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मन्नत वाली महाकाली में गजब की चमत्कारी पावर, हार कर अंग्रेज हो गए थे नर्वस

जबलपुर में रखी जाती हैं 5 हजार से ज्यादा दुर्गा प्रतिमाएं, इनमें सबसे लोकप्रिय हैं मन्नत वाली माता

MANNAT WALI MAHAKALI JABALPUR
जबलपुर की मन्नत वाली महाकाली (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 8, 2024, 10:23 AM IST

Updated : Oct 10, 2024, 7:55 AM IST

जबलपुर : काली पूजा की परंपरा बंगाल में प्रचलित है लेकिन बंगाल के बाद यदि काली पूजा सबसे ज्यादा कहीं होती है वह मध्यप्रदेश का जबलपुर शहर है. जबलपुर में बीते 150 सालों से काली पूजा हो रही है. वहीं इस साल 50 से ज्यादा काली पंडाल लगाए गए हैं. इन्हीं में सबसे प्रसिद्ध हैं मन्नत वाली महाकाली, जिन्हें मन्नत वाली माता और जबलपुर की महारानी नाम से भी जाना जाता है. हर साल की तरह इस नवरात्रि भी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए यहां भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा है. जबलपुर की काली पूजा कई मायनो में अनोखी है. आइए जानते हैं मन्नत वाली माता से जुड़े कुछ तथ्य.

जबलपुर में काली पूजा का इतिहास

इतिहासकार बताते हैं कि जबलपुर में दुर्गा और काली पूजा का इतिहास डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुराना है. उस दौर में अंग्रेजों के साथ बंगाल से आए कुछ बंगाली अफसरों ने एक पंडाल में बंगाली पूजा की लेकिन शहर के दूसरे लोगों को पंडाल में आने की अनुमति नहीं दी. बस इसी घटना से नाराज होकर जबलपुर के लोगों ने दुर्गा पूजा के लिए खुद अपने पंडाल बनने की परंपरा शुरू की. पहला पंडाल जबलपुर के सुनरहाई इलाके में लगाया गया और फिर जबलपुर में महाकाली की स्थापना हुई, जो लोगों की मन्नतों पूरी करने के लिए प्रसिद्ध हो गईं.

जबलपुर की महारानी मन्नत वाली महाकाली का इतिहास (Etv Bharat)

दशकों से रखी जा रही गढ़ा वाली महाकाली

दुर्गा पूजा के साथ ही जबलपुर में महाकाली की स्थापना भी शुरू हुई और गढ़ा फाटक में महाकाली का पंडाल लगाया गया. आज से लगभग 150 साल पहले जिस जगह पंडाल लगाया गया था वहीं आज भी स्थापना हो रही है और इस पंडाल में नौ दिनों तक देवी की स्थापना होती है और बाकी साल भर इस जगह पर देवी की फोटो रखकर पूजा की जाती है लेकिन पंडाल की जगह दूसरा कोई काम नहीं किया जाता.

फिर स्थापित हुईं मन्नत वाली महाकाली

यहीं के पड़ाव क्षेत्र में एक और पंडाल लगता है. यहां भी महाकाली की स्थापना होती है. इस समिति के सदस्य देशराज सिंह कहते हैं, '' इन्हें मन्नत वाली महाकाली कहा जाता है. इसके साथ ही इन्हें जबलपुर की महारानी भी कहा जाता है और यहां पूजा अनुष्ठान बाकी पंडालों से अलग किया जाता है. यहां जिनकी मन्नते पूरी होती हैं वे पूजा पाठ करने आते हैं और कई लोग मन्नत पूरी होने के बाद अपने खर्च पर माता की प्रतिमा स्थापित कराते हैं. प्रतिमा स्थापना की बुकिंग कई सालों के लिए पहले से ही हो चुकी है.''

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8 साल के मासूम की अदुभत दुर्गा पूजा, घर में खुद बना दी देवी मां की अनोखी प्रतिमा

शरद पूर्णिमा पर होता है विसर्जन

सबसे खास बात ये है कि मन्नत वाली महाकाली का विसर्जन दशमी के दिन नहीं होता. बल्कि मन्नत वाली महाकाली का विसर्जन शरद पूर्णिमा के दिन होता है. माता का ये भव्य चल समारोह कई बार पड़ाव से शुरू होकर ग्वारीघाट तक पहुंचने में 24 घंटे तक का वक्त ले लेता है. ये चल समारोह अलग-अलग क्षेत्रों से होकर गुजरता है और हर जगह पर उनकी पूजा व स्वागत किया जाता है. जबलपुर में यूं तो नाइटलाइफ जैसा कुछ नहीं है लेकिन धार्मिक आयोजनों के दौरान खासतौर पर नवरात्रि के दौरान पूरी रात लोग जाते हैं और सड़कों पर पूरी रात चहल-पहल होती है. पूरा शहर चमक धमक से भरा हुआ नजर आता है.

