रांची: झारखंड की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी विधायक को मंत्री पद की शपथ के लिए निमंत्रण मिलने के बावजूद राजभवन आने से रोक दिया गया हो. 16 फरवरी को चंपई मंत्रिमंडल के विस्तार के दिन 9 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाने की सूची तैयार हुई थी. इसमें लातेहार से झामुमो के विधायक बैद्यनाथ राम का भी नाम था.
शाम 4:00 बजे राजभवन के बिरसा मंडप में शपथ ग्रहण की तैयारी पूरी हो चुकी थी. बैजनाथ राम के परिजन और कई समर्थक राजभवन पहुंच चुके थे. लेकिन शपथ ग्रहण समारोह से महज आधा घंटा पहले बैद्यनाथ राम को राजभवन आने से मना कर दिया गया. आखिर इसके पीछे की वजह क्या रही. अब बैद्यनाथ राम क्या करेंगे. मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के इस फैसले को वह किस रूप में देखते हैं. क्या कांग्रेस के नाराज गुट के दबाव का यह नतीजा था. क्या वैद्यनाथ राम ने मंत्री बनाए जाने के लिए झामुमो पर दबाव डाला था. इसमें पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की क्या भूमिका थी. विधायक बैद्यनाथ राम ने ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ राजेश कुमार सिंह से फोन पर बातचीत के दौरान इन सभी सवालों का जवाब दिया है.
पहला सवाल- आपके साथ जो हुआ, इसको आप किस रूप में देखते हैं?
जवाब- इसको मैं व्यक्तिगत तौर पर भी और सामाजिक तौर पर भी अपमान के रूप में देखता हूं. यह स्वाभिमान पर चोट है. अपमानित किया गया है मुझे. मैंने अपनी भावना से मुख्यमंत्री जी को अवगत करा दिया है. किसी भी स्थिति में इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकते. आप या तो निर्णय में परिवर्तन करें या मैं निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होऊंगा.
सवाल- अगर आप मंत्री बनते तो चंपई मंत्रिमंडल में अनुसूचित जाति से जुड़े पहले मंत्री होते. आपका अगला कदम क्या होगा?
जवाब- सोमवार को इस पर अंतिम फैसला ले लिया जाएगा. सीएम ने कहा है कि दो-तीन दिन में क्लियर कर देंगे. इसलिए सोमवार तक का समय दिया है मैंने.
सवाल- क्या कांग्रेस के नाराज गुट की वजह से सीएम को बैकफुट पर आना पड़ा ? आप क्या मानते हैं?
जवाब- सीएम ने तो ऐसा ही कहा है लेकिन वह कारण भी बदलते रहे. लेकिन मैंने साफ कहा कि कांग्रेस का दबाव 12वें मंत्री को लेकर था. मैं अपने आप को 12वें सीट पर नहीं मानता. तीन नए चेहरे मंत्री बन रहे थे तो मैं ही 12वां मंत्री हूं, यह कौन तय करेगा. अगर मुझे 12वें नंबर पर समझ गया है तो इसका दूरगामी प्रभाव होगा. मैंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अपमान सहना मेरी फितरत में शामिल नहीं है. ऐसी स्थिति में मैं अपने सम्मान की रक्षा करूंगा. चाहे इसके लिए जो करना पड़े.
सवाल- आपको कब कहा गया कि राजभवन न आएं. क्या तब आपके परिवार के लोग और समर्थक राजभवन आ गए थे?
जवाब- करीब 3:30 बजे फोन आया कि आप राजभवन न आएं. तब तक परिवार के कई लोग राजभवन पहुंच चुके थे. समर्थक भी आवास पर आ गए थे. बड़ी संख्या में समर्थक ऑन द वे थे. तब मैंने सभी को वापस लौटने का आग्रह किया.
सवाल- जब आपका नाम काटे जाने की जानकारी मिली, तब आपने क्या महसूस किया?
जवाब- यह मेरे लिए शॉकिंग था. क्योंकि राजभवन से वारंट आ चुका था. अचानक जो काट छांट हुआ और इसको मुझसे जोड़ा गया, इसको मैं सरासर अन्याय मानता हूं. अन्याय इस रूप में कि शायद लोगों ने दलितों को सबसे कमजोर समझ रखा है. शायद यह सोचा गया कि हम दबे कुचले वर्ग से हैं और कुछ नहीं बोलेंगे. कथनी और करनी में इस अंतर को दुनिया भी समझ रही है और मैं भी.
सवाल- क्या इसे आप सामाजिक अन्याय के रूप में देखते हैं?
जवाब- ये लोग दलित आदिवासी और बैकवर्ड की बात करते हैं. इतना दलित विरोधी चेहरा, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है.
सवाल- भाजपा नेताओं ने इस मसले को उठाया. इस पर आपका क्या कहना है?
जवाब- भाजपा नेता प्रतुल शाहदेव और अमर बावरी ने इस मामले को गंभीरता से उठाया है. सभी लोगों ने अपनी-अपनी राय दी है. मैं इसके लिए आभारी हूं.
सवाल- इस पर अंतिम फैसला कब लेंगे? क्या आप मंत्री पद मांगने गए थे?
जवाब- सीएम जैसे ही दिल्ली से वापस लौटते हैं और अपना फैसला बताते हैं, उसके बाद मैं अपना फैसला सुना दूंगा. अगर मेरे पक्ष में फैसला नहीं आया तो मैं अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होऊंगा. क्योंकि मैंने मंत्री पद नहीं मांगा था. मैंने इसके लिए गणेश परिक्रमा नहीं की थी. मैंनै किसी के आगे हाथ फैला कर भीख नहीं मांगा था कि मुझे मंत्री बना दो. जब हमने मांगा नहीं तो आपने नाम आखिर क्यों भेजा. आपको बेइज्जत करना था क्या? नाम भेज कर अंतिम समय में काट दिया. इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है. जिसका भी जमीर जिंदा होगा, वह ऐसा अपमान बर्दाश्त नहीं करेगा. मेरा जमीर अभी जिंदा है. हम चार-चार बार मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. मंत्री बनने का मुझे शौक नहीं है. कथनी और करनी में इनके दोहरे रूप को समाज समझ चुका है.
सवाल- आप इसके लिए किसको जिम्मेवार ठहरना चाहेंगे?
जवाब- इसके लिए किसी व्यक्ति विशेष को जिम्मेवार ठहराना सही नहीं होगा. मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने मुझे बताया था कि हेमंत सोरेन चाहते थे कि मंत्रिमंडल में मेरा भी नाम हो. इस घटना के बाद बार-बार चंपई सोरेन कह रहे थे कि अब हम हेमंत जी को क्या मुंह दिखाएंगे. उनकी बात कट गई. मेरा मानना है कि यह नेतृत्व की कमजोरी के कारण ऐसा हुआ है. एक बार मुख्यमंत्री ने कोई निर्णय लिया तो उस निर्णय पर अडिग रहने की हिम्मत रखनी चाहिए. शपथ के लिए मैं घर से निकल चुका था. तब सीएम ऑफिस से फोन आया और मुझे बुलाकर बताया गया. वह क्षण मेरे लिए बेहद पीड़ादायक था.
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