद्ध की वजह क्या मानते हैं. कैसे इसकी शुरुआत हुई?
जवाब : पाकिस्तान ने हमारे साथ कई लड़ाइयां लड़ीं और उनकी सेना समझ गई थी कि वह सीधे तौर पर हमारे साथ युद्ध करके जीत नहीं सकती तो उन्होंने एक प्लानिंग की. उन्होंने एक ऑपरेशन चलाया जिसका नाम था ऑपरेशन बदर. इसके तहत जब सर्दियों में जो कारगिल द्रास का क्षेत्र है वहां जो पोस्ट हैं वहां का टेंपरेचर माइनस 40 डिग्री तक चला जाता है और इसलिए वहां इंडियन आर्मी और पाकिस्तान की आर्मी के बीच अंडरस्टैंडिंग थी कि सर्दियों में दोनों सेनाएं अपनी-अपनी पोस्ट से पीछे हट जाती हैं, लेकिन पाकिस्तान सेना ने इसी का फायदा उठाया और जब इंडियन आर्मी ने पोस्ट खाली की तो हमारे देश की 130 पोस्ट जो कारगिल द्रास और मस्कोह वैली में आती हैं उन पर उन लोगों ने कब्जा कर लिया. यहीं से इस युद्ध की शुरुआत हुई थी.
सवाल : भारतीय सेना के सामने उस युद्ध में विकट परिस्थितियां थीं. हम जमीन पर थे और वह पहाड़ पर, तो फिर कैसे यह संभव हो पाया कि हमने यह जंग फतह की?
जवाब : परिस्थितियां बहुत ही विपरीत थीं. पहली बात तो पाकिस्तान की सेना और उनके साथ आतंकवादी संगठन थे, उनकी तैयारी महीनों से चल रही थी. उन्होंने अपनी जो तैयारी करनी थी उनके पास पर्याप्त समय था, लेकिन भारतीय सेना के ऊपर अचानक थोपी गई लड़ाई थी जिसका हमें अंदाजा नहीं था. एकदम से हमें पता चला. कारगिल की जो पहाड़ियां हैं उनमें पेड़, पौधे बिल्कुल नहीं थे. एकदम सपाट जैसे नंगे पहाड़ होते हैं. अगर कोई व्यक्ति ऊपर बैठा है तो 10 किलोमीटर तक वह अपनी आंख से देख सकता है कि कौन कहां से चलकर आ रहा है. वहां का तापमान और पहाड़ की ऊंचाई भी बड़ी समस्या थी. हाइट ज्यादा होती है तो ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता है. इतनी विपरीत परिस्थितियों में उनकी आर्टिलरी पीछे से बम बरसा रही थी. नीचे माइन फील्ड बिछी थी. जो ऊपर बैठा दुश्मन है वह पहाड़ों के अंदर अपने सुरक्षा कवच के साथ बैठा है. और वहां से वह आप पर गोलियां बरसा रहा है तो इतनी विपरीत परिस्थितियों में हमारी सेना को उसकी तरफ रुख करना था. फिर भी हिंदुस्तानी सेना के जज्बे और हिम्मत को सलाम है उसने ये कर दिखाया. 60 दिन तक यह युद्ध चला और भारतीय सेना ने विजय हासिल की. भारतीय सेना के लगभग 527 जवान कारगिल युद्ध में शहीद हुए, लेकिन पाकिस्तान के साढ़े तीन हजार से ज्यादा सैनिक इसमें मारे गए.
सवाल : इस युद्ध में भारतीय सेना के जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया. हम यूपी के जवानों की बात करें तो मनोज पांडेय ने शौर्य गाथा लिखी. योगेंद्र यादव ने अपने पराक्रम का एहसास कराया. जवानों के पराक्रम के बारे में भी बताइए.
जवाब : मैं कैप्टन मनोज पांडेय की बात करूं तो मेरी ही वे रेजिमेंट से आते हैं. हम दोनों 11 गोरखा राइफल्स से आते हैं. यहीं हमारा ट्रेनिंग सेंटर भी है. खास बात जो अटैक हुआ था वह एक बहुत ही अलग किस्म का अटैक था, इसलिए कि आम तौर पर हम जो अटैक करते हैं वह रात में करते हैं. लेकिन वन 11 ने जो अटैक किया था वह दिन में किया था. अब आप समझिए दिन के उजाले में अटैक करने की कोई सोच भी नहीं सकता. वहां पर पहाड़ ऐसे हैं कि 10-10 किलोमीटर दूर तक देखा जा सकता है. कोई कवर नहीं है. पूरा ऊपर से नीचे तक एकदम सपाट मैदान. आपको इतनी दूर से दुश्मन देख सकता था, लेकिन उस पर भी 11 जीआर ने जिस अटैक को कैप्टन मनोज पांडेय लीड कर रहे थे, उन्होंने दिन में वह अटैक किया और फतह हासिल की. यह अपने आप में भारतीय सेना के शौर्य, उसकी ट्रेनिंग, उसके जज्बे को जाहिर करती है.
सवाल : जीवित परमवीर चक्र हासिल करने वाले योगेंद्र यादव की शौर्य गाथा के बारे में भी बताइए.
