प्रयागराज: संगम नगरी इलाहाबाद में मां भगवती खुद पैदल चलकर भक्तों के पास जाती हैं. हाथ में खप्पर और गले में मुंडमाला पहने कलाकार काली की वेशभूषा पहन सड़कों पर नृत्य करते हुए निकला, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया. यहां सड़क पर रामायण के एक खास प्रसंग का स्वांग किया जाता है. इसे 'काली स्वांग' कहा जाता है. मंगलवार को मां काली के वेश में पात्र खुद सड़क पर निकला. उसके हाथ में भुजाली लहराती नजर आयी.
पूर्व डिप्टी मेयर अनामिका चौधरी ने कहा कि यह पूरा दृश्य रामायण के उस प्रसंग से जुड़ा है, जिसमें सुपनखा के कान और नाक काटने के बाद खरदूषण अपनी सेना लेकर राम से युद्ध करने के लिए पहुंचते हैं. इस कारण सीता माता खुद मां काली का वेश धारण कर राम के रथ के आगे-आगे चलती हैं और खरदूषण का वध कर देती हैं.
छह महीने पहले ही चुना जाता है पात्र शख्स: अनामिका चौधरी ने कहा कि इलाहाबाद में काली स्वांग की परंपरा करीब 200 साल पुरानी है. इस स्वांग की खास बात यह है कि जो व्यक्ति शख्स काली का पात्र बनता है, उसके पास कुछ विशेष योग्यताएं अवश्य होती हैं. पात्र को करीब छह महीने पहले ही चुन लिया जाता है. इसके बाद उसे स्वांग करने तक संयमित आचरण के साथ रहना होता है.
काली स्वांग के लिए दी जाती है ट्रेनिंग: उन्होंने कहा कि इस दौरान पात्र व्यक्ति को कई तरह की ट्रेनिंग भी दी जाती हैं. कड़ी मेहनत के बाद ही पात्र काली का वेश धारण करके सड़कों पर निकलता है और खुद को मां काली की छाया समझ कर ही लोगों से व्यवहार करता है.
200 सौ वर्ष पुरानी है परंपरा: कहा जाता है कि यह परंपरा 200 वर्ष पुरानी है और इस दिन का भक्त बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं. रात-रात भर जागकर काली मां के दर्शन करते हैं. काली मां खुद पैदल चलकर लोगों के पास जाती हैं और भक्तों को दर्शन देती हैं. यह नजारा कहीं और देखने को नहीं मिलता. उनके इस रूप के विदेशी भी कायल हैं.
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