रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है. राज्य की राजनीति में सक्रिय दल के नेताओं के बयान न सिर्फ तल्ख होते जा रहे हैं बल्कि ऐसे ऐसे मुद्दे भी उठाए जा रहे हैं जिससे झारखंडवासियों का भावनात्मक लगाव हो.
झारखंड मुक्ति मोर्चा ने विजयादशमी के दिन ही राज्य की राजनीति में बाहरी मुख्यमंत्री का मुद्दा को उठाकर राज्य के लोगों को सावधान किया. साथ ही ये कहा है कि अगर गलती से भी भाजपा सत्ता में आ गयी तो यूपी-बिहार वालों को मुख्यमंत्री बना देगी.
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता सह केंद्रीय समिति सदस्य मनोज पांडेय ने कहा कि 2014 में राज्य की जनता देख चुकी है. उस समय कैसे बहुमत मिलने पर इन लोगों ने झारखंड की माटी के बेटे की जगह छत्तीसगढ़ से आयातित नेता के हाथों में राज्य की कमान सौंप दी थी.
मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव मैदान में उतरने का चैलेंज
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने चुनौती भरे लहजे में कहा कि अगर भाजपा में हिम्मत है तो वह नेतृत्व की घोषणा कर दें कि किसके हाथों में बागडोर सौपेंगे. हालांकि ऐसा होने नहीं जा रहा है लेकिन अगर गलती से भी इन्हें मौका मिल गया तो ये यूपी और बिहार के नेता को सीएम बना देंगे. यह बात राज्य आदिवासी, मूलवासी और अन्य माटी पुत्रों को समझना होगा.
जनता के मुद्दों और सवालों से बचने के लिए इस तरह की अनर्गल बातें- प्रदीप सिन्हा
झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को राज्य में नेतृत्व का चेहरा घोषित करने की झामुमो की चुनौती पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि सिर्फ चुनाव के समय ही झामुमो का झारखंड और झारखंडी प्रेम दिखता है. उन्हें हमारी चिंता छोड़ खुद की चिंता करनी चाहिए क्योंकि जब हमारी पार्टी को विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलेगा तो हम तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा.
बीजेपी नेता ने कहा कि झामुमो को इस बात का जवाब जरूर देना चाहिए कि जब जब उन्हें मौका मिला. उन्होंने जिन धनाढ्य लोगों को राज्य सभा भेजा वह कौन लोग थे. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि दरअसल, झामुमो भाजपा की लोकप्रियता से हताश, निराश और बेचैन हो गयी है. इसलिए उसके नेता अनाप-शनाप बयानबाजी कर सुर्खियां बटोरने की कोशिश करते रहते हैं.
रघुवर दास को छत्तीसगढ़िया बताते रहे हैं झामुमो के नेता
दरअसल, झारखंड की राजनीति में आदिवासी मूलवासी का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील रहा है. यहां की आबादी का बड़ा हिस्सा जिसमें आदिवासी और मूलवासी शामिल हैं उन्हें लगता है कि समय समय पर बाहर से आकर झारखंड की सीमा में बस गए लोग उनकी हकमारी कर रहे हैं. यही वजह है कि झामुमो जैसे दलों की राजनीति में आदिवासी-मूलवासी हमेशा से
एक प्रमुख विषय रहा है.
जब 2014 में बहुमत मिलने के बाद भाजपा ने रघुवर दास को सीएम बनाया तब से ही झामुमो इसे यह कहकर मुद्दा बनाती रही है कि झारखंड के भूमिपुत्रों को छोड़ उसने छत्तीसगढ़ी व्यक्ति को सीएम बना दिया. अब जब झारखंड में विधानसभा चुनाव बेहद करीब है, जाहिर है कि भीतरी बाहरी और अन्य भावनात्मक मुद्दे राज्य की राजनीति में बयानों के रूप में सुनाई देते रहेंगे.
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