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झारखंड में मंईयां को सम्मान, आंगनबाड़ी में बच्चे पालने वाली सेविकाओं पर नहीं है सरकार का ध्यान, आंदोलन का ऐलान - OUTRAGE AMONG ANGANWADI SEVIKAS

झारखंड में मंईयां सम्मान योजना पर तो सरकार का ध्यान है, लेकिन आरोप है कि आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है.

OUTRAGE AMONG ANGANWADI SEVIKAS
प्रतीकात्मक तस्वीर (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 30, 2025, 3:26 PM IST

Updated : Jan 30, 2025, 4:59 PM IST

रांची: झारखंड में इन दिनों 'एक आंख में काजल और एक आंख में सुरमा' वाली कहावत चर्चा के केंद्र में है. क्योंकि एक तरफ 18 साल से 50 साल तक की युवती/महिलाओं को बिना काम कराए सरकार मंईयां सम्मान योजना के तहत 2500 रुपए प्रति माह दिया जा है, तो दूसरी तरफ आंगनबाड़ी केंद्रों में 3 से 5 साल के बच्चों को पोषणयुक्त आहार के साथ शिक्षा देकर राज्य की बुनियाद मजबूत कर रही सूबे की सेविकाओं और सहायिकाओं को अपनी मेहनत के पैसे के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है.

आंगनबाड़ी केंद्रों में काम करने वाली सेविकाओं और सहायिकाओं को पिछले छह माह से केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाला मानदेय बकाया है. इसके लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए 24 फरवरी से शुरू हो रहे बजट सत्र के दौरान विधानसभा घेराव का ऐलान किया गया है. आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन का दावा है कि इस आंदोलन में सूबे की 30 से 40 हजार सेविका-सहायिकाएं शामिल होंगी.

वादा पूरा नहीं कर रही राज्य सरकार

झारखंड प्रदेश आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बालमुकुंद सिन्हा का कहना है कि सेविका को कुल 10500 रुपए प्रतिमाह मानदेय मिलता है. जिसमें राज्य सरकार 6 हजार और केंद्र सरकार 4500 रुपए देती है. सहायिकाओं को ठीक इसकी आधी राशि यानी 5250 मिलती है. राज्य सरकार 3000 रुपए जबकि केंद्र सरकार 2250 रुपए प्रतिमाह देती है. लेकिन पिछले अक्टूबर माह से केंद्र सरकार ने अपनी हिस्सेदारी नहीं दी है. यूनियन का कहना है कि साल 2022 में सीएम और विभागीय अधिकारियों के साथ वार्ता के दौरान भरोसा दिलाया गया था कि केंद्र सरकार की हिस्सेदारी को बकाया नहीं रहने दिया जाएगा. राज्य सरकार अपने फंड से पैसे देकर केंद्र से राशि आने के बाद एडजस्ट कर लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.

उधार के पैसे से चल रहे हैं आंगनबाड़ी केंद्र

आंगनबाड़ी केंद्रों पर चावल तो पहुंच जाते हैं लेकिन दाल नहीं मिलता. गैस की व्यवस्था भी नहीं है. सेविकाओं को उधार में दाल लेकर सेंटर चलाना पड़ रहा है. बच्चों को हर दिन अंडा देना है. लेकिन सरकार एक अंडा के बदले 6 रुपए देती है. जबकि बाजार में एक अंडे की कीमत 7 रुपए से ज्यादा हो गई है. वर्कर्स यूनियन के मुताबिक आंगनबाड़ी केंद्र पर सुबह के वक्त नाश्ते में हलवा परोसा जाता है. दोपहर में चावल-दाल की खिचड़ी दी जाती है. इसके साथ अंडा भी दिया जाता है. लेकिन जो बच्चे अंडा नहीं खाते उनके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है.

