रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव में सबकी नजर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत उनके कैबिनेट में शामिल 11 मंत्रियों पर टिकी हुई है. मंत्रियों के सामने एंटी इंकम्बेंसी एक बड़ा फैक्टर हो सकता है. इसके साथ ही मंत्री होने का बेनिफिट भी मिल सकता है. चुनावी रण में सीएम समेत आठ मंत्रियों का सामना भाजपा के प्रत्याशियों से है. शेष चार में से दो सीटों पर आजसू, एक सीट पर लोजपा(आर) और एक सीट पर जदयू के साथ मुकाबला है.
चतरा सीट पर मंत्री सत्यानंद भोक्ता की जगह राजद ने उसकी बहू रश्मि प्रकाश को प्रत्याशी बनाया है. उनका मुकाबला राजद से लोजपा(आर) में आए जनार्दन पासवान से है. कुल मिलाकर देखें तो हाई प्रोफाइल सीटों पर लड़ाई एनडीए और इंडिया ब्लॉक के प्रत्याशियों के बीच है. अब सवाल है कि ऐसी कौन-कौन सी सीटें हैं जहां मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है. फिलहाल मंत्रियों से जुड़ी डुमरी ही एकमात्र ऐसी सीट है जहां जेएलकेएम के सुप्रीमो जयराम महतो के उतरने से त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना जताई जा रही है.
बरहेट सीट का समीकरण
यह राज्य की हाईप्रोफाइल सीट है. क्योंकि इसका नेतृत्व खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कर रहे हैं. 2019 के चुनाव में हेमंत सोरेन ने भाजपा के सिमोन मालतो को 25,740 वोट के अंतर से हराया था. 2014 में भाजपा ने झामुमो के कद्दावर नेता रहे हेमलाल मुर्मू को हेमंत सोरेन के खिलाफ उतारा था. लेकिन हेमलाल मुर्मू 24,087 वोट से हार गये थे. 2009 में इस सीट पर झामुमो प्रत्याशी रहे हेमलाल मुर्मू की जीत हुई थी. उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी विजय हांसदा को हराया था. वर्तमान में हेमलाल और विजय हांसदा झामुमो के नेता हैं. विजय हांसदा राजमहल से झामुमो सांसद हैं. इस बार भाजपा ने गामलियल हेंब्रम को सीएम के खिलाफ उतारा है. गामलियल ने आजसू की टिकट पर 2019 का चुनाव लड़ा था. तब उनको सिर्फ 2,573 वोट मिले थे. उनकी जमानत जब्त हो गई थी.
गढ़वा में एक पार्टी को लगातार नहीं मिली है जीत
यह ऐसी सीट है जहां पिछले चार चुनावों के दौरान किसी पार्टी को दोबारा जीत नसीब नहीं हुई है. यह अलग बात है कि सत्येंद्र नाथ तिवारी लगातार दो बार जरुर जीते. लेकिन एक बार जेवीएम की टिकट पर तो दूसरी बार भाजपा की टिकट पर. इस बार मुकाबला मंत्री मिथिलेश ठाकुर और भाजपा के सत्येंद्र नाथ तिवारी के बीच है. 2019 में मिथिलेश ठाकुर ने भाजपा के सत्येंद्र नाथ तिवारी को 23, 522 वोट के अंतर से हराकर पहली बार जीत हासिल की थी. पलामू प्रमंडल में झामुमो का झंडा बुलंद करने का उन्हें इनाम भी मिला. पहली जीत के साथ ही मिथिलेश ठाकुर को हेमंत कैबिनेट में जगह मिल गई. उन्हें सीएम हेमंत का बेहद करीबी भी बताया जाता है. 2014 में गढ़वा से भाजपा के सत्येंद्र नाथ तिवारी जीते थे. दूसरे स्थान पर राजद के गिरिनाथ सिंह थे. उस चुनाव में झामुमो के मिथिलेश ठाकुर तीसरे स्थान पर रहे थे. 2009 में जेवीएम की टिकट पर सत्येंद्र नाथ तिवारी जीते थे. राजद के गिरिनाथ सिंह दूसरे और झामुमो के मिथिलेश ठाकुर तीसरे स्थान पर थे. 2005 में यह सीट राजद के गिरिनाथ सिंह के पास थी.
