लखनऊ : भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोकगीतों में ढोलक का अपना एक विशेष स्थान है. लोकगीत, कव्वाली, ठुमरी, दादरा जैसी संगीत विधाओं में ढोलक का विशेष उपयोग होता है. इसके अलावा शादी-विवाह, धार्मिक आयोजनों जैसे शुभ कार्यों में ढोलक की मौजूदगी अनिवार्य हो जाती है. बिना इसके गीत-संगीत अधूरा ही लगता है. साथ ही लोगों में भी ढोलक के प्रति खास क्रेज होता है. इसमें हर आयु वर्ग के लोग शामिल हैं. लखनऊ में डॉक्टर श्रीकांत शुक्ला अपने शिष्यों को ढोलक की बारीकियां और इस कला को आगे बढ़ाने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं. डॉक्टर श्रीकांत का मानना है कि ढोलक बजाना न केवल एक कला है, बल्कि यह विभिन्न रोगों से राहत देने का माध्यम भी है.
सेहत के लिए भी फायदेमंद: डॉक्टर श्रीकांत शुक्ला ने ढोलक की कला झांसी घराने के उस्तादों से सीखी है. वे खुद को अब भी छात्र ही मानते हैं. उनसे सीखने वालों में बुजुर्ग, युवा और बच्चे भी शामिल हैं. केंद्रीय सेवा से रिटायर्ड जितेंद्र कुमार वर्मा बताते हैं कि संगीत और ढोलक बजाने से उनके ब्लड प्रेशर की समस्या में सुधार हुआ है. 2010 से वे ब्लड प्रेशर के रोगी थे, लेकिन ढोलक बजाने के बाद से यह काफी कंट्रोल में है. कहते हैं कि डॉक्टर ने उनकी दवा भी बंद कर दी है. उन्होंने रिटायर्ड होने के बाद अपने बचपन के शौक को पूरा करने के लिए ढोलक बजाना शुरू किया.
मिलती है मानसिक शांति: डॉक्टर श्रीकांत शुक्ला से ढोलक बजाने की बारीकियां सीखने वालों में जया द्विवेदी और परवीन मिश्रा भी शामिल हैं. वे इसे विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बजा रहे हैं. बताया कि ढोलक बजाने से उन्हें मानसिक शांति और आनंद मिलता है.
झांसी घराने का महत्वपूर्ण योगदान: झांसी घराने का ढोलक वादन में महत्वपूर्ण स्थान है. इस घराने के उस्ताद बब्बू खान और उनके वंशजों ने ढोलक को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. उस्ताद आजाद खान बताते हैं कि उनके परदादा ने ढोलक को जनाना वाद यंत्र कहे जाने के मिथक को तोड़ा और इसे समाज में प्रतिष्ठा दिलाई. लखनऊ में झांसी घराने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उस्ताद बख़्शु खान, उनके बेटे उस्ताद आजाद खान और शहजाद खान और उनके परिवार के अन्य सदस्य ढोलक की शिक्षा दे रहे हैं.
ढोलक बनाने में कौन सी लकड़ी बेहतर: उस्ताद आजाद खान ने बताया कि ढोलक निर्माण में उपयोग होने वाली लकड़ी और खाल का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है. विजय साल, सागवान, शीशम, और नीम की लकड़ी से बनी ढोलक को सबसे बेहतरीन माना जाता है. उस्ताद आजाद खान बताते हैं कि भारत में झांसी ढोलक घराना पहला ढोलक घराना है. इसके अलावा हम दूसरे ढोलक घराने को नहीं जानते हैं. करीब 100 बरस से हमारा झांसी का घराना ढोलक वाद यंत्र को बढ़ावा दे रहा है.
कोलकाता की ढोलक फेमस: बताते हैं कि कोलकाता की बनी हुई ढोलक बेहद लोकप्रिय है. उसके बाद उत्तर प्रदेश के अमरोहा में शानदार ढोलक बनाए जाते हैं. ढोलक के दोनों तरफ बकरे की खाल का प्रयोग होता है और अंदर से मसाला लगाया जाता है. तबला पखावज का हर दौर अच्छा रहा है, लेकिन ढोलक को उतार-चढ़ाव का दौर देखना पड़ा है. हमारे उस्ताद बख़्शु खान ने ढोलक को एक नई पहचान दिलाई और उन्होंने तबला-पखावज की आवाज को भी ढोलक से निकाला. ढोलक बजाने में हाथ की 10 उंगलियों का प्रयोग होता है जबकि दो उंगलियां का प्रयोग नहीं किया जाता है.
ढोलक वाद यंत्र की इस परंपरा को जीवित रखने के लिए उस्ताद बख्शु खान के बेटे आजाद खान ने इसे अपने परिवार और शिष्यों में आगे बढ़ाया है. उनके बेटे और भाई भी इस कला को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में जुटे हुए हैं. डॉक्टर श्रीकांत की पहल से यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि आने वाली पीढ़ियां इस अद्भुत वाद्य यंत्र को सीखें और इसे संरक्षित रखें. भारतीय संगीत की यह धरोहर न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना रही है. ढोलक भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना आवश्यक है
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