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शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और 9 दिनों का महत्व - Navaratri 2024

SHARADIYA NAVRATRI 2024: आज से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. कलश स्थापना के साथ नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. आज पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होगी. यहां जानें शुभ अनुष्ठान के नियम, समय और नौ दिनों का महत्व..

SHARADIYA NAVRATRI 2024
शारदीय नवरात्रि (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 3, 2024, 7:50 AM IST

Updated : Oct 3, 2024, 7:57 AM IST

पटना: घटस्थापना, जिसे कलश स्थापना के रूप में भी जाना जाता है, जो शारदीय नवरात्रि की शुरुआत का प्रतीक है. इस साल यह आज गुरुवार यानी 3 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. इसी के साथ देवी शक्ति का आह्वान है और नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. नवरात्रि मां दुर्गा को समर्पित जीवंत और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे पूरे भारत में भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है, बिहार में भी नवारात्रि को लेकर लोगों में काफी उत्साह है.

नवरात्रि का प्रत्येक दिन है खास: यह नौ दिवसीय उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. जिस दौरान लाखों लोग मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं. 2024 में नवरात्रि गुरुवार, 3 अक्टूबर यानि आज से शुरू हो रही है और शनिवार 12 अक्टूबर को समाप्त होगी. नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी के एक विशेष रूप से जुड़ा होता है, जिसकी पूजा की जाती है.

आज के दिन मां शैलपुत्री को करें प्रसन्न: आज पहले दिन गुरुवार, 3 अक्टूबर को घटस्थापना के साथ मां शैलपुत्री की पूजा की जा रही है. जिसमें एक पवित्र बर्तन या कलश को स्थापित किया जाता है, जो देवी दुर्गा की उपस्थिति का प्रतीक है. भक्त मां दुर्गा के पहले रूप, देवी शैलपुत्री की पूजा करते हैं, जो शक्ति और ज्ञान की देवी हैं. वो पीला रंग खुशी और ऊर्जा का प्रतीक हैं.

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से होगा ये लाभ: आज दूसरे दिन शुक्रवार, 4 अक्टूबर को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. नवरात्रि का दूसरा दिन देवी ब्रह्मचारिणी को समर्पित है, जो प्रेम, भक्ति और शांति का रूप हैं. इस दिन चंद्र दर्शन किया जाता है, मां चंद्रमा के दर्शन का प्रतीक हैं, हरा रंग पहना जाता है, जो विकास और नवीनीकरण को दिखाता है.

बहादुरी और योद्धा भावना का प्रतीक हैं ये देवी: तीसरे दिन शनिवार, 5 अक्टूबर को भक्त देवी चंद्रघंटा की पूजा करते हैं, जो अपनी बहादुरी और योद्धा भावना के लिए जानी जाती हैं. इस दिन सिंदूर तृतीया अनुष्ठान भी किया जाता है, जो विवाहित महिलाओं की शक्ति का प्रतीक है.जीवन में संतुलन और शांति का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रे रंग इस दिन के लिए खास माना जाता है.

इस दिन होती है देवी कुष्मांडा की पूजा: चौथे दिन रविवार, 6 अक्टूबर को देवी कुष्मांडा की भी पूजा की जाती है. मां का प्रिय रंग नारंगी रंग है. इस दिन इस रंग के कपड़े पहने चाहिए. जो उत्साह और एनर्जी का प्रतीक है. इस दिन देवी की पूजा के दौरान उन्हें फलों का भोग लगाएं.

इस दिन करें स्कंदमाता की उपासना: पांचवे दिन सोमवार, 7 अक्टूबर, स्कंदमाता की उपासना की जाती है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता हैं इस लिए इन्हें ये नाम दिया गया है. भगवान स्कंद बालरूप में मां के गोद में विराजित हैं. माना जाता है कि वे अपने भक्तों के जीवन में खुशियां, सकारात्मकता और समृद्धि लाती हैं.

बुराई पर विजय की जीत है मां कात्यायनी: नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा के लिए समर्पित है. इस दिन का गहन आध्यात्मिक महत्व है. बुराई पर विजय पाने और अपने भक्तों को आशीर्वाद देने का अटल संकल्प देवी दुर्गा के इस उग्र और शक्तिशाली अवतार में सन्निहित है.