डुमरी के मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं जयराम
यह सीट झामुमो की परंपरागत सीट रही है. यहां से जगरनाथ महतो जीतते रहे हैं. कोरोना काल में संक्रमण के बाद असमय निधन की वजह से उनकी पत्नी बेबी देवी को झामुमो ने मैदान में उतारा था. चुनाव से पहले उन्हें मंत्री पद की शपथ दिला दी गई थी. उनके साथ सहानुभूति की लहर थी. 5 सितंबर 2023 को हुए उपचुनाव में बेबी देवी ने आजसू की यशोदा देवी को 17,153 वोट के अंतर से हराया था. इस बार भी मंत्री बेबी देवी का सामना आजसू की यशोदा देवी से है. लेकिन जेएलकेएल के जयराम महतो के मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है. दरअसल, डुमरी विस क्षेत्र गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. लोकसभा चुनाव में जयराम महतो को डुमरी इलाके में झामुमो और आजसू प्रत्याशी से ज्यादा वोट मिले थे. हालांकि लोकसभा का चुनाव आजसू प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी ने जीता था. दूसरे स्थान पर झामुमो के मथुरा महतो थे. इस बार डुमरी में चौंकाने वाले रिजल्ट की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
चाईबासा सीट पर झामुमो की है जबरदस्त पकड़
इस सीट पर झामुमो की जबरदस्त पकड़ है. वर्तमान मंत्री दीपक बिरुआ यहां से लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं. जेल से बाहर आने के बाद दोबारा सीएम बनने पर हेमंत सोरेन ने बिरुआ को कैबिनेट में शामिल किया था. इस बार भाजपा ने गीता बलमुचू को दीपक बिरुआ के सामने मैदान में उतारा है. गीता बलमुचू चाईबासा नगर परिषद की अध्यक्ष रह चुकी हैं. अपने इलाके में बतौर भाजपा कार्यकर्ता सक्रिय रहीं हैं. साल 2000 में यह सीट कांग्रेस के बागुन सुंब्रई के पास थी. 2005 में पहली बार भाजपा के पुतकर हेंब्रम जीते थे. उस चुनाव में दीपक बिरुआ निर्दलीय लड़कर दूसरे स्थान पर रहे थे. इसके बाद उनको कोई नहीं हरा पाया.
घाटशिला सीट होता रहा है उथल पुथल
घाटशिला सीट पर पूरा समीकरण बदल गया है. इसबार घाटशिला के विधायक सह मंत्री रामदास सोरेन के सामने झामुमो के कद्दावर नेता रहे चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भाजपा ने मैदान में उतारा है. यहां कांटे की टक्कर की उम्मीद जतायी जा रही है. एक दौर था जब घाटशिला में कांग्रेस का दबदबा था. कांग्रेस के प्रदीप बलमुचू ने साल 2000 और 2005 का चुनाव जीता था. 2005 में बलमुचू ने वर्तमान विधायक रामदास सोरेन को हराया था. तब रामदास सोरेन निर्दलीय चुनाव लड़े थे. लेकिन 2009 में झामुमो की टिकट पर रामदास सोरेन ने बलमुचू को हराकर पहली जीत दर्ज की थी. हालांकि 2014 में भाजपा के लक्ष्मण टुडू ने रामदास सोरेन को हरा दिया था. लेकिन 2019 में रामदास सोरन ने भाजपा के लखन चंद्र मार्डी को हराकर अपना लोहा मनवाया था. लिहाजा, चंपाई सोरेन के भाजपा में जाने पर उन्हें हेमंत कैबिनेट में पहली बार जगह मिली. खास बात है कि 2019 में आजसू ने प्रदीप बलमुचू को प्रत्याशी बनाया था. वह तीसरे स्थान पर रहे थे. लेकिन भाजपा और आजसू प्रत्याशी का कुल वोट रामदास सोरेन को मिले वोट से 27 हजार से ज्यादा थे. ऐसे में गठबंधन के तहत इस सीट पर जबरदस्त मुकाबले के आसार हैं.
