रांची: लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही भाजपा ने राज्य के 14 में से 11 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर राजनीति के मैदान में मानसिक तौर पर बढ़त बना ली है. अब झारखंड के सत्ताधारी दलों ने दाव खेलना शुरु कर दिया है. झामुमो के महासचिव विनोद पांडेय ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सचिव के नाम पत्र लिखकर महामहिम से मुलाकात के लिए समय मुहैया कराने का आग्रह किया है. पत्र में लिखा गया है कि मंत्री, सांसद, सीनियर लीडर्स वाला 50 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मिलकर सरना कोड, एसटी-एससी और ओबीसी रिजर्वेशन के अलावा 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता की जरुरत से जुड़ा रिप्रेजेंटेशन देना चाहता है.
दरअसल, तीनों मसले झारखंड के सेंटिमेंट से जुड़े हुए हैं. हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने 11 नवंबर 2020 को विशेष सत्र बुलाकर सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कराया था. इस प्रस्ताव का मकसद था 2021 की जनगणना फॉर्म में सरना आदिवासी कोड के लिए अलग से कॉलम देना. लेकिन यह मामला आज तक ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है. इस प्रस्ताव के विधानसभा से पारित होने पर खूब जश्न मनाया गया था. तब भाजपा विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा और अमर बाउरी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा था कि 1961 में इनके शासनकाल में जनगणना के कॉलम में अन्य का विकल्प हटाया गया था.
इस पहल के ठीक दो साल बाद 15 सितंबर 2022 को तत्कालीन हेमंत कैबिनेट ने 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति और ओबीसी, एसटी-एसटी के आरक्षण में वृद्धि से संबंधित प्रस्ताव को स्वीकृति दी थी और 11 नवंबर 2022 को सदन से दोनों बिल पारित कराकर एक नई बहस छेड़ दी थी. हालांकि विपक्ष इसे शिगूफा बताता रहा. विपक्ष की दलील थी कि राज्य सरकार खुद नियम बनाने के लिए सक्षम है. दोनों बिल को 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र को भेजने का मतलब है सिर्फ राजनीतिक रोटी सेंकना. तब तत्कालीन सीएम हेमंत सोरेन ने कहा था कि वह नहीं चाहते कि दोनों बिल कोर्ट में उलझकर रह जाएं. इसलिए 9वीं अनुसूची में शामिल कराना जरुरी है.
तत्कालीन हेमंत सरकार ने आरक्षण बिल में एससी के लिए 10 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत, एसटी के लिए 26 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत और ओबीसी की आरक्षण सीमा 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था. इसके हिसाब से झारखंड में 77 प्रतिशत सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान किया था. हालांकि अभी तक झारखंड में एससी को 10 प्रतिशत, एसटी को 26 प्रतिशत, ओबीसी को 14 प्रतिशत और इडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत यानी कुल 60 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है.
लेकिन तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने जनवरी 2023 में यह कहकर 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता से जुड़े बिल को लौटा दिया था कि इसकी गहना से समीक्षा करने की जरुरत है. उन्होंने सुझाव दिया था कि यह संविधान के प्रावधानों और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुरूप होना चाहिए. लेकिन दिसंबर 2023 में तत्कालीन सरकार ने बिना कोई संशोधन के स्थानीयता बिल को दोबारा सदन से पारित कराकर राज्यपाल को भेज दिया. इस बिल का मकसद था कि 1932 के खतियान आधारित स्थानीय को ही सरकार के तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरी का लाभ मिल सके. फिलहाल यह बिल पेंडिंग मोड में है.
वहीं वर्तमान राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने अप्रैल 2023 में यह कहते हुए आरक्षण की सीमा बढ़ाने से जुड़े बिल को लौटा दिया कि इसकी संवैधानिक दृष्टिकोण से समीक्षा करने की जरुरत है. उन्होंने विधेयक पर अटार्नी जनरल से लिए गये सुझाव का हवाला दिया.
हालांकि कई ओबीसी संगठनों ने कहा था कि राज्य में एसटी की आबादी 26 प्रतिशत है. फिर उन्हें 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 28 प्रतिशत आरक्षण कैसे दिया जा सकता है. वहीं अनुमान के हवाले से कहा गया था कि ओबीसी की आबादी 54 प्रतिशत से ज्यादा है. इसलिए 27 प्रतिशत के बजाए उसी अनुपात में आरक्षण मिलना चाहिए. इसके लिए सरकार को बिहार की तरह पहले जातीय आधारित सर्वेक्षण कराकर राज्यपाल को प्रस्ताव भेजना चाहिए था.
बहरहाल, एक बड़ी स्ट्रेटजी को ध्यान में रखकर यह कदम उठाया गया था ताकि तीनों प्रस्ताव पारित नहीं होने पर केंद्र सरकार को घेरा जा सके. अब ठंडे पड़े इन तीनों संवेदनशील मामलों को सत्ताधारी दलों ने लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नये सीरे से उठाकर भाजपा को घेरने की कवायद शुरु कर दी है. अब देखना होगा कि इसका क्या साइड इफेक्ट होता है.
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