गोरखपुर : चंबल संग्रहालय पंचनद की तरफ से ‘काकोरी ट्रेन एक्शन शताब्दी समारोह’ पर देश का पहला दो दिवसीय आयोजन गुरुवार से गोरखपुर में शुरू हुआ. इसमें काकोरी केस के नायकों से संबधित पत्रों, डायरी, टेलीग्राम, स्मृति चिन्ह, समाचार पत्र, पत्रिकाएं, पुस्तकों, तस्वीरों, मुकदमों की फाइल आदि की प्रदर्शनी पहली बार सार्वजनिक तौर पर लगाई गई. कार्यक्रम में शामिल शहीदों के वंशजों ने क्रातिकारियों से जुड़ी घटनाओं को साझा किया. इसके अलावा अपनी 15 मांगों का प्रस्ताव भी सरकार को भेजा.
शताब्दी समारोह में किस्सागोई, नाटक, क्रांति मार्च, क्विज, रंगोली, पेंटिग और भाषण प्रतियोगिता के साथ-साथ विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए. इस आयोजन का उद्देश्य लोगों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के गौरवशाली इतिहास से अवगत कराना रहा है. बच्चों समेत शहर के तमाम लोगों ने कार्यक्रम में उत्साह के साथ हिस्सा लिया.
पूरे साल विभिन्न शहरों में होंगे कार्यक्रम, लखनऊ में होगा समापन : ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए महुआ डाबर एक्शन के महानायक पिरई खां के वंशज व प्रसिद्ध दस्तावेजी लेखक डॉ. शाह आलम राना ने कहा कि गोरखपुर आयोजन के बाद, चंबल म्यूजियम काकोरी केस के नायकों से जुड़े अन्य स्थलों फैजाबाद, गोंडा, शाहजहांपुर, बरेली, फर्रूखाबाद, कानपुर, सुल्तानपुर, इलाहाबाद, बनारस, औरैया, मुरैना, मेरठ में समारोह आयोजित करने के बाद, 7-8 अगस्त 2025 को लखनऊ में इसका भव्य और ऐतिहासिक समापन होगा.
8 अगस्त को थी प्लानिंग, 9 अगस्त को हुई थी घटना : गोरखपुर से इसके आयोजन की शुरुआत करने के पीछे उद्देश्य यह था कि काकोरी ट्रेन डकैती को 8 अगस्त को अंजाम देने के लिए यहां से क्रांतिवीर निकले थे, लेकिन किसी कारण बस नहीं पहुंच सके और 9 अगस्त को उन्होंने अपने मिशन को कामयाब बनाया. समारोह का शुभारंभ करने के बाद शहीद मणीन्द्रनाथ बनर्जी के पोते गौतम कुमार बनर्जी ने बताया कि उनके आठ दादाजी थे. वे सभी क्रांतिकारी थे.
डीएसपी को गोली मारते समय क्रांतिकारी ने कही थे ये बात : काकोरी एक्शन से जुड़े राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी दिलाने वाले डीएसपी जितेंद्र बनर्जी को उनके दादा मणीन्द्रनाथ बनर्जी ने गोली मारकर बदला लिया था. इसके लिए उन्हें 10 साल जेल की सजा हुई थी. उन्होंने बताया कि उनके दादा जी ने घटना के वक्त कहा था कि मैं तुम्हे राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी दिलाने के बदले गोली मारकर तुम्हें पुरस्कार देता हूं.
कपड़े और हैंड राइटिंग से पकड़े गए थे क्रांतिकारी : गौतम कुमार बनर्जी ने कहा कि आज जरूरत है देश की भावी पीढ़ी को क्रांतिकारियों के वीर गाथाओं से रूबरू होने की. कार्यक्रम में शामिल होने आए काकोरी ट्रेन एक्शन पर लखनऊ विवि से पीएचडी कर चुके डॉ. अनिल मिश्रा ने कहा कि उन्होंने अपने शोध पत्र में घटना से जुड़े तमाम साक्ष्यों का उल्लेख किया है. काकोरी ट्रेन एक्शन से जो क्रांतिकारी जुड़े हुए थे उनके कपड़े और जिस होटल में वह लखनऊ में रुके थे, वहां के दस्तावेज में उनकी हैंडराइटिंग के आधार पर उनकी पहचान की गई थी. ऐसे तमाम गंभीर बिंदुओं को उन्होंने अपने शोध पत्र में शामिल किया जो मजबूत साक्ष्य के रूप में, ब्रिटिश सरकार ने अपने दस्तावेजों में जारी किया है.