जवाब : हमारी सेना के जवान योगेंद्र यादव के पराक्रम को कैसे भुलाया जा सकता है. उन्होंने तोलोलिंग की जो लड़ाई थी उसको कैप्चर करना था. इसके दो-तीन रास्ते थे उसमें से सबसे कठिन एक रास्ता 1000 फीट की सीधी चढ़ाई. पाकिस्तान की सेना इतनी निश्चिंत थी कि यहां से तो कोई आ ही नहीं सकता. उन लोगों ने अपनी जो तैयारी थी वह दूसरी तरफ पहाड़ की ओर कर रखी थी. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि यहां पर कोई आ भी सकता था. इस पर तो चढ़ना नामुमकिन है. वहां से ग्रेनेडियर की एक प्लाटून थी जिसमें योगेंद्र यादव थे. जब वह चढ़ रहे थे बमुश्किल 200 मीटर रह गए थे तब किसी पाकिस्तानी ने देखा और गोलियां बरसानी शुरू कर दीं, जिसमें योगेंद्र यादव को तीन गोलियां लगीं. तीन गोलियां लगने के बावजूद वह प्लाटून के साथ ऊपर चढ़े और उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों की जो पोस्ट वहां थी उनसे जंग की. उन सबको खत्म किया और उस पोस्ट को कैप्चर किया.
सवाल : आपकी नजर में कारगिल युद्ध से हमें क्या सीख मिली और आगे हमें किस तरह से तैयार रहना चाहिए?
जवाब : इस युद्ध में सीख यही थी कि बहुत से लोगों को ऐसा लगने लगा था कि अब कहीं युद्ध होंगे ही नहीं, क्योंकि हमारे पास भी न्यूक्लियर क्षमता है. पाकिस्तान के पास भी न्यूक्लियर क्षमता है और चीन के पास भी न्यूक्लियर क्षमता है. जब देश के बीच में न्यूक्लियर वार होगा ही नहीं तो ऐसा लोगों ने मान लिया था कि अब लड़ाई होगी ही नहीं. हमें ऐसा मानकर नहीं चलना चाहिए. पहली सीख यही है कि लड़ाई कभी भी हो सकती है. किसी भी तरीके से हो सकती है. जरूरी नहीं की फुल फ्लेज्ड वार हो. जैसे हमने देखा कि एक लिमिटेड कॉन्फ्लिक्ट कारगिल तक ही सीमित रहा. आतंकवाद हमारे लिए एक सबसे बड़ी लड़ाई है जो लगातार चल रही है. जो हम नॉर्थ ईस्ट में भी लड़ रहे हैं. हम कश्मीर में भी लड़ रहे हैं और कहीं-कहीं पंजाब में भी लड़ रहे हैं तो हमें उसके लिए भी तैयार रहना है, क्योंकि यह इतनी जल्दी खत्म होने वाली लड़ाई नहीं है. हमारा रिस्पांस कैसा हो, जब हमारे ऊपर अचानक युद्ध थोप जाए. हमारी कैपेबिलिटी अपनी आर्मी को कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक पहुंचाना. ट्रेन के माध्यम से, एयर इवेक्युएशन के माध्यम से. आर्मी के टैंक्स को वहां तक पहुंचाने, जो हमारे पास रिजर्व होता है उसको मेंटेन करके चलना जरूरी होता है. मैं सरकार से यही अपेक्षा करता हूं. और हर एक व्यक्ति जो देश की सुरक्षा को लेकर चिंतित है वह डिफेंस बजट को हमेशा बढ़ते देखना चाहता है, क्योंकि देश की सुरक्षा पर किया गया व्यय कभी भी व्यर्थ नहीं जा सकता. जब देश ही सुरक्षित नहीं तो आप चाहे कुछ भी बना लीजिए उसका कोई फायदा ही नहीं निकलेगा. आखिर वह किसके लिए होगा. देश की सुरक्षा सबसे इंपोर्टेंट है.
सवाल : आज की परिस्थितियों में ड्रोन हमले ज्यादा शुरू हो रहे हैं तो क्या आपको लगता है कि इस पर विशेष तौर पर काम होना चाहिए?
जवाब : वक्त के साथ-साथ टेक्नोलॉजी बहुत बदल रही है. एक जमाना था तीर कमान से लड़ाई होती थी. तलवार से लड़ाई होती थी. आज टेक्नोलॉजी ऐसी हो गई है कि आप यहां बटन दबाएंगे और सेटेलाइट के थ्रू मिसाइल एक हजार किलोमीटर दूर जाकर गिर रही है. व्यक्ति कहां बैठा है और कहां अटैक हो रहा है. यह सब टेक्नोलॉजी की वजह से ही संभव हो पा रहा है. सेटेलाइट से जमीन के नीचे की फोटो निकाल लेते हैं कि क्या चल रहा है तो बहुत ऐसी टेक्नोलॉजी आज आ गई है. आज लड़ाई सिर्फ शौर्य और जज्बे की नहीं रह गई है. आज टेक्नोलॉजी की लड़ाई होती जा रही है, क्योंकि वेपन सिस्टम इतना एडवांस होता जा रहा है. अब तो ऐसे एयरक्राफ्ट बन रहे हैं जिसमें पायलट की आवश्यकता ही नहीं होगी. रोबोट अब सोल्जर बन रहे हैं. ऐसी नई-नई टेक्नोलॉजी आ रही हैं जो आने वाले समय में हम देखेंगे. देश को उसके साथ चलना होगा. यह बदलता दौर है और आपको उसके साथ बदलना होगा.
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