झाबुआ। शहर के दिलीप गेट से शुरू हुए जुलूस में नवनियुक्त बिशप पीटर खराडी और अन्य बिशप ने लोक संस्कृति के अनुसार ढोल मांदल एवं भीली नृत्य के साथ चर्च में प्रवेश किया. यहां धर्मविधि प्रारंभ हुई. मुख्य याजक आर्च बिशप ए दुरईराज थे. उनके सहयोगी की भूमिका बिशप चाको टीजे व बिशप देवप्रसाद गणावा ने निभाई. स्थानीय कैथोलिक चर्च में हुई इस धर्मविधि के 3 आर्च बिशप, 11 बिशप, 200 से अधिक फादर, 600 सिस्टर और 8 हजार समाजजन साक्षी बने.
कई बिशप मौजूद रहे
इस मौके पर गांधी नगर गुजरात के आर्च बिशप थॉमस मैकवान, भोपाल के आर्च बिशप लीयो कार्निलियों, उज्जैन के बिशप सेबेस्टियन वाडकेल, सागर के बिशप जेम्स अथिकालम, सतना के बिशप जोसेफ कोडकल्लिल, अहमदाबाद के बिशप रत्ना स्वामी, जबलपुर के बिशप जेराल्ड और बड़ौदा के बिशप सेबेस्टियाओ भी मौजूद रहे. फादर सिल्वेस्टर एवं फादर केनेडी ने फादर पीटर खराडी को बिशप बनने के लिए प्रस्तुत किया. जनसमूह के सामने रोम के संत पॉप फ्रांसिस का नियुक्ति आदेश प्रस्तुत कर उसका वाचन किया गया.
मुकुट और अंगूठी पहनाई
इस नियुक्ति आदेश को सहसम्मान भीली नृत्य के साथ पवित्र वेदी तक लाया गया. इसके बाद सभी बिशप ने नए बिशप पीटर खराड़ी के लिए प्रार्थना की. उनके सिर पर पवित्र तेल से अभियंजन किया गया. आर्च बिशप एस दुरईराज ने उनके सर पर कपडे़ का बना हुआ मुकुट और उंगली में अंगूठी पहनाकर हाथ में दंडाधिकार प्रदान किया. इसके पहले सभी बिशप ने नए और फिर झाबुआ डायोसिस में कार्यरत सभी फादर ने नए बिशप पीटर खराडी के हाथों का चुम्बन किया.
1977 में धार्मिक जीवन की शुरुआत
झाबुआ जिले के ग्राम कलदेला के निवासी बिशप पीटर खराड़ी ने 1977 में कैथोलिक डायोसिस अजमेर में संत टेरेसा गुरुकुल से अपने धार्मिक जीवन की शुरुआत की. 7 दिसंबर 1985 में उनका उपयाजकीय अभिषेक नागपुर सेमनरी में संपन्न हुआ. वहीं 6 अप्रैल 1988 में वे फादर नियुक्त हुए. थांदला पल्ली में हुए कार्यक्रम में उनका पुरोहिताई अभिषेक स्व बिशप पातालीन के द्वारा संपन्न हुआ था. 1991 से 1996 तक उन्होंने थांदला पल्ली और फिर 1996 से 1998 तक संत एंड्रयू चर्च आमलीपाडा में सहायक पल्ली पुरोहित की जिम्मेदारी निभाई.
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दो बार झाबुआ के चांसलर
वर्ष 2002 में झाबुआ डायोसिस का गठन होने के बाद वे संत जोसफ पल्ली उन्नई में पल्ली पुरोहित बने. अक्टूबर 2006 में केथेड्रिल चर्च झाबुआ में पल्ली पुरोहित और विकार जनरल के रूप में सेवाएं दी. 19 अक्टूबर 2006 से 16 जून 2009 तक दो बार कैथोलिक डायलिसिस झाबुआ के चांसलर के रूप में कार्य किया. बिशप बसिल भूरिया के निधन के उपरांत झाबुआ डायोसिस के एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में समस्त प्रशासनिक जिम्मेदारियां निभाईं.