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ये हैं झामुमो के किले, जिसे आज तक नहीं भेद पाई बीजेपी, इस बार जीत की उम्मीद!

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के लिए 81 सीटों पर जंग होगी. लेकिन इनमें कुछ सीटें ऐसी हैं जिन पर झामुमो कभी नहीं हारी है.

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 3 hours ago

JHARKHAND ASSEMBLY ELECTIONS 2024
डिजाइन इमेज (ईटीवी भारत)

रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 का एलान हो चुका है, पहले फेज के लिए नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. लेकिन 81 सीटों वाले झारखंड विधानसभा की कुछ सीटें ऐसी हैं जिस पर सिर्फ एक ही पार्टी का दबदबा रहा है. झारखंड गठन के बाद से यहां कोई दूसरी पार्टी जीत हासिल नहीं कर पाई है. इस रिपोर्ट में जानिए वह कौन से विधानसभा क्षेत्र हैं जो झामुमो के गढ़ कहे जाते हैं, जिसे आज तक कोई भेद नहीं पाया है.

झारखंड गठन के बाद अब तक राज्य में चार विधानसभा चुनाव हुए हैं. झारखंड 81 विधानसभा सीटों में पांच ऐसी सीटें हैं जिन्हें झामुमो का गढ़ माना जाता है. ये वे अभेद्य किला माना जाता है जिसे अभी तक कोई भी पार्टी भेद नहीं पाई है.

इन सीटों पर झामुमो रहा है अजेय
झारखंड का बरहेट, लिट्टीपाड़ा, शिकारीपाड़ा, डुमरी और सरायकेला वे सीटें हैं जिस पर कभी कोई भी पार्टी झामुमो को मात नहीं दे पाई है. बरहेट से हेमंत सोरेन लगातार 2014 और 2019 में विजयी रहे हैं. एक बार फिर कहा जा रहा है कि हेमंत सोरेन बरहेट से ही चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में उन्हें मात देना विरोधियों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है. हेमंत सोरेन से पहले बरहेट सीट पर 2009 में झामुमो के हेमलाल मुर्मू और 2005 में थॉमस सोरेन जीत हासिल कर चुके हैं. लगातार जीत की वजह से यह सीट झामुमो की सबसे सेफ सीटों में से एक मानी जाती है.

शिकारीपाड़ा रहा है झामुमो का गढ़

शिकारीपाड़ा सीट पर भी झामुमो को कभी भी हार का सामना नहीं करना पड़ा. इस सीट पर नलिन सोरेन अजेय रहे हैं. 2024 के चुनाव में उन्होंने दुमका से लोकसभा चुनाव लड़कर जीत हासिल की है. इसलिए उन्हें शिकारीपाड़ा सीट से इस्तीफा देना पड़ा. नलिन यहां से साल 2000, 2005, 2009, 2014 और 2019 में विधायक रहे.

डुमरी विधानसभा सीट पर झामुमो को नहीं दे सका कोई मात

डुमरी विधानसभा सीट भी झामुमो का एक अभेद्य किला है. झारखंड गठन के बाद से यहां पर किसी और पार्टी ने जीत हासिल नहीं की है. यहां से झामुमो के कद्दावर नेता रहे जगरनाथ महतो ने 2005 से 2019 तक लगातार जीत दर्ज की. उनके निधन के बाद पार्टी ने उनकी पत्नी को यहां से टिकट दिया और उन्होंने भी इस सीट पर जीत दर्ज करते हुए झामुमो के गढ़ को सुरक्षित रखा. 2024 के चुनाव में भी यहां से उन्हें टिकट दिए जाने की चर्चा है.

सरायकेला सीट पर झामुमो का रहा दबदबा

कोल्हान प्रमंडल की सरायकेला सीट पर भी झामुमो अजेय रहा है. यहां से पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन झारखंड गठन के बाद से ही जीत हासिल करते आ रहे हैं. लेकिन खास बात ये है कि इस बार चंपाई बीजेपी में हैं. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या यहां पर झामुमो जीत पाती या एक बार फिर यहां से चंपाई सोरेन विजयी होकर कमल खिलाते हैं.

लिट्टीपाड़ा पर झामुमो की लगातार जीत
झारखंड के लिट्टीपाड़ा सीट पर भी झामुमो के प्रत्याशी लगातार जीत हासिल करते आ रहे हैं. संथाली और पहाड़िया जनजाति वाले इस विधानसभा क्षेत्र में झामुमो की काफी अच्छी पकड़ है. यहां पर साइमन मरांडी और उनके परिवार का काफी दबदबा रहा है. 2019 में यहां से दिनेश विलियम मरांडी ने जीत दर्ज की थी. 2017 के उपचुनाव में साइमन मरांडी यहां से जीते थे. 2014 में यहां से झामुमो के अनिल मुर्मू ने जीत दर्ज की थी. 2009 में यहां से साइमन मरांडी जीते थे. जबकि साल 2005 में यहां से सुशीला हांसदा ने जीत दर्ज की थी.

