रामनगर: उत्तराखंड राज्य को बने 24 साल हो गए, लेकिन आज भी कुमाऊं और गढ़वाल को जोड़ने वाली कंडी सड़क का निर्माण नहीं हो पाया है. बात केवल कुमाऊं और गढ़वाल को जोड़ने की नहीं है, बल्कि देश के लिए सामरिक दृष्टि से भी कंडी मार्ग अहम है. सड़क निर्माण की कवायद हुई तो कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर इस पर रोक लगवा दी, लेकिन सरकार इस दिशा में कोई ठोस पैरवी नहीं कर पाई. लिहाजा, मामला लटका तो लटका ही रह गया. अब लोकसभा चुनाव सिर पर है तो इस कंडी मार्ग को लेकर सियासत भी तेज होने लगी है.
पहाड़ और मैदान के मानक तय करती थी कंडी सड़क: बता दें कि करीब दो सौ साल पुराने कंडी मार्ग को लोग 'सब माउंटेन रोड' के नाम से भी पुकारा करते थे. यह वही मार्ग है, जो अभिभाजित उत्तरप्रदेश के समय पहाड़ और मैदान के मानक तय करती थी. ब्रह्मदेव मंडी टनकपुर से लेकर कोटद्वार तक जाने वाली इस सड़क से नीचे की ओर तैनात अधिकारियों, कर्मचारियों को हिल अलाउंस का भत्ता नहीं दिया जाता था. जबकि, इस सड़क के ऊपर की ओर स्थापित कार्यालयों में तैनात कर्मचारियों को पर्वतीय भत्ता दिया जाता था.
उत्तराखंड राज्य बनने से पहले से ही कंडी सड़क मार्ग को शुरू करने की मांग की जाती रही है. राज्य बनने के बाद तो इस मांग ने जोर पकड़ा. कांग्रेस और बीजेपी की सरकारों ने इस मार्ग को बनाने में अपनी सहमति तो जताई, लेकिन इच्छा शक्ति किसी भी सरकारों की नहीं रही. आलम ये रहा है कि कांग्रेस हो बीजेपी दोनों ने इसे चुनाव में खूब भुनाया, लेकिन काम करने की बारी आई तो कोई फाइल को आगे नहीं बढ़ा पाया. नतीजन यह तब से लेकर अब तक चुनावी मुद्दा बना हुआ है.
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में आता है कंडी मार्ग का करीब 43 किलोमीटर का क्षेत्र: पहले इस मार्ग पर रामनगर से कोटद्वार तक एक बस चला करती थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद यह बस सेवा भी बंद है. बता दें कि कुमाऊं और गढ़वाल को जोड़ने वाले कंडी मार्ग का करीब 43 किलोमीटर का क्षेत्र कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के अंर्तगत आता है. इसे आम आदमी के लिए खोले जाने की अनुमति साल 1999 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने दे दी थी.
वन्यजीवों के जीवन पर संकट की दी गई दलील, सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला: राज्य गठन के बाद उत्तराखंड सरकार ने कॉर्बेट से गुजरने वाले 43 किलोमीटर मार्ग को ऑलवेदर रोड बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा, लेकिन इसकी भनक लगते ही एनजीओ से जुड़े लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया. उनकी दलील थी कि सड़क बन जाने से बाघों समेत अन्य वन्यजीवों के जीवन पर संकट आ जाएगा. ऐसे में मामाल अदालत में लटक गया, लेकिन सरकार इस पर कोई ठोस पैरवी नहीं कर पाई.
इन दिग्गजों के प्रयास भी हुए धराशायी: बात करें राजनेताओं की तो पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ साल 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मार्ग को बनाने की पहल की. इस बीच सर्वे भी किया गया. पौड़ी के सांसद तीरथ सिंह रावत, निवर्तमान राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी, पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत ने भरसक प्रयास जरूर किए, लेकिन उनके प्रयास भी धराशायी होते नजर आए.
सामरिक दृष्टि से इसलिए है महत्वपूर्ण: कोटद्वार के पास लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल रेजीमेंटल सेंटर यानी मुख्यालय है. जबकि, कुमाऊं में रानीखेत में कुमाऊं रेजीमेंट का मुख्यालय है. ऐसे में अगर चीन ने युद्ध की कभी हिमाकत दिखाई तो कुमाऊं और गढ़वाल की फौजें आसानी से जल्द चीन सीमा तक पहुंच जाएंगी. इस वजह से भी यह रोड काफी अहम है.
कंडी सड़क बनने से ये होंगे फायदे: अगर यह सड़क बन जाती है तो आवाजाही आसान हो जाएगी. क्योंकि, यह सड़क न बनने से रामनगर से कोटद्वार जाने के लिए उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद होकर जाना पड़ता है. जिससे 165 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है, जबकि इस मार्ग के बन जाने से यह दूरी महज 88 किलोमीटर की रह जाएगी. इस मार्ग से देहरादून भी कम समय में पहुंचा जा सकेगा. रामनगर-कोटद्वार के बीच व्यापार और पर्यटन भी बढ़ेगा. साथ ही कुमाऊं और गढ़वाल की सांस्कृतिक सभ्यता का भी आदान-प्रदान हो सकेगा.
क्या बोले सामाजिक कार्यकर्ता पीसी जोशी? कंडी मार्ग को हर हाल में बनाने का जुनून पाले सामाजिक कार्यकर्ता पीसी जोशी कहते हैं 200 साल से भी पुरानी कंडी सड़क को बनाने के लिए वो साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट गए. जहां से सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करने को कहा. इसके बाद साल 2010 में जब वो हाईकोर्ट गए तो कोर्ट ने इसे बनाने में सहमति जताकर आदेश जारी कर दिए. साल 2014 में वो फिर हाईकोर्ट गए तो उनके खिलाफ दो दर्जन से ज्यादा एनजीओ ने रिट दायर कर दी, तब मजबूरन उन्हें अपनी रिट वापस लेनी पड़ी गई.
अब फिर से एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर कर दी है. उनकी ओर से भी एक रिट लगा दी गई है. जिसकी जल्द सुनवाई होनी है. इससे पहले एक बस रामनगर से कंडी मार्ग के जरिए कोटद्वार के लिए चला करती थी. जिस पर कोर्ट के जरिए रोक लगा दी गई. अगर राज्य सरकार और केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में मजबूत तरीके से पैरवी करें तो जनता के हित से जुड़ी इस मांग को पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता.
"कंडी मार्ग को दोबारे खोले जाने को लेकर स्थानीय लोगों ने ज्ञापन सौंपा है. यह मामला अभी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है. इसमें हमारी ओर से एक एफिडेविट पेश किया जाना है. न्यायालय में उसे हमारे तरफ से पेश करने की कार्रवाई की जा रही है." -धीरज पांडे, निदेशक, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व