जबलपुर. मेरेगांव पाटन के जंगल में बाघ और बाघिन का एक जोड़ा छोड़ा गया है. यह जोड़ा पन्ना टाइगर रिजर्व से लाया गया है और इसे बाघों को उनके पुराने रहवास में पुनर्स्थापित करने की कोशिश के तहत किया गया है. दरअसल, पन्ना में केन बेतवा नदी परियोजना की वजह से बड़ा भू-भाग डूब क्षेत्र में आ रहा है. इसी वजह से वन्य प्राणियों के लिए नए स्थानों की खोज भी की जा रही है. जबलपुर के पास पहली बार बाघ और बाघिन का पुनर्वास एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा.
इस वजह से हो रही बाघों की शिफ्टिंग
वाइल्डलाइफ टाइगर कंजर्वेशन ग्रुप की सदस्य डॉक्टर दीपा कुलश्रेष्ठ ने कहा, ''मेरेगांव पाटन के जंगल में बाघ के जोड़े को छोड़ा जा रहा है. यह बाघ का पुराना गलियारा रहा है और यहां कभी बाघ रहा करते थे लेकिन शिकार की वजह से बाघ खत्म हो गए.'' दरअसल, पन्ना में बेतवा और केन नदियों को जोड़ने की एक परियोजना चल रही है और इस परियोजना की वजह से जंगल का बड़ा इलाका डूब में चल जाएगा. इसकी वजह से इस इलाके के वन्य प्राणियों के सामने संकट खड़ा हो जाएगा. इसलिए इस क्षेत्र के वन्य प्राणियों को नया क्षेत्र देने के लिए यह कोशिश की गई है.
नौरादेही टाइगर रिजर्व का है ये हिस्सा
पन्ना टाइगर रिजर्व से इस बाग बाघिन के जोड़े को जहां छोड़ा गया है वह मेरेगांव के पास है. यह क्षेत्र नौरादेही अभ्यारण्य का हिस्सा है, जो जबलपुर जिले से शुरू होकर नरसिंहपुर, सागर और दमोह जिले तक फैला हुआ है. यह काफी बड़ा अभ्यारण्य है और इस पूरे इलाके में अब बाघों का पुनर्वास किया जा रहा है. जबलपुर के पास में यदि बाघ के इस जोड़े ने अपनी टेरटरी बनाई तो जबलपुर के पर्यटन के लिए एक नया रास्ता खुल जाएगा.
सेटेलाइट से होगी बाघों की निगरानी
बाघ बाघिन के इस जोड़े को कॉलर आईडी भी लगाई गई है. यह कॉलर आईडी सेटेलाइट के जरिए इस जोड़े की हर खबर वन विभाग को देगा. वन्य प्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि जिस सेटेलाइट के जरिए इन जानवरों की मॉनिटरिंग की जाती है वह सैटेलाइट जर्मनी की एक कंपनी संचालित करती है. जब तक वह लोकेशन देती है तब तक 4 घंटे से ज्यादा का समय लग जाता है. इसलिए यदि भारतीय सेटेलाइट से लोकेशन ट्रेस करने की व्यवस्था की जाए तो वन्य प्राणियों की लोकेशन जानने में कम समय लगेगा.
टाइगर टेरिटरी रहा है जबलपुर
जबलपुर में बाघों को उनके रहवास में पुनर्स्थापित की कई संभावनाएं हैं. ऐसा कहा जाता है कि जब बरगी बांध के निर्माण के दौरान यहां एक दर्जन से ज्यादा बाघों की बॉडी मिली थी. मतलब इस इलाके में किसी जमाने में बहुत टाइगर हुआ करते थे. अभी भी बरगी बांध के पास के कई क्षेत्रों में काफी घने जंगल हैं, जहां टाइगर छोड़े जा सकते हैं.