जबलपुर। इस साल लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं. भाजपा ने शनिवार को प्रत्याशियों की पहली लिस्ट में जारी कर दी है. लिस्ट में 195 नाम शामिल हैं. वहीं मध्य प्रदेश की 24 सीटों पर प्रत्याशी घोषित किये हैं. जबलपुर से आशीष दुबे को लोकसभा उम्मीदवार बनाया गया है. आशीष दुबे का नाम काफी चौंकाने वाला है. वहीं आशीष दुबे के सामने कांग्रेस किसे उम्मीदवार बनाएगी, इस पर सबकी निगाह टिकी हुई है.
जबलपुर संसदीय क्षेत्र महाकौशल इलाके का सबसे महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र है. जबलपुर की राजनीति का असर आसपास के कई संसदीय क्षेत्र पर पड़ता है. बीते 75 सालों में जबलपुर की जनता ने तीन बार ऐसे नेताओं को चुना, जिन्हें लगातार 20-20 साल तक जबलपुर का नेतृत्व करने का मौका मिला. लेकिन राकेश सिंह के विधानसभा में जाने के बाद अब जबलपुर को लोकसभा के लिए नए नेता की तलाश है जो इस बार के लोकसभा चुनाव के परिणाम के साथ बाद आएगा.
सेठ गोविंद दास रहे चार बार सांसद
1952 में जबलपुर का कुछ हिस्सा संसदीय क्षेत्र मंडला के साथ शामिल था और 1952 में पहली बार इस संसदीय क्षेत्र से एक आदिवासी नेता मंगरु गनु उईके लोकसभा में चुनकर सांसद बने थे. वहीं, जबलपुर उत्तर से कांग्रेस के सुशील कुमार पटेरिया चुनाव जीते थे. हालांकि इसके बाद 1957 में जबलपुर संसदीय क्षेत्र और मंडला संसदीय क्षेत्र को अलग-अलग कर दिया गया था और जबलपुर के कांग्रेस नेता सेठ गोविंद दास का कार्यकाल शुरू हुआ. सेठ गोविंद दास ने 1957 में महेश दत्त को हराकर पहली बार लोकसभा में पहुंचे. इसके बाद सेठ गोविंद दास लगातार चार चुनाव जीते. 1962 में सेठ गोविंद दास ने जगन्नाथ प्रसाद द्विवेदी को चुनाव हराया. जगन्नाथ प्रसाद जनसंघ के उम्मीदवार थे. 1967 में सेठ गोविंद दास ने जनसंख्या के प्रत्याशी बाबूराव पंराजपे पर को चुनाव में हराया. 1971 में भी एक बार फिर सेठ गोविंद दास और बाबूराव पराजपे के बीच मुकाबला हुआ और बाबूराव पंराजपे पर चुनाव हार गए.
शरद यादव ने पलटी बाजी
1974 में सेठ गोविंद दास का निधन हो गया और जबलपुर में छात्र नेता शरद यादव को कांग्रेस के अलावा सभी दलों ने मिलकर चुनाव मैदान में उतारा. इस उप चुनाव में शरद यादव ने जीत हासिल की. उस समय शरद यादव की उम्र मात्र 28 साल थी और बाबई पिपरिया से जबलपुर पढ़ने आए थे. 1977 में एक बार फिर शरद यादव लोकतंत्र से प्रत्याशी बने और उन्होंने जीत हासिल की. लेकिन 1980 में कांग्रेस के मुंडन शर्मा जीते. मुंडन शर्मा की जीत भी बड़ी है, क्योंकि उन्होंने महात्मा गांधी के परपोते राजमोहन गांधी को चुनाव हराया था. 1984 में जबलपुर की राजनीति में नरसिंहपुर से आए अजय नारायण मुसरान ने किस्मत आजमाई, उनके खिलाफ एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के पुराने नेता बाबूराव पंराजपे चुनाव मैदान में थे. एक बार फिर बाबूराव फीर हारे और अजय नारायण मुसरान को जीत हासिल हुई.
बाबूराव परांजपे की पहली जीत
लेकिन यह चुनाव बाबूराव परांजपे की हार का अंतिम चुनाव था, इसके बाद उन्होंने 1996 और 1998 में कांग्रेस के प्रत्याशी चरण में पटेल और डॉक्टर अलोक चांसोरिया को चुनाव में हराकर लगातार तीन बार जीत हासिल की. 1991 में श्रवण भाई पटेल ने बाबूराव परांजपे को चुनाव हराकर अपनी हार का बदला लिया. 1999 में पहली बार जबलपुर की राजनीति में महिला सांसद चुने गई. भारतीय जनता पार्टी की जय श्री बनर्जी ने बाबू चंद्र मोहन दास को चुनाव हराकर जीत हासिल की.