लातेहार सीट पर दल बदलुओं की रही है चांदी
इस सीट पर जीत के लिए दलबदल का दौर चलता रहा है. इस बार झामुमो के विधायक सह मंत्री बैद्यनाथ राम का सामना भाजपा के प्रकाश राम से है. 2005 में राजद की टिकट पर प्रकाश राम जीते थे. तब बैद्यनाथ राम जदयू प्रत्याशी के तौर पर तीसरे स्थान पर थे. 2009 में भाजपा में आकर बैद्यनाथ राम ने राजद के प्रकाश राम को हरा दिया था. 2014 में प्रकाश राम ने जेवीएम की टिकट पर लातेहार सीट पर जीत हासिल की थी. 2019 में बैद्यनाथ राम झामुमो में चले गये और भाजपा के प्रकाश राम को पटखनी दे दी. इसबार भी दोनों आमने-सामने हैं.
मधुपुर सीट पर जीत दोहराने का नहीं है रिकॉर्ड
इस सीट पर झामुमो और भाजपा के बीच सीधी टक्कर होती रही है. राज्य बनने के बाद मधुपुर में हुए चुनाव में कोई प्रत्याशी जीत को नहीं दोहरा पाया है. इस बार मुकाबला विधायक सह मंत्री हफीजुल हसन से भाजपा प्रत्याशी गंगा नारायण सिंह के बीच है. 2019 में इस सीट को झामुमो के हाजी हुसैन अंसारी ने जीता था. भाजपा के राज पलिवार दूसरे स्थान पर रहे थे. लेकिन कोरोना काल में हाजी हुसैन के असमय निधन के बाद 17 अप्रैल 2021 को हुए उपचुनाव में उनके पुत्र हफीजुल हसन ने जीत दर्ज की. हसन का सामना भाजपा के गंगा नारायण सिंह से हुआ था. खास बात है कि चुनाव से पहले मंत्री बनाए जाने के बावजूद हफीजुल हसन को 1,10,812 वोट जबकि भाजपा के गंगा नारायण को 1,05,565 वोट मिले थे. इससे पहले 2005 में भाजपा के राज पलिवार, 2009 में झामुमो के हाजी हुसैन अंसारी जबकि 2014 में भाजपा के राज पलिवार विजयी हुए थे.
लोहरदगा में दिलचस्प हो सकता है मुकाबला
लोहरदगा सीट पर विधायक सह मंत्री रामेश्वर उरांव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. उनका मुकाबला आजसू की नीरू शांति भगत से है. 2019 में टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस छोड़कर भाजपा की टिकट पर सुखदेव भगत ने चुनाव लड़ा था. लेकिन कांग्रेस के रामेश्वर उरांव से बड़े मार्जिन से हार गया थे. हालांकि उस चुनाव में आजसू की नीरू शांति भगत (पूर्व विधायक दिवंगत कमल किशोर भगत की पत्नी) तीसरे स्थान पर रहीं थी. भाजपा और आजसू का कुल वोट विजयी रहे रामेश्वर उरांव से ज्यादा था. लिहाजा, यहां एनडीए और इंडिया ब्लॉक में सीधी टक्कर है. रामेश्वर उरांव के साथ प्लस प्वाइंट यह है कि लोहरदगा लोकसभा सीट कांग्रेस के सुखदेव भगत के पास है. इसका उन्हें फायदा मिलने की संभावना है. 2009 और 2014 में आजसू के आजसू के कमल किशोर भगत ने यहां से जीत दर्ज की थी. 2005 में कांग्रेस के सुखदेव भगत यहां के विधायक थे.
