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कपाल मोचन मेला : मिट्टी में दबे जरासंध के इस किले पर लोग बरसाते हैं पत्थर और जूते, जानिए सदियों से चली आ रही परंपरा का कारण - KAPAL MOCHAN MELA

यमुनानगर के कपाल मोचन मेला में महिलाओं की इज्जत लूटने वाले राजा जरासंध के किले पर श्रद्धालु पत्थर और जूते बरसाते हैं.

KAPAL MOCHAN MELA
यमुनानगर में जरासंध का किला (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Nov 15, 2024, 5:11 PM IST

यमुनानगर: जिले के बिलासपुर स्थित कपाल मोचन मेले में श्रद्धालु ना सिर्फ अपनी मन्नत पूरी करने के लिए आते हैं, बल्कि कपालमोचन मेले से करीब 5 किलोमीटर दूर संधाए गांव में राजा जरासंध के किले पर श्रद्धालु ईंट-पत्थर और जूते की बारिश भी करते हैं.

यमुनानगर का ऐतिहासिक मेला कपालमोचन में कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल लाखों लोग स्नान करने के लिए आते हैं. कपालमोचन से 5 किलोमीटर दूर गांव संधाए गांव में एक जगह ऐसी भी है, जहां जूतों का मेला लगता है. यानी सैकड़ों किलोमीटर दूर से श्रद्धालु यहां सिर्फ इस किलो को जूते मारने के लिए आते हैं. कपाल मोचन मेले में आने वाले ज्यादातर श्रद्धालु यहां जरूर आता है, और इस ध्वस्त और मिट्टी में दबे किले पर जूते मारता है. लोग एक दुर्जन राजा को उसके किए की सजा जूते मारकर देते हैं. वो राजा था महाभारत कालीन जरासंध, जिसका वध भीम ने किया था.

यमुनानगर में जरासंध का किला (Etv Bharat)

डोली को लूटता था जरासंध : किवंदती है कि राजा जरासंध के किले के आसपास जब भी किसी दुल्हन की डोली गुजरती थी तो वह डोली को लूट लेता था और एक रात दुल्हन को अपने पास रखता था. तब एक दुल्हन ने उसे श्राप दिया था कि इस किले पर ईंट पत्थर और जूते मारे जाएंगे. खास तौर पर इस मेले में पंजाब के लोग आते हैं और ये लोग यह कहते सुनाई देते हैं कि वो लोग राजा को उसके किए की सजा देने के लिए यहां पर पहुंचे हैं.

नवविवाहिता ने दिया था श्राप : गांव संधाए के इस किले को यह लोग राजा जरासंध का किला मानते हैं और राजा जरासंध के नाम पर ही इस गांव का नाम गांव संधाए पड़ा है. इन श्रद्धालुओं की माने तो राजा जरासंध ने ये किला अपनी ऐश परसती के लिए बनाया था. राजा नव विवाहित की डोली को लुटता और उसे अपने यहां ले आता. ऐसे ही एक दिन राजा एक नव विवाहिता को यहां ले आया. इस दौरान नव विवाहिता ने राजा से यहां से जाने की प्रार्थना भी की. किले से कुछ दूरी पर जाकर बाद में वह तालाब में कूद गई. मरने से पहले उसने राजा को श्राप दिया था कि उसका किला मिट्टी में तब्दील हो जाए. नव विवाहिता के सती होते ही राजा का किला मिट्टी में तब्दील हो गया और तभी से यह धारणा है कि जो भी कपालमोचन मेले में आता है वह इस किले पर जूते जरूर मारता है.

सालों से आज भी चली आ रही परंपरा : हालांकि ये बात हजारों साल पहले की है, लेकिन आज भी लोग इस किले पर जब पहुंचे हैं तो वो यही कहते हैं कि वह अधर्मी राजा को सजा देने के लिए यहां आए हैं. कहा जाता है कि बुरे काम का पूरा नतीजा मिलता है. इसकी बानगी आप साफ तौर पर यहां देख भी सकते हैं.

इसे भी पढ़ें : यमुनानगर के इस ब्रह्मा सरोवर पर भगवान शिव ब्रह्मा हत्या दोष से हुए थे मुक्त, कपाल मोचन मेले की जानें खासियत

यमुनानगर: जिले के बिलासपुर स्थित कपाल मोचन मेले में श्रद्धालु ना सिर्फ अपनी मन्नत पूरी करने के लिए आते हैं, बल्कि कपालमोचन मेले से करीब 5 किलोमीटर दूर संधाए गांव में राजा जरासंध के किले पर श्रद्धालु ईंट-पत्थर और जूते की बारिश भी करते हैं.

यमुनानगर का ऐतिहासिक मेला कपालमोचन में कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल लाखों लोग स्नान करने के लिए आते हैं. कपालमोचन से 5 किलोमीटर दूर गांव संधाए गांव में एक जगह ऐसी भी है, जहां जूतों का मेला लगता है. यानी सैकड़ों किलोमीटर दूर से श्रद्धालु यहां सिर्फ इस किलो को जूते मारने के लिए आते हैं. कपाल मोचन मेले में आने वाले ज्यादातर श्रद्धालु यहां जरूर आता है, और इस ध्वस्त और मिट्टी में दबे किले पर जूते मारता है. लोग एक दुर्जन राजा को उसके किए की सजा जूते मारकर देते हैं. वो राजा था महाभारत कालीन जरासंध, जिसका वध भीम ने किया था.

यमुनानगर में जरासंध का किला (Etv Bharat)

डोली को लूटता था जरासंध : किवंदती है कि राजा जरासंध के किले के आसपास जब भी किसी दुल्हन की डोली गुजरती थी तो वह डोली को लूट लेता था और एक रात दुल्हन को अपने पास रखता था. तब एक दुल्हन ने उसे श्राप दिया था कि इस किले पर ईंट पत्थर और जूते मारे जाएंगे. खास तौर पर इस मेले में पंजाब के लोग आते हैं और ये लोग यह कहते सुनाई देते हैं कि वो लोग राजा को उसके किए की सजा देने के लिए यहां पर पहुंचे हैं.

नवविवाहिता ने दिया था श्राप : गांव संधाए के इस किले को यह लोग राजा जरासंध का किला मानते हैं और राजा जरासंध के नाम पर ही इस गांव का नाम गांव संधाए पड़ा है. इन श्रद्धालुओं की माने तो राजा जरासंध ने ये किला अपनी ऐश परसती के लिए बनाया था. राजा नव विवाहित की डोली को लुटता और उसे अपने यहां ले आता. ऐसे ही एक दिन राजा एक नव विवाहिता को यहां ले आया. इस दौरान नव विवाहिता ने राजा से यहां से जाने की प्रार्थना भी की. किले से कुछ दूरी पर जाकर बाद में वह तालाब में कूद गई. मरने से पहले उसने राजा को श्राप दिया था कि उसका किला मिट्टी में तब्दील हो जाए. नव विवाहिता के सती होते ही राजा का किला मिट्टी में तब्दील हो गया और तभी से यह धारणा है कि जो भी कपालमोचन मेले में आता है वह इस किले पर जूते जरूर मारता है.

सालों से आज भी चली आ रही परंपरा : हालांकि ये बात हजारों साल पहले की है, लेकिन आज भी लोग इस किले पर जब पहुंचे हैं तो वो यही कहते हैं कि वह अधर्मी राजा को सजा देने के लिए यहां आए हैं. कहा जाता है कि बुरे काम का पूरा नतीजा मिलता है. इसकी बानगी आप साफ तौर पर यहां देख भी सकते हैं.

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