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Jharkhand election 2024: यहां चुनाव आते ही बदल जाता है नेताओं का चोला, टिकट नहीं मिलने पर कर देते हैं बगावत - JHARKHAND ASSEMBLY ELECTION 2024

जमुआ विधानसभा के नेताओं का पार्टी बदलना कोई नई बात नहीं हैं. यहां के कई नेता समय-समय पर दल बदलते रहे हैं.

Jamua Assembly Constituency
डॉ मंजू कुमारी और केदार हाजरा. (कोलाज इमेज-ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 22, 2024, 3:09 PM IST

गिरिडीह: नेताओं का पाला बदले से चर्चा में आयी जमुआ विधानसभा सीट का इतिहास ही चोला बदलने का रहा है. जिस नेता को लगा वे अब फलां दल में फीट नहीं हैं या टिकट किसी दूसरे को मिल सकता है तो पार्टी बदलने से गुरेज नहीं करते. इस साल भी ऐसा देखने को मिला है. विधानसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले यहां के दो दिग्गज नेताओं ने पार्टी बदल दी. जहां सीटिंग एमएलए केदार हाजरा भाजपा छोड़कर झामुमो में चले गए तो डॉ मंजू कुमारी कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में चली गई हैं. वैसे यह सिलसिला पिछले पांच-छह चुनावों से जारी है.

बलदेव ने सीपीआई छोड़ थामा था राजद का दामन

हम पहले दिवंगत नेता बलदेव हाजरा की बात करते हैं. बलदेव हाजरा जमुआ के लोकप्रिय नेता रहे थे. इनका अपना वोट बैंक था. बलदेव हाजरा 1980 के चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) की टिकट पर चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में बलदेव दूसरे स्थान पर रहे. इन्हें कांग्रेस के तनेश्वर आजाद ने हराया था.

वहीं 1985 के चुनाव में बलदेव फिर से सीपीआई की टिकट पर चुनाव लड़े और इस चुनाव में तनेश्वर आजाद को हरा कर विधायक बने थे. 1990 में बलदेव फिर सीपीआई की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और भाजपा के सुकर रविदास को पराजित किया. 1995 में बलदेव को फिर से सीपीआई ने उम्मीदवार बनाया, लेकिन इस बार भाजपा के सुकर रविदास ने उन्हें पराजित किया था.

वर्ष 2000 के चुनाव में बलदेव ने पार्टी बदल दी. 2000 के दौर में सीपीआई का जनाधार घटा और लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का जनाधार बढ़ गया था. ऐसे में बलदेव राजद में शामिल हो गए और भाजपा के सुकर रविदास को भारी मतों से पराजित किया था. हालांकि बाद में बलदेव 2009 और 2014 के चुनाव में राजद की टिकट पर ही चुनावी मैदान में उतरे थे. हालांकि दोनों चुनाव में बलदेव कुछ खास नहीं कर सके.

जेएमएम-जेवीएम में आते जाते रहे चंद्रिका

क्षेत्र के दिवंगत नेता चंद्रिका महथा भी पार्टी बदलते रहे थे. 2005 के चुनाव में चंद्रिका जेएमएम की टिकट पर चुनाव लड़े थे और भाजपा के केदार से हार गए थे. 2009 में चंद्रिका जेवीएम में शामिल हो गए थे और भाकपा माले के सत्यनारायण दास को हराकर विधायक बने थे.

2014 में जेवीएम ने यहां उम्मीदवार बदल दिया और सत्यनारायण दास को उम्मीदवार बनाया था. ऐसे में चंद्रिका ने जेएमएम का दामन थाम लिया था और चुनावी मैदान में उतरे थे. हालांकि इस चुनाव में चंद्रिका पांचवें स्थान पर रहे थे. 2019 में फिर से चंद्रिका ने जेएमएम छोड़ दिया था और जेवीएम की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन भाजपा के केदार से हार गए थे. इस चुनाव में चंद्रिका तीसरे स्थान पर रहे थे.

सत्यनारायण ने भी बदल दी थी पार्टी

इस क्षेत्र के दिग्गज नेता में से एक सत्यनारायण दास भी जाने जाते रहे हैं. वर्ष 2000 में जब बलदेव ने सीपीआई छोड़ दी तो सीपीआई ने सत्यनारायण दास को उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में सत्यनारायण को 10363 मत मिले. 2005 के चुनाव में सत्यनारायण दास भाकपा माले की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और 26450 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे. 2009 में सत्यनारायण फिर से भाकपा माले की टिकट पर मैदान में उतरे और 24297 मत लाकर दूसरे स्थान पर रहे.

2014 में सत्यनारायण दास जेवीएम में चले गए और चुनाव लड़े. इस चुनाव में सत्यनारायण को 32927 मत मिले और दूसरे स्थान पर रहे. 2019 के चुनाव में जेवीएम ने इन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया तो वे आजसू पार्टी में शामिल हो गए. इस चुनाव में सत्यनारायण को महज 9668 मत मिले और वे पांचवें स्थान पर रहे.

