रांची: लोकसभा के चुनावी समर में सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी तैयारी में जुटी हैं. अब तक देश में तीन चरणों के चुनाव हो चुके हैं.चौथे, पांचवें, छठे और सातवें चरण में झारखंड में सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव होने हैं. लेकिन सबसे अहम बात है कि इस बार झारखंड में कई ऐसे प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं जो पहले से ही विधायक हैं.
झारखंड के 12 विधायक लोकसभा चुनाव में ठोक रहे ताल
झारखंड में 14 लोकसभा सीटों में कुल 12 विधायक सांसद बनने के लिए चुनावी मैदान में उतरे हैं. इनमें भाजपा से सीता सोरेन, मनीष जायसवाल और ढुल्लू महतो हैं. वहीं जेएमएम से समीर मोहंती, जोबा मांझी, मथुरा महतो और नलिन सोरेन हैं तो कांग्रेस से जेपी पटेल, प्रदीप यादव और वामदल के माले पार्टी से विनोद सिंह का नाम शामिल हैं. जबकि चमरा लिंडा और लोबिन हेंब्रम पार्टी से बगावत करते हुए लोकसभा चुनाव में अपना किस्मत आजमा रहे हैं.
झारखंड की ज्यादातर पार्टियों ने विधायकों पर जताया भरोसा
18वीं लोकसभा चुनाव में झारखंड में ज्यादातर पार्टियों ने अपने-अपने विधायकों पर भरोसा जताया है. पार्टियों को ऐसा लग रहा है कि यदि विधायक सांसद के लिए चुनाव लड़ते हैं तो उनके लिए जीत पक्की हो सकती है. यह ट्रेंड सिर्फ इस बार के चुनाव में नहीं, बल्कि झारखंड बनने के बाद कई बार ऐसा देखने को मिला है. कई विधायकों ने सांसद बनने में सफलता भी प्राप्त की है तो कई को असफलता भी हाथ लगी है.
झारखंड के ऐसे विधायक जो विधायक रहते बने थे सांसद
झारखंड के पुराने रिकॉर्ड पर नजर दौड़ाएं तो टेक लाल महतो मांडू से विधायक रहते हुए गिरिडीह लोकसभा सीट से जीत प्राप्त की थी, जबकि सीपीआई के भुनेश्वर मेहता ने भी विधायक रहते हजारीबाग लोकसभा सीट से संसद पहुंचे थे. इसके अलावा कांग्रेस के दिग्गज नेता फुरकान अंसारी, ददई दुबे ने भी विधायक से संसद तक का सफर कर चुके हैं. वहीं झामुमो के वरिष्ठ नेता हेमलाल मुर्मू भी विधायक रहते लोकसभा तक का सफर तय किया है. इसके अलावा कई ऐसे उदाहरण हैं जो विधायक रहते सांसद बने हैं.
ये विधायक लोकसभा चुनाव तो लड़े पर संसद पहुंचने में हुए विफल
वहीं झारखंड में कई ऐसे भी उदाहरण हैं जो विधायक रहने के बाद भी संसद तक पहुंचने में अफल रहे. इनमें भाकपा माले के राजकुमार यादव की बात करें तो वह विधायक रहते कोडरमा से लोकसभा का चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें काफी बड़े मार्जिन से हार का सामना करना पड़ा था. वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप यादव भी कई बार विधायक रहते लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा है.
जनता के बीच लगातार काम करने वाले विधायकों पर ज्यादा भरोसाः झामुमो
इस संबंध में जेएमएम के प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि पार्टियों को विधायक पर भरोसा इसलिए होता है क्योंकि विधायक जनता के बीच में लगातार काम करते रहते हैं और जनता भी विधायकों के साथ रूबरू होती है. वहीं उन्होंने कहा कि विधायक पर भरोसा करने का एक कारण यह भी है कि पार्टियों को यह लगता है कि यदि एक विधानसभा क्षेत्र से पूर्ण बहुमत उनके पक्ष में आ जाए तो फिर जीत और भी आसान हो जाती है, क्योंकि एक विधानसभा क्षेत्र से ढाई से तीन लाख मत पड़ते हैं. इसी सोच के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ने इस बार विधायकों को लोकसभा के चुनाव में उतारने का काम किया है.
विधायकों की क्षेत्र में होती है पकड़ मजबूत, इसलिए मिलती है प्राथमिकताः भाजपा
वहीं भाजपा के प्रवक्ता अविनेश कुमार बताते हैं कि विधायकों को लोकसभा में तभी उतारा जाता है, जब वह अपने विधानसभा क्षेत्र के अलावा भी आसपास के विधानसभा क्षेत्रों में अपनी पकड़ रखते हैं. विधायकों के लिए बड़े नेताओं को प्रचार करने में भी आसानी होती है, क्योंकि विधायकों के विधानसभा क्षेत्र के काम का उदाहरण देकर पूरे लोकसभा में कार्यकर्ता वोट मांग पाते हैं. इसी सोच के साथ भारतीय जनता पार्टी ने कई विधायकों को क्षेत्र में उतारने का काम किया है.
झारखंड में करीब 41% विधायक ही संसद तक का सफर तय कर पाए हैं
गौरतलब है कि झारखंड के रिकॉर्ड को देखने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा सिर्फ विधायकों के भरोसे पार्टियां अपनी जीत पक्की नहीं कर सकती, क्योंकि किसी भी लोकसभा में एक तिहाई वोट को ही एक विधायक प्रभावित कर सकता है. इसलिए इस बार मैदान में उतरे सभी विधायकों को पूरे लोकसभा का नेतृत्व करने के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता पड़ रही है. हालांकि एक आंकड़े के अनुसार अब तक झारखंड में करीब 41% विधायक ही संसद तक का सफर तय कर पाए हैं. अब देखने वाली बात होगी कि इस बार मैदान में उतरे 12 विधायकों में कौन-कौन से सांसद के रूप में संसद भवन तक का सफर कर पाते हैं.
ये भी पढ़ें-