रांची: राज्य की राजनीति में अहम किरदार निभानेवाली पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा अब खुद को नए किरदार में दिखने की तैयार कर रही है. कभी 3एम यानी मांझी, महतो और मुस्लिम वोटों के भरोसे राजनीति करने वाला झामुमो अब समाज के हर वर्ग को साधने की कोशिश में जुट गया है. यही वजह है कि जमशेदपुर लोकसभा सीट से पार्टी के केंद्रीय महासचिव सह केंद्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्या जो बांग्ला भाषी ब्राह्मण जाति से आते हैं उनका नाम जमशेदपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार के लिए आगे किया गया है.
भाजपा के मूल आधार को खिसकाने की कोशिश में झामुमो
वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि ऐसा लगता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के थिंक टैंक ने राज्य की राजनीति में भाजपा को कमजोर करने के लिए सवर्ण वोट को अपने पक्ष में करने की योजना बनाई है. भाजपा को कमजोर करने के लिए यह बेहद जरूरी है कि उसके कोर वोट बैंक समझे जानेवाली जातियों के वोट बैंक में सेंधमारी की जाए. ऐसे में 2024 का लोकसभा चुनाव का समय झामुमो को परफेक्ट लग रहा है, क्योंकि इस बार बीजेपी ने ओबीसी कार्ड पर भरोसा जताया है. आठ सामान्य सीट में से उसने छह सीट पर ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि दो सवर्ण को टिकट दिया है. इस वजह से ऊंची जातियों के लोगों में एक स्वभाविक गुस्सा है, जिसका प्रकटीकरण क्षत्रिय सामाजिक संगठन कर चुका है.
भाजपा ने हजारीबाग में कायस्थ जयंत सिन्हा की जगह ओबीसी मनीष जायसवाल और धनबाद में क्षत्रिय समाज से आनेवाले पीएन सिंह की जगह ओबीसी ढुल्लू महतो को टिकट देने से सवर्ण समाज के लोगों को लगता है कि भाजपा भी उनकी राजनीतिक ताकत को कम करने के लिए उसी मार्ग पर चल दी है, जिस पर अब तक जाति आधारित राजनीति करने वाले दल चलते थे.
सभी को साथ लेकर चलने का मैसेज देना चाहता है झामुमो
ऐसे में अब झामुमो सुप्रियो का नाम आगे कर सवर्ण समाज को यह मैसेज देना चाहता है कि उसकी राजनीति समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने की है. इसलिए उसे अपने कोटे की जो पांच सीट इंडिया ब्लॉक में मिली है उसमें सिर्फ दो सामान्य सीट होते हुए भी एक ओबीसी और एक अगड़ी जाति को देना चाहती है, यानी वह भाजपा की तरह वोट के लिए जातीय राजनीति नहीं करती, बल्कि वह सभी को साथ लेकर चलना चाहती है.
झारखंड में 15-17% आबादी है सवर्णों की
वरिष्ठ टीवी पत्रकार मनोज कुमार कहते हैं कि एक अनुमान के अनुसार राज्य में 15% से 17% के बीच सवर्णों की आबादी है. 2019 के लोकसभा चुनाव से तुलना करने पर यह साफ हो जाता है कि तब भाजपा से सवर्ण समाज से आनेवाले क्षत्रिय और कायस्थ जाति के उम्मीदवारों को भी टिकट मिला था, लेकिन इस बार इन दो समुदाय से कोई उम्मीदवार नहीं दिया गया है. एक ब्राह्मण और एक भूमिहार को भाजपा ने टिकट दिया है.
वहीं अभी तक इंडिया ब्लॉक से सभी उम्मीदवारों के नाम घोषित नहीं हुए हैं, लेकिन माले ने राजकुमार यादव की जगह विधायक विनोद कुमार सिंह को कोडरमा से उम्मीदवार बनाया है. इससे भाजपा से नाराज क्षत्रिय समाज के वोटरों को इंडिया ब्लॉक की ओर लाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. रांची से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सुबोधकांत सहाय या फिर उनकी बेटी यशस्विनी सहाय का नाम भी चर्चा में आगे चल रही है. अगर ऐसा हुआ तो भाजपा के दो ठोस कोर वोट बैंक में इंडिया सेंधमारी करने में सफल हो जाएगा. जमशेदपुर से सुप्रियो को अगर टिकट मिलता है तो बांग्ला भाषी होने का लाभ भी मिलेगा.
खुद सीएम चंपाई सोरेन ने बढ़ाया है सुप्रियो भट्टाचार्या का नाम!
पार्टी के विश्वनीय सूत्र बताते हैं कि मीडिया के सामने आकर हर दिन अपने तीखे तेवर से भाजपा को जवाब देने वाले सुप्रियो भट्टाचार्या का नाम जमशेदपुर लोकसभा सीट से संभावित उम्मीदवार की सूची में सबसे आगे है, लेकिन अंतिम फैसला हेमंत सोरेन और शिबू सोरेन को लेना है.
सोरेन परिवार के बेहद करीबी हैं सुप्रियो
झामुमो में केंद्रीय महासचिव और केंद्रीय प्रवक्ता की भूमिका निभाने वाले सुप्रियो भट्टाचार्या सोरेन परिवार के बेहद करीबी समझे जाते हैं और संगठन में उनका प्रभाव भी है. बांग्ला भाषी होने की वजह से कोल्हान के इलाके में भी संगठन पर उनकी अच्छी पकड़ है. विपरीत परिस्थितियों में वह कोल्हान में कैंप कर डैमेज कंट्रोल करते रहे हैं. ऐसे में झामुमो नेतृत्व अगर उन्हें जमशेदपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार घोषित कर दे तो यह आश्चर्य वाली बात नहीं होगी.
जानकर बताते है कि इससे एक संदेश तो अगड़े समाज में यह जाएगा कि झामुमो सबकी पार्टी है और दूसरा यह कि आप संपूर्ण समर्पण के साथ पार्टी के लिए काम करेंगे तो पार्टी आपको चुनावी राजनीति में उतार कर लोकसभा, राज्यसभा या विधानसभा भी भेज सकती है.
चाहे किसी को भी उम्मीदवार बना ले झामुमो, हार पक्कीः भाजपा
जमशेदपुर से एक बांग्ला भाषी कार्यकर्ता को टिकट देने की झामुमो की रणनीति पर भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी शिवपूजन पाठक कहते हैं कि अभी तो इंडिया गठबंधन ने कई सीटों पर उम्मीदवार ही नहीं उतारे हैं, लेकिन यदि सुप्रियो या किसी और को उतारे क्या फर्क पड़ता है. देश और राज्य की जनता ने पीएम मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने का फैसला कर लिया है.
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