इस दिन होती है मां कालरात्रि की पूजा: सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है. जो मां दुर्गा का एक उग्र और शक्तिशाली रूप है, जिसकी पूजा नकारात्मकता को दूर करने और अंधकार को दूर करने के लिए की जाती है. भक्त गुलाबी रंग पहनते हैं, जो प्यार और स्नेह का प्रतीक है.

महागौरी पूजा का महत्व: आठवें दिन 10 अक्टूबर को महागौरी पूजा की पूजा होती है, जो अपनी पवित्रता और शांति के लिए जानी जाती हैं. अष्टमी और नवमी के संगम पर की जाने वाली संधि पूजा एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसके दौरान भक्त आशीर्वाद और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं. इस दिन आध्यात्मिकता और परिवर्तन का प्रतीक बैंगनी रंग पहना जाता है.

इस दिन होगी सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा: नवरात्रि के नौंवे दिन भक्त मां जगदंबा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा करते है. मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. मां सिद्धिदात्री देवी सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं. यह एक आध्यात्मिक त्योहार है जिसमें प्रार्थना, उपवास और भक्ति शामिल है.

अलग-अलग स्वरूप की पूजा का विधान: आचार्य रामशंकर दूबे बताते हैं कि प्रथम शैलपुत्री से लेकर नवमी तक माता के अलग-अलग स्वरूप की पूजा का विधान है. जो भक्त कलश स्थापना करते हैं, उनको विधि पूर्वक सभी 9 दिन माता की पूजा करनी चाहिए. मिट्टी पर जौ डालकर कलश स्थापना करें और माता को एक चौकी पर विराजमान करें. हिंदू धर्म के अनुसार हर शुभ कार्य से पहले गणपति की पूजा का विधान है. भगवान गणेश की पूजा के बाद पंच पल्लो की पूजा करें. साथ ही अपने इष्ट देवता को ध्यान धरें.

''प्रथम दिन प्रथम शैलपुत्री को समर्पित है. माता दुर्गा ने पार्वती स्वरूप रूप में हिमालय के घर जन्म लिया था. जिस वजह से देवी का नाम शैलपुत्री पड़ा. माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से धन ध्यान की वृद्धि, सुख शांति आती है.'' - रामशंकर दूबे, आचार्य

पढ़ें-नवरात्रि का पहला दिन : घटस्थापना के साथ मां शैलपुत्री की ऐसे की जाती है पूजा - NAVRATRI 1ST DAY

पटना: घटस्थापना, जिसे कलश स्थापना के रूप में भी जाना जाता है, जो शारदीय नवरात्रि की शुरुआत का प्रतीक है. इस साल यह आज गुरुवार यानी 3 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. इसी के साथ देवी शक्ति का आह्वान है और नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. नवरात्रि मां दुर्गा को समर्पित जीवंत और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे पूरे भारत में भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है, बिहार में भी नवारात्रि को लेकर लोगों में काफी उत्साह है.

नवरात्रि का प्रत्येक दिन है खास: यह नौ दिवसीय उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. जिस दौरान लाखों लोग मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं. 2024 में नवरात्रि गुरुवार, 3 अक्टूबर यानि आज से शुरू हो रही है और शनिवार 12 अक्टूबर को समाप्त होगी. नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी के एक विशेष रूप से जुड़ा होता है, जिसकी पूजा की जाती है.

आज के दिन मां शैलपुत्री को करें प्रसन्न: आज पहले दिन गुरुवार, 3 अक्टूबर को घटस्थापना के साथ मां शैलपुत्री की पूजा की जा रही है. जिसमें एक पवित्र बर्तन या कलश को स्थापित किया जाता है, जो देवी दुर्गा की उपस्थिति का प्रतीक है. भक्त मां दुर्गा के पहले रूप, देवी शैलपुत्री की पूजा करते हैं, जो शक्ति और ज्ञान की देवी हैं. वो पीला रंग खुशी और ऊर्जा का प्रतीक हैं.

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से होगा ये लाभ: आज दूसरे दिन शुक्रवार, 4 अक्टूबर को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. नवरात्रि का दूसरा दिन देवी ब्रह्मचारिणी को समर्पित है, जो प्रेम, भक्ति और शांति का रूप हैं. इस दिन चंद्र दर्शन किया जाता है, मां चंद्रमा के दर्शन का प्रतीक हैं, हरा रंग पहना जाता है, जो विकास और नवीनीकरण को दिखाता है.

