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संविधान हत्या दिवस मनाने के केंद्र के फैसले पर झामुमो ने उठाए सवाल, राष्ट्रपति से की अधिसूचना निरस्त करने की मांग - JMM on Samvidhan hatya divas

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jul 13, 2024, 7:53 PM IST

JMM on Samvidhan hatya divas. केंद्र ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का फैसला लिया है. मोदी सरकार के इस फैसले का झामुमो ने विरोध किया है. इसके साथ ही उन्होंने राष्ट्रपति से इस अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की है.

JMM ON CONSTITUTION MURDER DAY
झामुमो प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्या (फोटो- ईटीवी भारत)

रांची: केंद्र सरकार ने आपातकाल का हवाला देते हुए 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया है. अब इस पर राजनीति शुरू हो गई है. इंडिया गठबंधन के घटक और झारखंड में सरकार का नेतृत्व कर रहे झारखंड मुक्ति मोर्चा ने केंद्र के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए भाजपा पर निशाना साधा है. पार्टी ने राष्ट्रपति से केंद्र सरकार के इस फैसले से जुड़ी अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की है.

पार्टी महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि संविधान हमारे देश का धर्म ग्रंथ है. लेकिन भारत सरकार अब उसकी हत्या का दिवस मनाएगी. कुछ समय पूर्व हुए लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान बदलने की भाजपा की नीयत जब सामने आई तो लोग बेचैन हो उठे. लिहाजा, 400 पार का नारा 303 से नीचे उतरकर 240 पर आ गया. इसी बौखलाहट में भाजपा के नेतृत्व में चल रही भारत सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी. झामुमो की दलील है कि 25 जून 1975 को संविधान की धारा 352 के तहत आपातकाल लगाया गया था. तब 2 वर्षों के लिए लोगों के संवैधानिक अधिकार को सस्पेंड कर दिया गया था. वह फैसला संवैधानिक रूप से लिया गया था.

हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव ने इस बात को जरूर कहा कि वह कालखंड देश के लोकतांत्रिक इतिहास का काला अध्याय था. झामुमो का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. इससे पूर्व 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भी आपातकाल लगाया गया था. भाजपा ने संविधान के अनुच्छेद 365 का उपयोग करते हुए कई बार राष्ट्रपति शासन भी लगाया है. वह भी एक तरह का आपातकाल ही है.

झामुमो ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि संविधान और लोकतंत्र की हत्या का पहला मुहर 25 मई 2014 को लगा था, जब नरेंद्र मोदी ने पीएम के रूप में शपथ ली थी. क्योंकि नोटबंदी का हवाला देकर देश में पहला आर्थिक आपातकाल 8 नवंबर 2016 में लगाया गया था. लाखों लोग बेरोजगार कर दिए गया. फिर कोरोना काल में अचानक नागरिक आपातकाल लगाया गया. संपूर्ण लॉकडाउन के तहत लाखों लोग मरने को विवश हुए. इसके बाद तीन काला कृषि कानून लाकर किसानों पर आपातकाल लगाया गया. सैकड़ों किसान मर गये. फिर मणिपुर जब जला तो आदिवासियों पर आपातकाल लगा. फिर नीट के नाम पर छात्रों पर आपातकाल लगा. हाथरस और मणिपुर में महिलाओं पर आपातकाल लगा. सारे पब्लिक सेक्टर उद्योगपतियों को बेचे जा रहे हैं, यह विकास पर आपातकाल है.

झामुमो का कहना है कि सभी संवैधानिक संस्थाओं पर हमले किए गए हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में लॉ फैकल्टी के लिए एक मसौदा लाया गया है, जिसके मुताबिक मनुस्मृति पढ़ना होगा. हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय ने उसको नकार दिया. भाजपा ने हर वक्त आपातकाल लगाया. इनकी वजह से झारखंड ने फादर स्टेन स्वामी को खो दिया.