जबलपुर : काली पूजा की परंपरा बंगाल में प्रचलित है लेकिन बंगाल के बाद यदि काली पूजा सबसे ज्यादा कहीं होती है वह मध्यप्रदेश का जबलपुर शहर है. जबलपुर में बीते 150 सालों से काली पूजा हो रही है. वहीं इस साल 50 से ज्यादा काली पंडाल लगाए गए हैं. इन्हीं में सबसे प्रसिद्ध हैं मन्नत वाली महाकाली, जिन्हें मन्नत वाली माता और जबलपुर की महारानी नाम से भी जाना जाता है. हर साल की तरह इस नवरात्रि भी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए यहां भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा है. जबलपुर की काली पूजा कई मायनो में अनोखी है. आइए जानते हैं मन्नत वाली माता से जुड़े कुछ तथ्य.

जबलपुर में काली पूजा का इतिहास

इतिहासकार बताते हैं कि जबलपुर में दुर्गा और काली पूजा का इतिहास डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुराना है. उस दौर में अंग्रेजों के साथ बंगाल से आए कुछ बंगाली अफसरों ने एक पंडाल में बंगाली पूजा की लेकिन शहर के दूसरे लोगों को पंडाल में आने की अनुमति नहीं दी. बस इसी घटना से नाराज होकर जबलपुर के लोगों ने दुर्गा पूजा के लिए खुद अपने पंडाल बनने की परंपरा शुरू की. पहला पंडाल जबलपुर के सुनरहाई इलाके में लगाया गया और फिर जबलपुर में महाकाली की स्थापना हुई, जो लोगों की मन्नतों पूरी करने के लिए प्रसिद्ध हो गईं.

जबलपुर की महारानी मन्नत वाली महाकाली का इतिहास (Etv Bharat)

दशकों से रखी जा रही गढ़ा वाली महाकाली

दुर्गा पूजा के साथ ही जबलपुर में महाकाली की स्थापना भी शुरू हुई और गढ़ा फाटक में महाकाली का पंडाल लगाया गया. आज से लगभग 150 साल पहले जिस जगह पंडाल लगाया गया था वहीं आज भी स्थापना हो रही है और इस पंडाल में नौ दिनों तक देवी की स्थापना होती है और बाकी साल भर इस जगह पर देवी की फोटो रखकर पूजा की जाती है लेकिन पंडाल की जगह दूसरा कोई काम नहीं किया जाता.

फिर स्थापित हुईं मन्नत वाली महाकाली

यहीं के पड़ाव क्षेत्र में एक और पंडाल लगता है. यहां भी महाकाली की स्थापना होती है. इस समिति के सदस्य देशराज सिंह कहते हैं, '' इन्हें मन्नत वाली महाकाली कहा जाता है. इसके साथ ही इन्हें जबलपुर की महारानी भी कहा जाता है और यहां पूजा अनुष्ठान बाकी पंडालों से अलग किया जाता है. यहां जिनकी मन्नते पूरी होती हैं वे पूजा पाठ करने आते हैं और कई लोग मन्नत पूरी होने के बाद अपने खर्च पर माता की प्रतिमा स्थापित कराते हैं. प्रतिमा स्थापना की बुकिंग कई सालों के लिए पहले से ही हो चुकी है.''

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शरद पूर्णिमा पर होता है विसर्जन

सबसे खास बात ये है कि मन्नत वाली महाकाली का विसर्जन दशमी के दिन नहीं होता. बल्कि मन्नत वाली महाकाली का विसर्जन शरद पूर्णिमा के दिन होता है. माता का ये भव्य चल समारोह कई बार पड़ाव से शुरू होकर ग्वारीघाट तक पहुंचने में 24 घंटे तक का वक्त ले लेता है. ये चल समारोह अलग-अलग क्षेत्रों से होकर गुजरता है और हर जगह पर उनकी पूजा व स्वागत किया जाता है. जबलपुर में यूं तो नाइटलाइफ जैसा कुछ नहीं है लेकिन धार्मिक आयोजनों के दौरान खासतौर पर नवरात्रि के दौरान पूरी रात लोग जाते हैं और सड़कों पर पूरी रात चहल-पहल होती है. पूरा शहर चमक धमक से भरा हुआ नजर आता है.

Last Updated : Oct 10, 2024, 7:55 AM IST
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