जबलपुर। अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों का कहना है कि वह पिछले एक माह से गांव के बाहर बैठकर आंदोलन कर अपनी आवाज को बुलंद कर रहे हैं. लेकिन जिला प्रशासन का कोई भी अधिकारी या जनप्रतिनिधि उनके पास समस्या हल करने नहीं आया. इसलिए उन्होंने अब गांव में रैली निलकालते हुए मतदान न करने का फैसला लेते हुए घर घर तक संदेश दिया है. दरअसल, जबलपुर जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर सिहोरा तहसील के हरगढ़ सरदा गांव से लगे प्रतापपुर, मझगवां, सरौली, घुघरा, पडरिया, धनवानी सहित करीब 59 गांवों के लोग भूमिहीन हो गए हैं. तीन पीढ़ियों से सरकारी जमीन को उपजाऊ बनाकर इस जमीन पर अनाज पैदा कर रहे आदिवासियों की करीब 700 एकड़ से ज्यादा जमीन जिला प्रशासन ने औद्योगिक क्षेत्र को आवंटित कर दी है.
आदिवासियों की जमीन उद्योग विभाग को कर दी आवंटित
प्रदर्शन कर रहे हैं आदिवासियों का कहना है "2008 में जिला प्रशासन ने यह जमीन आदिवासियों से छुड़ाकर उद्योग विभाग को आवंटित कर दी थी. जिसके बाद से यह ग्रामीण लगातार लड़ाई लड़ते आ रहे हैं. साथ ही आदिवासियों की इस जमीन पर औद्योगिक विकास निगम का बोर्ड लगा दिया गया है. जिसके चलते ग्रामीण आदिवासी आक्रोशित हो गए हैं. आदिवासि परिवारों ने चेतावनी दी है कि यदि उन्हें जमीन से बेदखल किया गया तो लोकसभा चुनाव में मतदान का खुलकर बहिष्कार करेंगे." सरदा गांव के बाहर बैठकर प्रदर्शन कर रहे हरगढ़ के सरदा गांव के 84 परिवारों के सामने भी रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. करीब 84 परिवारों की 44 एकड़ जमीन को राजस्व विभाग को हस्तांतरित कर दिया है, जिस पर आदिवासी सहित अन्य परिवार खेती बाड़ी कर अपना गुजारा करते थे.
एक माह से आंदोलन कर रहे आदिवासी परिवार
आदिवासियों ने इस जमीन को बचाने के लिए मुख्यमंत्री तक गुहार लगाई, लेकिन उनकी कहीं भी सुनवाई नहीं हुई. इसके बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव में मतदान न करने का फैसला लिया है. सरदा गांव की रहने वाली रश्मि कोल का कहना है "वह पिछले एक माह से जमीन वापसी को लेकर आंदोलन कर रही है लेकिन अभी तक कोई भी अधिकारी हमारा दर्द सुनने के लिए नहीं आया. पहले यह जमीन बंजर थी. हमारे पूर्वजों ने इसे उपजाऊ बनाया. आज जमीन हमसे छुड़ाकर उद्योग विभाग को दे दी. हम पूछना चाहते हैं देश के प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री से कि जब हमने बंजर जमीनर को उपजाऊ बनाया है तो हमसे आखिर क्यों छुड़ा रहे हैं."
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आदिवासियों ने बंजर जमीन को बनाया था उपजाऊ
आदिवासी उत्थान महासंघ के तत्वावधान में प्रदर्शन कर रहे योगेश कोल का कहना है "पिछले 60 सालों से बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर यहाँ खेती किसानी कर रहे हैं, जिसका ग्रामीण इसका लगान भी देते आ रहे है. इससे 59 गांवों के करीब 50-60 हजार लोग प्रभावित हुए. सभी गांव के लोगों ने फैसला लिया है कि वह इस बार लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं करेंगे." इधर जिला कलेक्टर दीपक सक्सेना का कहना है "मतदान करना हर एक नागरिक का कर्तव्य है लेकिन ग्रामीणों के द्वारा की जा रही मांग पर फिलहाल किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकती है. हम केवल अपील कर सकते हैं कि वह मतदान जरूर करें."