सुप्रिया भट्टाचार्य ने अपनी पार्टी की ओर से संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने के फैसले पर विरोध जताया, साथ ही इस फैसले से जुड़ी अधिसूचना को रद्द करने के लिए राष्ट्रपति से मांग की है. सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान मैंने कहा था कि भाजपा को सिंगल डिजिट में रोक दिया जाएगा और वही हुआ. उन्होंने फिर कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा सिंगल डिजिट पर आ जाएगी.

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रांची: केंद्र सरकार ने आपातकाल का हवाला देते हुए 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया है. अब इस पर राजनीति शुरू हो गई है. इंडिया गठबंधन के घटक और झारखंड में सरकार का नेतृत्व कर रहे झारखंड मुक्ति मोर्चा ने केंद्र के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए भाजपा पर निशाना साधा है. पार्टी ने राष्ट्रपति से केंद्र सरकार के इस फैसले से जुड़ी अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की है.

पार्टी महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि संविधान हमारे देश का धर्म ग्रंथ है. लेकिन भारत सरकार अब उसकी हत्या का दिवस मनाएगी. कुछ समय पूर्व हुए लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान बदलने की भाजपा की नीयत जब सामने आई तो लोग बेचैन हो उठे. लिहाजा, 400 पार का नारा 303 से नीचे उतरकर 240 पर आ गया. इसी बौखलाहट में भाजपा के नेतृत्व में चल रही भारत सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी. झामुमो की दलील है कि 25 जून 1975 को संविधान की धारा 352 के तहत आपातकाल लगाया गया था. तब 2 वर्षों के लिए लोगों के संवैधानिक अधिकार को सस्पेंड कर दिया गया था. वह फैसला संवैधानिक रूप से लिया गया था.

हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव ने इस बात को जरूर कहा कि वह कालखंड देश के लोकतांत्रिक इतिहास का काला अध्याय था. झामुमो का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. इससे पूर्व 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भी आपातकाल लगाया गया था. भाजपा ने संविधान के अनुच्छेद 365 का उपयोग करते हुए कई बार राष्ट्रपति शासन भी लगाया है. वह भी एक तरह का आपातकाल ही है.

झामुमो ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि संविधान और लोकतंत्र की हत्या का पहला मुहर 25 मई 2014 को लगा था, जब नरेंद्र मोदी ने पीएम के रूप में शपथ ली थी. क्योंकि नोटबंदी का हवाला देकर देश में पहला आर्थिक आपातकाल 8 नवंबर 2016 में लगाया गया था. लाखों लोग बेरोजगार कर दिए गया. फिर कोरोना काल में अचानक नागरिक आपातकाल लगाया गया. संपूर्ण लॉकडाउन के तहत लाखों लोग मरने को विवश हुए. इसके बाद तीन काला कृषि कानून लाकर किसानों पर आपातकाल लगाया गया. सैकड़ों किसान मर गये. फिर मणिपुर जब जला तो आदिवासियों पर आपातकाल लगा. फिर नीट के नाम पर छात्रों पर आपातकाल लगा. हाथरस और मणिपुर में महिलाओं पर आपातकाल लगा. सारे पब्लिक सेक्टर उद्योगपतियों को बेचे जा रहे हैं, यह विकास पर आपातकाल है.

झामुमो का कहना है कि सभी संवैधानिक संस्थाओं पर हमले किए गए हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में लॉ फैकल्टी के लिए एक मसौदा लाया गया है, जिसके मुताबिक मनुस्मृति पढ़ना होगा. हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय ने उसको नकार दिया. भाजपा ने हर वक्त आपातकाल लगाया. इनकी वजह से झारखंड ने फादर स्टेन स्वामी को खो दिया.

सुप्रिया भट्टाचार्य ने अपनी पार्टी की ओर से संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने के फैसले पर विरोध जताया, साथ ही इस फैसले से जुड़ी अधिसूचना को रद्द करने के लिए राष्ट्रपति से मांग की है. सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान मैंने कहा था कि भाजपा को सिंगल डिजिट में रोक दिया जाएगा और वही हुआ. उन्होंने फिर कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा सिंगल डिजिट पर आ जाएगी.

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