बहादुरी और योद्धा भावना का प्रतीक हैं ये देवी: तीसरे दिन शनिवार, 5 अक्टूबर को भक्त देवी चंद्रघंटा की पूजा करते हैं, जो अपनी बहादुरी और योद्धा भावना के लिए जानी जाती हैं. इस दिन सिंदूर तृतीया अनुष्ठान भी किया जाता है, जो विवाहित महिलाओं की शक्ति का प्रतीक है.जीवन में संतुलन और शांति का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रे रंग इस दिन के लिए खास माना जाता है.

इस दिन होती है देवी कुष्मांडा की पूजा: चौथे दिन रविवार, 6 अक्टूबर को देवी कुष्मांडा की भी पूजा की जाती है. मां का प्रिय रंग नारंगी रंग है. इस दिन इस रंग के कपड़े पहने चाहिए. जो उत्साह और एनर्जी का प्रतीक है. इस दिन देवी की पूजा के दौरान उन्हें फलों का भोग लगाएं.

इस दिन करें स्कंदमाता की उपासना: पांचवे दिन सोमवार, 7 अक्टूबर, स्कंदमाता की उपासना की जाती है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता हैं इस लिए इन्हें ये नाम दिया गया है. भगवान स्कंद बालरूप में मां के गोद में विराजित हैं. माना जाता है कि वे अपने भक्तों के जीवन में खुशियां, सकारात्मकता और समृद्धि लाती हैं.

बुराई पर विजय की जीत है मां कात्यायनी: नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा के लिए समर्पित है. इस दिन का गहन आध्यात्मिक महत्व है. बुराई पर विजय पाने और अपने भक्तों को आशीर्वाद देने का अटल संकल्प देवी दुर्गा के इस उग्र और शक्तिशाली अवतार में सन्निहित है.

इस दिन होती है मां कालरात्रि की पूजा: सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है. जो मां दुर्गा का एक उग्र और शक्तिशाली रूप है, जिसकी पूजा नकारात्मकता को दूर करने और अंधकार को दूर करने के लिए की जाती है. भक्त गुलाबी रंग पहनते हैं, जो प्यार और स्नेह का प्रतीक है.

महागौरी पूजा का महत्व: आठवें दिन 10 अक्टूबर को महागौरी पूजा की पूजा होती है, जो अपनी पवित्रता और शांति के लिए जानी जाती हैं. अष्टमी और नवमी के संगम पर की जाने वाली संधि पूजा एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसके दौरान भक्त आशीर्वाद और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं. इस दिन आध्यात्मिकता और परिवर्तन का प्रतीक बैंगनी रंग पहना जाता है.

इस दिन होगी सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा: नवरात्रि के नौंवे दिन भक्त मां जगदंबा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा करते है. मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. मां सिद्धिदात्री देवी सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं. यह एक आध्यात्मिक त्योहार है जिसमें प्रार्थना, उपवास और भक्ति शामिल है.

अलग-अलग स्वरूप की पूजा का विधान: आचार्य रामशंकर दूबे बताते हैं कि प्रथम शैलपुत्री से लेकर नवमी तक माता के अलग-अलग स्वरूप की पूजा का विधान है. जो भक्त कलश स्थापना करते हैं, उनको विधि पूर्वक सभी 9 दिन माता की पूजा करनी चाहिए. मिट्टी पर जौ डालकर कलश स्थापना करें और माता को एक चौकी पर विराजमान करें. हिंदू धर्म के अनुसार हर शुभ कार्य से पहले गणपति की पूजा का विधान है. भगवान गणेश की पूजा के बाद पंच पल्लो की पूजा करें. साथ ही अपने इष्ट देवता को ध्यान धरें.

''प्रथम दिन प्रथम शैलपुत्री को समर्पित है. माता दुर्गा ने पार्वती स्वरूप रूप में हिमालय के घर जन्म लिया था. जिस वजह से देवी का नाम शैलपुत्री पड़ा. माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से धन ध्यान की वृद्धि, सुख शांति आती है.'' - रामशंकर दूबे, आचार्य

पढ़ें-नवरात्रि का पहला दिन : घटस्थापना के साथ मां शैलपुत्री की ऐसे की जाती है पूजा - NAVRATRI 1ST DAY

Last Updated : Oct 3, 2024, 7:57 AM IST
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