काकोरी केस के नायकों का गोरखपुर कनेक्शन : हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के आर्मी विंग के सेनापति पं. राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को काकोरी षड्यंत्र केस में ‘चीफ कोर्ट आफ अवध जजमेंट’ 6 अप्रैल 1927 के फैसले में मृत्युदंड की सजा मिली. लखनऊ जिला जेल से ट्रांसफर होने के बाद गोरखपुर जेल के कोठरी न. आठ में बिस्मिल रखे गए. फांसी पर झूलने से महज तीन दिन पहले जेल अधिकारियों की नजर बचाकर लिखी उनकी आत्मकथा विश्व की सर्वश्रेष्ठ आत्मकथा मानी जाती है. 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूं कहकर बिस्मिल ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया.
शचीन्द्र नाथ सान्याल को दो बार मिली सजा : महान क्रांतिवीर और विचारक शचीन्द्र नाथ सान्याल का भी जुड़ाव गोरखपुर से रहा है. शचीन्द्र दा ने बनारस षड्यंत्र केस और काकोरी षड्यंत्र केस में दो बार आजीवन कारावास की सजा भोगी. वे एक ऐसे प्रकाश स्तंभ हैं जिन्होंने अपने जीवन के 50 वर्ष में से 20 वर्ष जेल में नारकीय रूप से बिताया. इनके सबसे छोटे भाई भूपेन्द्रनाथ सान्याल को काकोरी केस में भी 5 वर्ष की कड़ी कैद हुई थी. रवीन्द्र नाथ सान्याल गोरखपुर के चर्चित सेंट एंडड्रूज कालेज में शिक्षक रहे और इसी कालेज में शचीन्द्रनाथ दा के पुत्र रंजीत सान्याल और पुत्री अंजली सान्याल ने पढ़ाई की है.
कार्यक्रम के जरिए सरकार को भेजे गए ये प्रस्ताव : भारतीय डाक विभाग द्वारा ‘काकोरी ट्रेन एक्शन शताब्दी वर्ष’ पर विशेष आवरण के साथ डाक टिकट जारी किया जाए. चारों शहीदों पर सिक्के जारी किए जाएं. काकोरी केस में शामिल रहे आजादी के परवानों के ऊपर आडियो-विजुअल सामग्री तैयार कराकर दूरदर्शन के विभिन्न नेटवर्क, संसद टीवी और आकाशवाणी पर प्रसारित कराई जाए. जीपीओ पार्क, लखनऊ (तत्कालीन रिंग थिएटर) में काकोरी ट्रेन शताब्दी वर्ष स्मृति द्वार लाल ग्रेनाइट पत्थर से बनवाया जाए.
काकोरी शोधपीठ की हो स्थापना : काकोरी के रेलवे स्टेशन पर क्रांति मशाल लगाई जाए जो अनवरत जलती रहे. काकोरी शहीद स्मारक, बाजनगर, लखनऊ को और समृद्ध करने, डिजिटल संग्रहालय बनाने के साथ हर दिन शाम को वहां लाइट एंड शो कार्यक्रम आयोजित किए जाएं. गोरखपुर, अयोध्या, लखनऊ, बरेली, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, ग्वालियर, मेरठ, और आगरा के विश्वविद्यालयों में काकोरी शोधपीठ की स्थापना की जाए.
काकोरी केस के नायकों का जीवन चरित्र पढ़ाया जाए : सौ वर्ष पूर्व की स्मृति को संजोने के उद्देश्य से 9 अगस्त 2025 की शाम काकोरी-लखनऊ के बीच ट्रेन चेन पुलिंग, काकोरी ट्रेन डकैती रिटर्न, वंशजों और सरकार के सहयोग से की जाए. काकोरी केस के नायकों का जीवन चरित्र यूपी बोर्ड के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाए. लखनऊ विश्वविद्यालय में सर्वोच्च अंक पाने वाले छात्रों को प्रति वर्ष काकोरी शहीद स्मृति स्वर्णपदक प्रदान किए जाए.
काकोरी केस के गद्दारों की सूची हो जारी : भारत सरकार काकोरी केस के महानायकों पर संपूर्ण और शोधपरक सामग्री पुस्तकालय तैयार कर वितरित करे. भारत सरकार काकोरी केस के गद्दारों की सूची जारी करे. काकोरी ट्रेन ऐक्शन शताब्दी वर्ष साल भर मनाने के लिए सरकार अपने कैलेंडर जारी करे. भारत सरकार काकोरी केस के शहीदों-नायकों के वंशजों को उचित सम्मान राशि प्रदान करे. काकोरी के महानायकों से जुड़े स्मारकों पर स्थानीय परिजनों को आमंत्रित कर प्रतिवर्ष 9 अगस्त को पुलिस गारद से सलामी दी जाए.
