नई दिल्ली: राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत देशभर के विश्वविद्यालयों में पीएचडी के नए नियम यूजीसी ने लागू किए हैं. नए नियमों के तहत नेट उत्तीर्ण विद्यार्थियों को अब पीएचडी प्रवेश परीक्षा नहीं देनी पड़ेगी. इसके तहत 70 प्रतिशत अंक नेट की मुख्य परीक्षा और 30 प्रतिशत अंक साक्षात्कार के जोड़े जाएंगे. इस नई पॉलिसी का जेएनयू छात्र संघ शुरू से ही विरोध करता आ रहा है. बीते दिनों कई बार इस पॉलिसी को वापस लेने की मांग की गई, लेकिन यूजीसी इस नियम पर किसी भी तरह के बदलाव के लिए तैयार नहीं है.
ऐसे में नियम का विरोध कर रहे जेएनयू के छात्र संघ ने यूजीसी के मुख्यालय पर प्रदर्शन किया. जेएनयू प्रेसिडेंट का कहना है कि यूजीसी की नए पॉलिसी से पीएचडी करने वाले छात्रों को काफी दिक्कत होगी. साथ ही साथ इसमें एडमिशन के लिए फीस में कोई कमी नहीं की गई है. इसके कारण आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए पीएचडी करना काफी मुश्किल होने वाला है.
छात्रों का कहना है कि छात्र मास्टर्स करने के बाद रिसर्च के लिए पीएचडी करना चाहते हैं. जिसमें वे लिखकर एग्जाम देते हैं, लेकिन नेट द्वारा अगर यह एंट्रेंस एग्जाम देना पड़े तो छात्रों को काफी दिक्कत हो सकती है. यूजीसी पर पहुंचने वाले ये छात्र विरोध में कई मांगों को लेकर पहुंचे. किसी भी कैंपस में जाति और धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव के खिलाफ जांच करने के लिए रोहित एक्ट लागू करने की मांग की.
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छात्रों का कहना है कि पीएचडी के दौरान मिलने वाली फैलोशिप को यूजीसी ने खत्म कर दिया है. जबकि, पीएचडी करने वाले छात्रों को उस समय इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. लिहाजा उनकी मांग है कि फेलोशिप को बहाल किया जाए. आखिर में छात्रों की मांग है कि यूजीसी और नेट की परीक्षा को एक डेट पर रखा गया है, जिससे तैयारी करने वाले छात्रों को एक एग्जाम छोड़ने की मजबूरी हो जाएगी.
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