खूंटी: बिरसा मुंडा व मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की धरती खूंटी जो कभी नक्सलवाद, उग्रवाद और अफीम की अवैध खेती से लेकर खेल प्रतिभाओं तक सुर्खियों में रहा है. 24 साल से खूंटी विधानसभा सीट बीजेपी के कब्जे में है. खूंटी जिले का खूंटी विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित खूंटी शहरी व ग्रामीण, मुरहू व कर्रा प्रखंड की 13 पंचायतों को मिलाकर बनाई गयी है.
झारखंड गठन से पहले तक झारखंड पार्टी और कांग्रेस की वर्चस्व वाली सीट पर झारखंड गठन के बाद लगातार भाजपा ने सेंधमारी करते हुए कब्जा कर लिया है और आज तक इस किले को कोई नहीं हिला सका है. कांग्रेस और झामुमो ने पांच चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन कोई भी भाजपा को हरा नहीं पाया. 2009 के चुनाव में झामुमो के उम्मदीवार मसीह चरण पूर्ति ने भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा को कड़ी टक्कर जरूर दी थी.
1951 में खूंटी विधनसभा सीट अस्तित्व में आई और यहां आजादी के बाद हुए देश के पहले चुनाव में झारखंड पार्टी ने जीत हासिल की. उसके बाद से लगातार तीन बार खूंटी से झारखंड पार्टी के ही विधायक चुने गये. कांग्रेस ने झारखंड पार्टी से खूंटी सीट 1967 में छीनी थी. इसके बाद राज्य गठन तक एक बार छोड़ कर लगातार खूंटी पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा. वर्ष 2000 तक खूंटी से कांग्रेस के विधायक सात बार चुने गये थे. 1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस को हरा कर चुनाव जीता, लेकिन, अगले चुनाव में फिर से कांग्रेस प्रत्याशी विजय हुए. राज्य गठन के बाद वर्ष 2000 से भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा अब तक लगातार पांच बार खूंटी पर विजयी पताका फहरा रहे हैं. वह 1985 से लगातार तीन बार विधायक रहीं कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा को हरा कर विधायक बने थे.
राजनीतिक जानकारों की माने तो खूंटी सीट के लिए कांग्रेस और झामुमो ने कभी मजबूत उम्मदीवार उतारा ही नहीं है. जिसके कारण भाजपा मजबूत होती चली गई. महिलाओं में अच्छी पकड़ रखने वाली और झामुमो नेता स्नेहलता कंडुलना को झामुमो ने उम्मदीवार जरूर बनाया लेकिन दूसरे दिन उसका नाम वापस ले लिया और रांची के नामकुम निवासी राम सूर्या मुंडा को उम्मदीवार बना दिया.
2024 के चुनाव को लेकर इंडिया गठबंधन के बीच टिकट बंटवारे के बाद खूंटी और तोरपा झामुमो के खाते में गई. तोरपा से सुदीप गुड़िया को उम्मदीवार बनाया गया तो खूंटी से स्नेहलता कंडुलना (जो 2014 में बहुजन मुक्ति पार्टी से विधनसभा चुनाव लड़ चुकी हैं) को उम्मदीवार बनाया गया. लेकिन दूसरे ही दिन नाम वापस ले लिया. कारण बताया कि वो बेहतर नहीं हैं और फिर इस सीट से राम सूर्या मुंडा को उम्मदीवार बनाया जो रांची के नामकुम क्षेत्र के निवासी हैं.
खूंटी सीट पर उम्मीदवार बदले जाने के मामले पर जिलाध्यक्ष जुबेर अहमद ने कहा कि यह पार्टी की प्रक्रिया है और जनता की चाहत के हिसाब के प्रत्याशी दिया गया है. यह पार्टी माटी और जल जंगल जमीन की पार्टी है. उन्होंने दावा किया है कि खूंटी में उनके विधायक बनते ही बाईपास सड़क बनाई जाएगी. वहीं नॉमिनेशन करने के बाद झामुमो प्रत्याशी राम सूर्या मुंडा ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन को टिकट देने के लिए धन्यवाद दिया. साथ ही खूंटी से बीजेपी विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा को पिता के समान बताया. उन्होंने खुद को नीलकंठ का बेटा बताते हुए कहा कि मैं उनका बेटा हूं और उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया है कि मेरी जीत पक्की है.
खूंटी सीट पर हुए आजादी के बाद चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां कांग्रेस ने ज्यादा बार सीटें जीती हैं, लेकिन झारखंड गठन के बाद गठबंधन ने वापसी नहीं की है. खूंटी सीट से 1951 में लुकस मुंडा झारखंड पार्टी, 1957 में बीर सिंह मुंडा झारखंड पार्टी, 1962 में फूलचंद कच्छप झारखंड पार्टी, 1967, 1972 में तिड़ मुचिराय मुंडा कांग्रेस, 1977 में खुदिया पहान जनता पार्टी, 1980 में सामु पहान कांग्रेस, 1985, 1990, 1995 में सुशीला केरकेट्टा कांग्रेस. 2000 से नीलकंठ सिंह मुंडा लगातार भाजपा के विधायक हैं.