डाटा एंट्री नहीं होने पर काटा जाता है मानदेय

सेविकाओं की दलील है कि पूरे माह काम करने के बावजूद बमुश्किल 14 से 17 दिन की हाजिरी बन रही है. नेटवर्क के अभाव में डाटा इंट्री नहीं होने पर पैसे काट लिए जाते हैं. जबकि ऑफलाइन मोड पर सारी रिपोर्ट तैयार रहती है. केंद्र की गतिविधियों का वीडियो और डाटा ऑनलाइन अपलोड करने के लिए आज तक मोबाइल की सुविधा नहीं दी गई है. जबकि चुनाव के दौरान सेविकाओं से बीएलओ का भी काम लिया जाता है.

कई मोर्चों पर साथ के बाद भी उपेक्षा

आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन की दलील है कि कोविड महामारी के दौरान पंचायत स्तर पर सरकार का हाथ बंटाया था. तब सरकार ने जागरुकता अभियान चलाने के बदले यात्रा भत्ता देने का भरोसा दिलाया था. लेकिन आज तक यात्रा भत्ता नहीं मिला. जुलाई,2024 में मंईयां सम्मान योजना की लाभुकों को जोड़ने के लिए व्यापक स्तर पर सहयोग के बावजूद कोई यात्रा भत्ता नहीं मिला. यही नहीं दिसंबर और जनवरी में कड़ाके की ठंड का हवाला देकर तमाम स्कूल बंद कर दिए गये थे. लेकिन आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन होता रहा. फिर भी सेविकाओं को हाशिए पर रखा गया है.

आंगनबाड़ी केंद्र और सेविका-सहायिकाओं का डाटा

राष्ट्रीय स्तर पर आंगनबाड़ी परियोजना की शुरुआत 2 अक्टूबर 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी. राज्य में करीब 38,432 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. इनके संचालन की जिम्मेदारी 76,864 आंगनबाड़ी सेविका और सहायिकाओं के कंधों पर है. सेविकाओं का काम है आंगनबाड़ी में 3 से पांच साल के बच्चों को पोषणयुक्त भोजन के साथ-साथ बेसिक शिक्षा देना. यह बड़ी जिम्मेदारी वाला काम है. क्योंकि झारखंड के लिए कुपोषण एक गंभीर समस्या है. लिहाजा, राज्य के स्वास्थ्य की बुनियाद को मजबूत करने के लिए सेविकाएं सबसे अहम भूमिका निभातीं हैं.

24 फरवरी को बजट सत्र के दौरान विधानसभा घेराव के क्रम में वर्कर्स यूनियन ने सरकार को कई मांगों से अवगत कराने का फैसला लिया है. इसके मुताबिक सेविकाओं को सरकार कर्मी का दर्जा मिले. समान काम के बदले समान वेतन वाला मानदेय मिले. रिटायर होने पर पेंशन की सुविधा मिले. काम के दौरान मृत्यु होने पर अनुकंपा पर नौकरी की मांग की जाएगी.

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आंगनबाड़ी केंद्रों में काम करने वाली सेविकाओं और सहायिकाओं को पिछले छह माह से केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाला मानदेय बकाया है. इसके लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए 24 फरवरी से शुरू हो रहे बजट सत्र के दौरान विधानसभा घेराव का ऐलान किया गया है. आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन का दावा है कि इस आंदोलन में सूबे की 30 से 40 हजार सेविका-सहायिकाएं शामिल होंगी.

वादा पूरा नहीं कर रही राज्य सरकार

झारखंड प्रदेश आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बालमुकुंद सिन्हा का कहना है कि सेविका को कुल 10500 रुपए प्रतिमाह मानदेय मिलता है. जिसमें राज्य सरकार 6 हजार और केंद्र सरकार 4500 रुपए देती है. सहायिकाओं को ठीक इसकी आधी राशि यानी 5250 मिलती है. राज्य सरकार 3000 रुपए जबकि केंद्र सरकार 2250 रुपए प्रतिमाह देती है. लेकिन पिछले अक्टूबर माह से केंद्र सरकार ने अपनी हिस्सेदारी नहीं दी है. यूनियन का कहना है कि साल 2022 में सीएम और विभागीय अधिकारियों के साथ वार्ता के दौरान भरोसा दिलाया गया था कि केंद्र सरकार की हिस्सेदारी को बकाया नहीं रहने दिया जाएगा. राज्य सरकार अपने फंड से पैसे देकर केंद्र से राशि आने के बाद एडजस्ट कर लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.