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रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 का एलान हो चुका है, पहले फेज के लिए नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. लेकिन 81 सीटों वाले झारखंड विधानसभा की कुछ सीटें ऐसी हैं जिस पर सिर्फ एक ही पार्टी का दबदबा रहा है. झारखंड गठन के बाद से यहां कोई दूसरी पार्टी जीत हासिल नहीं कर पाई है. इस रिपोर्ट में जानिए वह कौन से विधानसभा क्षेत्र हैं जो झामुमो के गढ़ कहे जाते हैं, जिसे आज तक कोई भेद नहीं पाया है.

झारखंड गठन के बाद अब तक राज्य में चार विधानसभा चुनाव हुए हैं. झारखंड 81 विधानसभा सीटों में पांच ऐसी सीटें हैं जिन्हें झामुमो का गढ़ माना जाता है. ये वे अभेद्य किला माना जाता है जिसे अभी तक कोई भी पार्टी भेद नहीं पाई है.

इन सीटों पर झामुमो रहा है अजेय
झारखंड का बरहेट, लिट्टीपाड़ा, शिकारीपाड़ा, डुमरी और सरायकेला वे सीटें हैं जिस पर कभी कोई भी पार्टी झामुमो को मात नहीं दे पाई है. बरहेट से हेमंत सोरेन लगातार 2014 और 2019 में विजयी रहे हैं. एक बार फिर कहा जा रहा है कि हेमंत सोरेन बरहेट से ही चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में उन्हें मात देना विरोधियों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है. हेमंत सोरेन से पहले बरहेट सीट पर 2009 में झामुमो के हेमलाल मुर्मू और 2005 में थॉमस सोरेन जीत हासिल कर चुके हैं. लगातार जीत की वजह से यह सीट झामुमो की सबसे सेफ सीटों में से एक मानी जाती है.

शिकारीपाड़ा रहा है झामुमो का गढ़

शिकारीपाड़ा सीट पर भी झामुमो को कभी भी हार का सामना नहीं करना पड़ा. इस सीट पर नलिन सोरेन अजेय रहे हैं. 2024 के चुनाव में उन्होंने दुमका से लोकसभा चुनाव लड़कर जीत हासिल की है. इसलिए उन्हें शिकारीपाड़ा सीट से इस्तीफा देना पड़ा. नलिन यहां से साल 2000, 2005, 2009, 2014 और 2019 में विधायक रहे.

डुमरी विधानसभा सीट पर झामुमो को नहीं दे सका कोई मात

डुमरी विधानसभा सीट भी झामुमो का एक अभेद्य किला है. झारखंड गठन के बाद से यहां पर किसी और पार्टी ने जीत हासिल नहीं की है. यहां से झामुमो के कद्दावर नेता रहे जगरनाथ महतो ने 2005 से 2019 तक लगातार जीत दर्ज की. उनके निधन के बाद पार्टी ने उनकी पत्नी को यहां से टिकट दिया और उन्होंने भी इस सीट पर जीत दर्ज करते हुए झामुमो के गढ़ को सुरक्षित रखा. 2024 के चुनाव में भी यहां से उन्हें टिकट दिए जाने की चर्चा है.

सरायकेला सीट पर झामुमो का रहा दबदबा

कोल्हान प्रमंडल की सरायकेला सीट पर भी झामुमो अजेय रहा है. यहां से पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन झारखंड गठन के बाद से ही जीत हासिल करते आ रहे हैं. लेकिन खास बात ये है कि इस बार चंपाई बीजेपी में हैं. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या यहां पर झामुमो जीत पाती या एक बार फिर यहां से चंपाई सोरेन विजयी होकर कमल खिलाते हैं.

लिट्टीपाड़ा पर झामुमो की लगातार जीत
झारखंड के लिट्टीपाड़ा सीट पर भी झामुमो के प्रत्याशी लगातार जीत हासिल करते आ रहे हैं. संथाली और पहाड़िया जनजाति वाले इस विधानसभा क्षेत्र में झामुमो की काफी अच्छी पकड़ है. यहां पर साइमन मरांडी और उनके परिवार का काफी दबदबा रहा है. 2019 में यहां से दिनेश विलियम मरांडी ने जीत दर्ज की थी. 2017 के उपचुनाव में साइमन मरांडी यहां से जीते थे. 2014 में यहां से झामुमो के अनिल मुर्मू ने जीत दर्ज की थी. 2009 में यहां से साइमन मरांडी जीते थे. जबकि साल 2005 में यहां से सुशीला हांसदा ने जीत दर्ज की थी.

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