जंगे आजादी में रही है गोरक्षपीठ की अहम भूमिका : स्वतंत्रता की लड़ाई में गोरक्षपीठ का बड़ा योगदान रहा है. स्वतंत्रता के मूल्यों का संरक्षण, गोरक्षपीठ की विरासत का अभिन्न हिस्सा रही है. इसी विरासत को वर्तमान पीठाधीश्वर, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बखूबी निभाते हुए आगे बढ़ा रहे हैं. गोरखपुर स्थित नाथपंथ की इस पीठ के व्यापक सामाजिक सरोकार रहे हैं. यही वजह है कि करीब एक शताब्दी से देश की राजनीति और समाज का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं रहा, जिस पर अपने समय में पीठ की महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रही हो. राम मंदिर आंदोलन में गोरक्षपीठ की भूमिका से हर कोई वाकिफ है. यह देश की राजनीति और समाज पर असर डालने वाला आजादी के बाद का सबसे बड़े आंदोलन था.
सीएम योगी के दादा गुरु किशोरावस्था में ही कूद पड़े थे आजादी के आंदोलन में : जिस दौरान जंगे आजादी चरम पर थी, उस समय योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ही गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर थे. वह चित्तौड़ मेवाड़ ठिकाना ककरहवां में पैदा हुए थे. 5 साल की उम्र में गोरखपुर आए तो यहीं के होकर रह गए. देश भक्ति का जोश, जज्बा और जुनून उनको मेवाड़ की उसी माटी से विरासत में मिली थी, जहां के महाराणा प्रताप ने अपने समय के सबसे ताकतवर मुगल सम्राट के आगे तमाम दुश्वारियों के बावजूद घुटने नहीं टेके.
इसी विरासत का असर था कि किशोरावस्था आते -आते वह महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े. उन्होंने जंगे आजादी के लिए जारी क्रांतिकारी आंदोलन और गांधीजी के नेतृत्व में जारी शांतिपूर्ण सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. एक ओर जहां उन्होंने समकालीन क्रांतिकारियों को संरक्षण, आर्थिक मदद और अस्त्र-शस्त्र मुहैया कराया, वहीं गांधीजी के आह्वान वाले असहयोग आंदोलन के लिए स्कूल का परित्याग कर दिया.
चौरीचौरा आंदोलन में भी आया था महंत दिग्विजयनाथ का नाम : चौरीचौरा जनक्रांति (चार फरवरी 1922) के करीब साल भर पहले आठ फरवरी 1921 को जब गांधीजी का पहली बार गोरखपुर आगमन हुआ था, दिग्विजयनाथ रेलवे स्टेशन पर उनके स्वागत और सभा स्थल पर व्यवस्था के लिए अपनी टोली (स्वयंसेवक दल) के साथ मौजूद थे. नाम तो उनका चौरीचौरा जनक्रांति में भी आया था, पर वह उसमे ससम्मान बरी हो गए. देश के अन्य नेताओं की तरह चौरीचौरा जनक्रांति के बाद गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन के सहसा वापस लेने के फैसले से वह भी असहमत थे. बाद के दिनों में मुस्लिम लीग को तुष्ट करने की नीति से उनका कांग्रेस और गांधीजी से मोह भंग होता गया. इसके बाद उन्होंने वीर सावरकर और भाई परमानंद के नेतृत्व में गठित अखिल भारतीय हिंदू महासभा की सदस्यता ग्रहण कर ली.जीवन पर्यंत वह इसी में रहे. उनके बारे में कभी सावरकर ने कहा था, ‘यदि महंत दिग्विजयनाथ की तरह अन्य धर्माचार्य भी देश, जाति और धर्म की सेवा में लग जाएं तो भारत पुनः जगतगुरु के पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है.
पीठ की देशभक्ति के जज्बे का प्रतीक है महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद : ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराण प्रताप से कितने प्रभावित थे, इसका सबूत 1932 में उनके द्वारा स्थापित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद है. इस परिषद का नाम महाराणा प्रताप रखने के पीछे यही मकसद था कि इसमें पढ़ने वाले विद्यार्थियों में भी देश के प्रति वही जज्बा, जुनून और संस्कार पनपे जो प्रताप में था. इसमें पढ़ने वाले बच्चे प्रताप से प्रेरणा लें. उनको अपना रोल माॅडल माने. उनके आदर्शों पर चलते हुए यह शिक्षा परिषद चार दर्जन से अधिक संस्थाओं के जरिए विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की अलख जगा रहा है. इसी तरह योगी आदित्यनाथ भी देश भक्ति से जुड़े हर कार्यक्रम को गति देने में जुटे हैं. हर जिले में शहीदों के नाम पार्क, हर शहीद को सम्मान. शहीदों से जुड़े हर स्मारक का सुंदरीकरण इसके प्रमाण हैं. योगी सरकार इसी क्रम में काकोरी ट्रेन एक्शन के शताब्दी वर्ष के लिए कार्यक्रमों की श्रृंखला तैयार की है. शताब्दी महोत्सव पर पूरे प्रदेश भर में अलग-अलग तिथियों पर कार्यक्रम होंगे. 13 से 15 अगस्त के बीच 'हर घर तिरंगा' अभियान आयोजित किया जाएगा.
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