रांची: झारखंड के संथाल इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठ से डेमोग्राफी के प्रभावित होने का मामला दिन ब दिन गहराता जा रहा है. अब यह मामला राजनीतिक खींचतान के दायरे से बाहर निकलकर हाईकोर्ट तक पहुंच चुका है.
बांग्लादेशी घुसपैठ से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विद्युत रंजन सारंगी और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने इस बात पर कड़ी नाराजगी जतायी है. कोर्ट ने पूछा कि पिछली सुनवाई में संथाल के सभी छह जिलों के उपायुक्तों को शपथ पत्र के जरिए रिपोर्ट मांगी गयी थी, तो फिर उनकी जगह कनीय पदाधिकारियों ने कैसे रिपोर्ट दे दी. यह कहते हुए खंडपीठ ने कनीय पदाधिकारियों के शपथ पत्र को खारिज कर दिया. साथ ही संथाल परगना प्रमंडल के दुमका, पाकुड़, साहिबगंज, जामताड़ा, देवघर और गोड्डा के डीसी को फ्रेश शपथ पत्र दायर करने को कहा है.
झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता धीरज कुमार ने बताया कि पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि संबंधित छह राज्यों के डीसी और एसपी की रिपोर्ट को खुद मुख्य सचिव खुद मॉनिटर करेंगे. लेकिन शपथ पत्र को उपायुक्त के बजाए कनीय पदाधिकारियों के हवाले से दायर कर दिया गया. मामले की सुनवाई अगले सप्ताह होगी.
बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण डेमोग्राफी पर पड़ रहे प्रभाव का हवाला देते हुए दानियल दानिश ने जनहित याचिका दायर की थी. इस मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था कि अगर बांग्लादेशी घुसपैठिए आपकी जमीन पर रहकर सुविधा का लाभ उठा रहे हैं तो आपके उनकी पहचान कर बांग्लादेश वापस भेजना होगा.
याचिका के मुताबिक संथाल के इन जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठ हुआ है. यहां आने के बाद बांग्लादेशी यहां की आदिवासियों लड़कियों के साथ शादी कर लेते हैं. इससे डेमोग्राफी पर असर पड़ रहा है. याचिका के मुताबिक केंद्र सरकार को बताना चाहिए कि बॉर्डर से घुसपैठ कैसे हो रहा है दरअसल, इस मसले को मुख्य विपक्षी दल भाजपा जोर शोर से उठा रही है. भाजपा की दलील है कि घुसपैठ को नहीं रोका गया तो आने वाले समय में संथाल में आदिवासी खोजना मुश्किल हो जाएगा.
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