इस सीट पर मुकाबला कांग्रेस के विधायक सह मंत्री बन्ना गुप्ता और जदयू के सरयू राय के बीच है. दोनों के बीच का विवाद व्यक्तिगत आरोपों तक जा चुका है. लेकिन दिलचस्प बात ये हैं कि सरयू राय पहली बार यहां से जदयू के प्रत्याशी बने हैं. वह 2005 और 2009 में बन्ना गुप्ता हो भाजपा की टिकट पर हरा चुके हैं. वहीं 2014 में बन्ना गुप्ता भी सरयू राय को हरा चुके हैं. 2019 में दोनों की टक्कर नहीं हो पाई क्योंकि सरयू राय ने तत्कालीन सीएम रहे रघुवर दास को जमशेदपुर पूर्वी सीट पर बतौर निर्दलीय चुनौती देकर मात दे दी थी. वह भाजपा का टिकट नहीं मिलने पर नाराज थे. इस बार उनके साथ एनडीए का समर्थन है. उनके पक्ष में बिहार के सीएम नीतीश कुमार के भी चुनाव प्रचार करने की संभावना है. लिहाजा, यहां कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है.
महगामा में होगा महामुकाबला
मुकाबला वर्तमान विधायक सह मंत्री दीपिका पांडेय सिंह और भाजपा के अशोक कुमार भगत के बीच है. पहली बार चुनाव जीतने वाली दीपिका पांडेय सिंह को जुलाई 2024 में दोबारा सीएम बने हेमंत के कैबिनेट में कांग्रेस ने मंत्री बनाया था. उनके साथ अगड़ी और पिछड़ी जाति के साथ-साथ मुस्लिम वोट का समीकरण है. लेकिन गौर करने वाली बात है कि भाजपा प्रत्याशी अशोक कुमार भगत की भी महगामा में जबरदस्त पकड़ है. वह साल 2000 और 2005 का चुनाव भाजपा की टिकट पर जीत चुके हैं. 2009 में कांग्रेस के राजेश रंजन जीते थे. 2014 में तीसरा बार अशोक कुमार भगत की जीत हुई थी. लेकिन 2019 में कांग्रेस की दीपिका पांडेय सिंह ने अशोक कुमार भगत को बड़े अंतर से हरा दिया था.
जामताड़ा में कौन जमाएगा पांव
भाजपा ने सीता सोरेन को प्रत्याशी बनाकर जामताड़ा के समीकरण को दिलचस्प बना दिया है. क्योंकि यहां से झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन भी अप्रैल 2009 का उपचुनाव जीत चुके हैं. वहीं वर्तमान विधायक सह मंत्री इरफान अंसारी के सामने हैट्रिक लगाने की चुनौती है. साल 2000 में इरफान के पिता फुरकान अंसारी ने कांग्रेस की टिकट पर भाजपा के विष्णु प्रसाद भैया को हराया था. 2005 में विष्णु प्रसाद भैया ने पहली बार यहां कमल खिलाया था. 2009 में विष्णु भैया ने भाजपा छोड़कर झामुमो की टिकट पर दोबारा चुनाव जीता. उन्होंने कांग्रेस के फुरकान अंसारी को हराया था. लेकिन उन्होंने झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के लिए सीट छोड़ दी थी. 2014 में कांग्रेस के इरफान अंसारी ने पाशा पलट दिया. उस चुनाव में भाजपा के बिरेंद्र मंडल दूसरे और झामुमो के विष्णु प्रसाद भैया तीसरे स्थान पर रहे थे. 2019 में भी इरफान ने भाजपा के बिरेंद्र मंडल को हरा दिया. इस बीच इरफान अंसारी द्वारा सीता सोरेन के खिलाफ विवादित टिप्पणी से मामला गरमा गया है. इस सीट पर हार-जीत का निर्णय आदिवासी वोटरों की गोलबंदी पर निर्भर करेगा.
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