उधार के पैसे से चल रहे हैं आंगनबाड़ी केंद्र

आंगनबाड़ी केंद्रों पर चावल तो पहुंच जाते हैं लेकिन दाल नहीं मिलता. गैस की व्यवस्था भी नहीं है. सेविकाओं को उधार में दाल लेकर सेंटर चलाना पड़ रहा है. बच्चों को हर दिन अंडा देना है. लेकिन सरकार एक अंडा के बदले 6 रुपए देती है. जबकि बाजार में एक अंडे की कीमत 7 रुपए से ज्यादा हो गई है. वर्कर्स यूनियन के मुताबिक आंगनबाड़ी केंद्र पर सुबह के वक्त नाश्ते में हलवा परोसा जाता है. दोपहर में चावल-दाल की खिचड़ी दी जाती है. इसके साथ अंडा भी दिया जाता है. लेकिन जो बच्चे अंडा नहीं खाते उनके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है.

डाटा एंट्री नहीं होने पर काटा जाता है मानदेय

सेविकाओं की दलील है कि पूरे माह काम करने के बावजूद बमुश्किल 14 से 17 दिन की हाजिरी बन रही है. नेटवर्क के अभाव में डाटा इंट्री नहीं होने पर पैसे काट लिए जाते हैं. जबकि ऑफलाइन मोड पर सारी रिपोर्ट तैयार रहती है. केंद्र की गतिविधियों का वीडियो और डाटा ऑनलाइन अपलोड करने के लिए आज तक मोबाइल की सुविधा नहीं दी गई है. जबकि चुनाव के दौरान सेविकाओं से बीएलओ का भी काम लिया जाता है.

कई मोर्चों पर साथ के बाद भी उपेक्षा

आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन की दलील है कि कोविड महामारी के दौरान पंचायत स्तर पर सरकार का हाथ बंटाया था. तब सरकार ने जागरुकता अभियान चलाने के बदले यात्रा भत्ता देने का भरोसा दिलाया था. लेकिन आज तक यात्रा भत्ता नहीं मिला. जुलाई,2024 में मंईयां सम्मान योजना की लाभुकों को जोड़ने के लिए व्यापक स्तर पर सहयोग के बावजूद कोई यात्रा भत्ता नहीं मिला. यही नहीं दिसंबर और जनवरी में कड़ाके की ठंड का हवाला देकर तमाम स्कूल बंद कर दिए गये थे. लेकिन आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन होता रहा. फिर भी सेविकाओं को हाशिए पर रखा गया है.

आंगनबाड़ी केंद्र और सेविका-सहायिकाओं का डाटा

राष्ट्रीय स्तर पर आंगनबाड़ी परियोजना की शुरुआत 2 अक्टूबर 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी. राज्य में करीब 38,432 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. इनके संचालन की जिम्मेदारी 76,864 आंगनबाड़ी सेविका और सहायिकाओं के कंधों पर है. सेविकाओं का काम है आंगनबाड़ी में 3 से पांच साल के बच्चों को पोषणयुक्त भोजन के साथ-साथ बेसिक शिक्षा देना. यह बड़ी जिम्मेदारी वाला काम है. क्योंकि झारखंड के लिए कुपोषण एक गंभीर समस्या है. लिहाजा, राज्य के स्वास्थ्य की बुनियाद को मजबूत करने के लिए सेविकाएं सबसे अहम भूमिका निभातीं हैं.

24 फरवरी को बजट सत्र के दौरान विधानसभा घेराव के क्रम में वर्कर्स यूनियन ने सरकार को कई मांगों से अवगत कराने का फैसला लिया है. इसके मुताबिक सेविकाओं को सरकार कर्मी का दर्जा मिले. समान काम के बदले समान वेतन वाला मानदेय मिले. रिटायर होने पर पेंशन की सुविधा मिले. काम के दौरान मृत्यु होने पर अनुकंपा पर नौकरी की मांग की जाएगी.

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Last Updated : Jan 30, 2025, 4:59 PM IST
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