रांची: झारखंड में जदयू हाशिए पर है. अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही नीतीश की पार्टी झारखंड में काफी कमजोर हो चुकी है. हालत यह है कि पार्टी के पास न तो कोई विधायक-सांसद है और ना ही अपना चुनाव चिन्ह. ऐसे में झारखंड की सियासी जमीन को उपजाऊ बनाने में जदयू का ट्रैक्टर फेल हो रहा है.
एक समय था जब राज्य में जदयू सत्ता का केन्द्र बिन्दु होता था. एक साथ आठ-आठ विधायक और मंत्री हुआ करते थे. राजा पीटर और सुधा चौधरी जैसे विधायक को इसी पार्टी ने मंत्री बनाया, मगर समय के साथ पार्टी के अंदर तेज हुई आंतरिक कलह ने सब कुछ मिटा दिया. वर्तमान में पार्टी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है बल्कि नये सिरे से सांगठनिक मजबूती की जिम्मेदारी खीरु महतो को दी गई है.
नीतीश के करीबी माने जाने वाले खीरु महतो राज्यसभा सांसद हैं और उनके उपर इस बार के विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी है. पार्टी के प्रदेश महासचिव संतोष सोनी कहते हैं कि बीच के सफर में कुछ कारणों से भलें ही पार्टी कमजोर हुई मगर हम वर्तमान में मजबूती के साथ चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं.
2019 में पारंपरिक चुनाव चिन्ह से भी हाथ धोया झारखंड जदयू
जदयू ही एक ऐसी पार्टी है जिसका चुनाव चिन्ह बिहार में अलग और झारखंड में अलग है. बिहार में नीतीश का तीर झारखंड में आते ही मुरझा गया. 2019 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 16 अगस्त को चुनाव आयोग के निर्णय से पार्टी को बड़ा झटका लगा. दरअसल बिहार में जदयू की शिकायत पर झामुमो को पारंपरिक चुनाव चिन्ह से हाथ धोना पड़ा तो झारखंड में जेएमएम की शिकायत पर जदयू को तीर से हाथ धोना पड़ा. चुनाव आयोग के फैसले पर ट्रैक्टर चलाता किसान फिलहाल झारखंड में जदयू का चुनाव चिन्ह है.
विधानसभा चुनाव में घटता गया वोट प्रतिशत
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जदयू का प्रदर्शन समय के साथ कमजोर होता चला गया. 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने कई सीट पर उम्मीदवार उतारे मगर एक पर भी सफलता नहीं मिली और वोट का प्रतिशत घटकर 3.8 से 0.7 पर पहुंच गया. बात यदि विधानसभा चुनाव की करें तो 2005 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 18 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जिसमें कुल वोटों का मात्र चार प्रतिशत ही मिला.
हालांकि यह चुनाव पार्टी के लिए स्वर्णिम रहा और इसमें बाघमारा, डाल्टनगंज, छतरपुर, देवघर, मांडू और तमाड़ सीट पर जीत मिली. मगर 2009 के विधानसभा चुनाव में 14 सीटों पर किस्मत आजमाने उतरे जदयू के प्रत्याशी में से सिर्फ दो सीटों पर सफलता मिली. छतरपुर और तमाड़ सीट जीतने में पार्टी सफल रही. इस चुनाव में पार्टी को पिछले चुनाव के तुलना में वोट प्रतिशत में कमी आई और 2.8% पर जदयू सिमट कर रह गया.
2014 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर जदयू ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन खाता भी नहीं खुला. इसी तरह 2019 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला जिसमें पार्टी ने 45 सीटों पर प्रत्याशी खड़ा किया लेकिन किसी भी सीट पर सफलता नहीं मिली. हालत यह कि वोट प्रतिशत गिरकर 0.7 पर पहुंच गया. 2024 का विधानसभा चुनाव सामने हैं ऐसे में पार्टी एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है. 12 सीटों पर प्रत्याशी खड़ा करने की तैयारी की गई है और एनडीए के साथ सीटों का तालमेल होने का भरोसा जताया जा रहा है.
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