चार बार के सांसद राकेश सिंह
इसके बाद से अब तक जबलपुर की लोकसभा सीट भारतीय जनता पार्टी के पास है और 2004 से लगातार राकेश सिंह कर चुनाव जीत चुके हैं. पहली बार उन्होंने 2004 में विश्वनाथ दुबे को चुनाव में हराया. 2009 में रामेश्वर निखरा को चुनाव में हराया, 2014 में विवेक तनखा चुनाव हारे और 2019 में भी विवेक तनखा को हार का सामना करना पड़ा.
जबलपुर लोकसभा में कुल मतदाता
जबलपुर लोकसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 1876371 है. इसमें 957050 पुरुष मतदाता हैं और 919321 महिला मतदाता हैं. 97 थर्ड जेंडर भी वोटर लिस्ट में शामिल है. अब वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने का समय खत्म हो गया है और इसी वोटर लिस्ट के आधार पर चुनाव होगा.
जबलपुर लोक सभा के मुद्दे
जबलपुर लोकसभा दो भागों में बटी हुई है. इसमें चार विधानसभा क्षेत्र शहर में आते हैं और चार विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण इलाकों में इसलिए दोनों ही क्षेत्र की अपनी-अपनी जरूरतें हैं.
शहरी क्षेत्र की मांगे
शहरी क्षेत्र में आम आदमी बुनियादी सुविधाओं को लेकर संसद से उम्मीद रखता है. जबलपुर के शहरी इलाके में ज्यादा कर्मचारी व्यापारी और मजदूर वर्ग रहता है. जबलपुर शहर लगभग डेढ़ सौ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, इसमें अब आगमन के साधनों को लेकर लोग एक अच्छा ही यातायात व्यवस्था चाहते हैं. वही इन दोनों लोकल ट्रांसपोर्ट में मेट्रो की मांग भी उठ रही है. क्योंकि जबलपुर के बराबर के शहर इंदौर और भोपाल को मेट्रो रेल मिल गई है और जबलपुर में अभी लोकल ट्रांसपोर्ट के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बन पाई है. जबलपुर शहर औद्योगिक विकास में भी प्रदेश की दूसरे शेरों से पिछड़ा हुआ है. इसलिए यहां औद्योगिक विकास रोजगार की संभावनाओं से जुड़ी मांगे हैं.
ग्रामीण क्षेत्र की जरूरत
जबलपुर ग्रामीण की अपनी जरूरतें जबलपुर ग्रामीण क्षेत्र शहरी क्षेत्र से कई गुना ज्यादा बड़ा है. ग्रामीण इलाकों में कई जगहों पर अभी भी पर्याप्त सड़के नहीं है. पीने के पानी बिजली की व्यवस्था स्कूल जैसी बुनियादी जरूरत को लेकर लोगों को विकास की उम्मीद है. वहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जबलपुर के किसान एक अच्छी व्यवस्थित और बड़ी मंडी भी चाह रहे हैं. जो बीते 5 साल से किसानों की मांग रही है लेकिन अब तक पूरी नहीं हो पाई है.
संभावित उम्मीदवार
वर्तमान परिदृश्य में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ही परंपरागत प्रतिद्वंदी नजर आ रहे हैं, जिनके बीच जनता को अपना लोकसभा उम्मीदवार चुना है. जबलपुर के भारतीय जनता पार्टी के संभावित प्रत्याशियों में पूर्व सांसद राकेश सिंह का नाम भी शामिल है. हालांकि उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़कर लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था यदि वे चुनाव मैदान में नहीं उतरे तो बिल्कुल नया चेहरा भारतीय जनता पार्टी की ओर से सामने आएगा, जिसकी अभी तक कोई चर्चा नहीं है. जबलपुर कैंट विधानसभा की विधायक अशोक रोहानी का कहना है कि ''यह पार्टी का निर्णय है वह जिसे चुनाव मैदान में खड़ा कर देंगे हम उसके लिए काम करेंगे.''
कांग्रेस के सामने संकट
कांग्रेस के सामने उम्मीदवार का संकट को ज्यादा बड़ा है क्योंकि यहां विवेक तंखा इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनके पास राज्यसभा में अभी काफी वक्त बाकी है जगत बहादुर सिंह अनु ने ठीक चुनाव के पहले कांग्रेस पार्टी छोड़ दी ऐसी स्थिति में कांग्रेस को भी किसी नए चेहरे पर दांव लगाना होगा. जबलपुर में आठ विधानसभा क्षेत्र में से सात विधानसभा क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी के पास में है. ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के लिए जबलपुर की सीट एक सुरक्षित सीट मानी जा रही है और इसमें संघर्ष कांग्रेस के प्रत्याशी को ज्यादा करना होगा. इसलिए हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी किसी राष्ट्रीय नेता को यहां चुनाव लड़ा कर संसद में भेज दे. भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं और वहीं कांग्रेस अभी तक अपना अध्यक्ष तय नहीं कर पाई है.