जैसलमेर: जैसलमेर आज 869 साल का हो गया है. इस दौरान स्वर्णनगरी ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन इस स्वर्णनगरी की जनता ने इसे लड़खड़ाने नहीं दिया. आज जैसलमेर की ख्याति सात समुंद पार तक है. सालाना लाखों सैलानी यहां भ्रमण के लिए आते हैं. सुंदर शहर के रूप पहचाने जाने वाला जैसलमेर अब वैसा नहीं रहा.
जैसलमेर के 869वें जन्मदिवस पर शहर स्थित सोनार दुर्ग में पूर्व महारावल चैतन्यराज सिंह ने भाटी वशं की कुलदेवी स्वांगिया माता मंदिर में पूजा-अर्चना की. साथ ही जैसलमेर के संस्थापक महारावल जैसलदेव तथा जैसलमेर रियासत कालीन ध्वज का पूजन किया गया. पंडितों के मार्गदर्शन में पूर्व महारावल ने हवन में आहुतियां देकर जिले में अमन, चैन व खुशहाली की कामना की और लोगों को स्थापना दिवस की बधाई दी.
जैसलमेर दुर्ग की स्थापना महारावल जैसलदेव द्वारा विक्रम संवत 1212 में श्रावण सुदी द्वादशी (ईस्वी 1156) में की गई थी. महाराजा जैसलसिंह द्वारा नींव रखने के बाद कई राजाओं ने त्रिकूट पहाड़ी पर खड़े सोनार दुर्ग का निर्माण करवाया. महारावल जैसलदेव और मेरू पहाड़ी के नाम पर इसका नाम जैसलमेर रखा गया. देश के सुदूर पश्चिम में स्थित थार के मरुस्थल में जैसलमेर स्थित है. इनकी स्थापना यदुवंशी भाटी के वंशज रावल जैसल द्वारा भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रारंभ में लगभग 1178 ईस्वी में की गई. रावल जैसल के महान वंशजों ने भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक अपनी वंशावली को भंग किए बिना लगभग 770 वर्षों तक लगातार शासन किया. जो अपने आप में एक अनुपम घटना है.
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सल्तनत काल के लगभग 300 वर्षों के इतिहास में यह राज्य मुगल साम्राज्य से अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा था. भारत की परिस्थिति चाहे जैसी भी रही, मुगल और अंग्रेज आए और गए. राज्य के वंशजों ने अपने वंश के गौरव के महत्व को यथावत रखा. जैसलमेर के बाशिंदों की रग-रग में देशभक्ति समाई हुई है. तभी 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों में यहां के बाशिंदों ने सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अप्रतिम सहयोग किया.
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भारत-पाक सीमा पर बसा सीमावर्ती जिला जैसलमेर सामरिक रूप से खासा महत्व रखता है. लेकिन इसके साथ ही सुनहरे धोरों की चादर ओढ़े यह जिला पर्यटन के पटल पर अपनी खास पहचान रखता है. यही कारण है कि यहां हर वर्ष पर्यटन सीजन के दौरान सैकड़ों की संख्या में देसी-विदेशी पर्यटक भ्रमण पर आते हैं. यह सिलसिला साल दर साल बढ़ता जा रहा है. 869 साल पुराने इस शहर में सैलानियों को लुभाने वाली वह सभी खासियतें मौजूद हैं, जिसकी चाह लिए देश के विभिन्न कोनों के साथ ही विदेश से भी पावणे खींचे चले आते हैं. पर्यटकों को यहां उनके घर से दूर एक घर जैसा ही प्रतीत होता है. 80 के दशक से शुरू हुआ पर्यटन आज पूरे परवान पर पहुंच गया है.
मरु संस्कृति देश और दुनिया में अलहदा पहचान रखती है. जैसलमेर के शासकों और धर्मनिष्ठ धन्ना सेठों ने नायाब सोनार दुर्ग, गड़ीसर सरोवर, कलात्मक हवेलियों और वास्तुशिल्प के अनूठे नमूनों के तौर पर मंदिरों आदि का जो निर्माण करवाया. उनकी चमक समय के साथ और बढ़ती गई. आज देश व दुनिया भर से सैलानी और कलाप्रेमी लाखों की तादाद में प्रत्येक साल जैसलमेर पहुंचकर इन धरोहरों का दीदार कर स्वयं को निहाल महसूस करते हैं. वक्त के थपेड़ों ने जहां अधिकांश स्थानों से प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को विस्मृत सा कर दिया, वहीं जैसलमेर की सभ्यता और संस्कृति आज तक जीवंत बनी हुई है.