भाजपा छोड़ने के बाद निर्दलीय लड़े सुकर रविदास

भाजपा की टिकट पर 1995 में विधायक बने सुकर रविदास को 2000 में भी भाजपा ने उम्मीदवार बनाया था. 2000 के चुनाव में सुकर राजद के बलदेव से हार गए थे. 2005 के चुनाव में भाजपा ने यहां से केदार को उम्मीदवार बनाया तो सुकर रविदास निर्दलीय ही मैदान में उतरे थे और इन्हें महज 3839 मत मिले थे. 2009 में भी सुकर निर्दलीय ही मैदान में उतरे थे और इस बार इन्हें महज 3026 मत मिले थे. अब फिर से सुकर की भाजपा में वापसी हो गई है. सुकर अपनी पुत्री मंजू के साथ वापस भाजपा में शामिल हो गए तो पार्टी ने मंजू को उम्मीदवार बनाया है.

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बलदेव ने सीपीआई छोड़ थामा था राजद का दामन

हम पहले दिवंगत नेता बलदेव हाजरा की बात करते हैं. बलदेव हाजरा जमुआ के लोकप्रिय नेता रहे थे. इनका अपना वोट बैंक था. बलदेव हाजरा 1980 के चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) की टिकट पर चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में बलदेव दूसरे स्थान पर रहे. इन्हें कांग्रेस के तनेश्वर आजाद ने हराया था.

वहीं 1985 के चुनाव में बलदेव फिर से सीपीआई की टिकट पर चुनाव लड़े और इस चुनाव में तनेश्वर आजाद को हरा कर विधायक बने थे. 1990 में बलदेव फिर सीपीआई की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और भाजपा के सुकर रविदास को पराजित किया. 1995 में बलदेव को फिर से सीपीआई ने उम्मीदवार बनाया, लेकिन इस बार भाजपा के सुकर रविदास ने उन्हें पराजित किया था.

वर्ष 2000 के चुनाव में बलदेव ने पार्टी बदल दी. 2000 के दौर में सीपीआई का जनाधार घटा और लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का जनाधार बढ़ गया था. ऐसे में बलदेव राजद में शामिल हो गए और भाजपा के सुकर रविदास को भारी मतों से पराजित किया था. हालांकि बाद में बलदेव 2009 और 2014 के चुनाव में राजद की टिकट पर ही चुनावी मैदान में उतरे थे. हालांकि दोनों चुनाव में बलदेव कुछ खास नहीं कर सके.

जेएमएम-जेवीएम में आते जाते रहे चंद्रिका

क्षेत्र के दिवंगत नेता चंद्रिका महथा भी पार्टी बदलते रहे थे. 2005 के चुनाव में चंद्रिका जेएमएम की टिकट पर चुनाव लड़े थे और भाजपा के केदार से हार गए थे. 2009 में चंद्रिका जेवीएम में शामिल हो गए थे और भाकपा माले के सत्यनारायण दास को हराकर विधायक बने थे.

2014 में जेवीएम ने यहां उम्मीदवार बदल दिया और सत्यनारायण दास को उम्मीदवार बनाया था. ऐसे में चंद्रिका ने जेएमएम का दामन थाम लिया था और चुनावी मैदान में उतरे थे. हालांकि इस चुनाव में चंद्रिका पांचवें स्थान पर रहे थे. 2019 में फिर से चंद्रिका ने जेएमएम छोड़ दिया था और जेवीएम की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन भाजपा के केदार से हार गए थे. इस चुनाव में चंद्रिका तीसरे स्थान पर रहे थे.

सत्यनारायण ने भी बदल दी थी पार्टी

इस क्षेत्र के दिग्गज नेता में से एक सत्यनारायण दास भी जाने जाते रहे हैं. वर्ष 2000 में जब बलदेव ने सीपीआई छोड़ दी तो सीपीआई ने सत्यनारायण दास को उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में सत्यनारायण को 10363 मत मिले. 2005 के चुनाव में सत्यनारायण दास भाकपा माले की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और 26450 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे. 2009 में सत्यनारायण फिर से भाकपा माले की टिकट पर मैदान में उतरे और 24297 मत लाकर दूसरे स्थान पर रहे.

2014 में सत्यनारायण दास जेवीएम में चले गए और चुनाव लड़े. इस चुनाव में सत्यनारायण को 32927 मत मिले और दूसरे स्थान पर रहे. 2019 के चुनाव में जेवीएम ने इन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया तो वे आजसू पार्टी में शामिल हो गए. इस चुनाव में सत्यनारायण को महज 9668 मत मिले और वे पांचवें स्थान पर रहे.

भाजपा छोड़ने के बाद निर्दलीय लड़े सुकर रविदास

भाजपा की टिकट पर 1995 में विधायक बने सुकर रविदास को 2000 में भी भाजपा ने उम्मीदवार बनाया था. 2000 के चुनाव में सुकर राजद के बलदेव से हार गए थे. 2005 के चुनाव में भाजपा ने यहां से केदार को उम्मीदवार बनाया तो सुकर रविदास निर्दलीय ही मैदान में उतरे थे और इन्हें महज 3839 मत मिले थे. 2009 में भी सुकर निर्दलीय ही मैदान में उतरे थे और इस बार इन्हें महज 3026 मत मिले थे. अब फिर से सुकर की भाजपा में वापसी हो गई है. सुकर अपनी पुत्री मंजू के साथ वापस भाजपा में शामिल हो गए तो पार्टी ने मंजू को उम्मीदवार बनाया है.

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