जबलपुर : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में मंगलवार को मध्य प्रदेश हाई स्कूल शिक्षक भर्ती 2018 की नियुक्तियों को लेकर सुनवाई हुई. इसमें लगभग 17 हजार पदों पर भर्तियां होनी हैं. इनमें 11700 पदों पर भर्तियां हो चुकी हैं. अब इस भर्ती प्रक्रिया में एक गड़बड़ी सामने आई है, जिसमें शिक्षक भर्ती में मार्कशीट में प्रतिशत की बजाय डिवीजन को आधार बनाया गया है, जबकि प्रदेश की अलग-अलग यूनिवर्सिटी में अलग-अलग प्रतिशत पर डिवीजन का निर्धारण किया जाता है. इस मामले में राज्य सरकार को दो दिन में नियम बदलकर हाईकोर्ट को जवाब देना है. यदि नए नियमों के अनुसार पुरानी भर्तियां गलत होंगी तो कुछ लोगों की नौकरी जा सकती है.
मध्यप्रदेश में 17 हजार शिक्षकों की भर्ती का मामला
बता दें कि मध्य प्रदेश हाई स्कूल शिक्षक भर्ती जो 2018 में निकाली गई थीं, इसकी कार्रवाई चल रही है और उसके तहत लगभग 17 हजार पदों पर शिक्षकों की भर्ती की जा रही है. शिक्षक भर्ती के नियमों को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने चुनौती दी है. इसमें कहा गया है कि एनसीटी के जो नियम हैं, उसमें चयन के लिए के लिए अभ्यर्थी के प्रतिशत या परसेंटेज का क्राइटेरिया होना चाहिए, जबकि मध्य प्रदेश हाई स्कूल शिक्षक भर्ती में परसेंटेज की जगह डिवीजन को क्राइटेरिया बनाया.
अंकों के आधार पर डिवीजन पर भ्रम की स्थिति
याचिकाकर्ता के वकील रामेश्वर सिंह ने दलील देते हुए कहा "मध्य प्रदेश में 27 यूनिवर्सिटी की लिस्ट के साथ दलील पेश की है कि मध्य प्रदेश के कुछ विश्वविद्यालय 45 से 50% को सेकंड डिवीजन मानते हैं और कुछ इस थर्ड डिवीजन मानते हैं. ऐसी स्थिति में डिवीजन का क्राइटेरिया भ्रम पैदा करता है." रामेश्वर सिंह का कहना है "अभी राज्य सरकार की ओर से बताया गया है कि लगभग 470 पदों पर ऐसी नियुक्तियां हुई हैं, जिसमें 45 से 48% के बीच के छात्रों को द्वितीय श्रेणी मानते हुए नियुक्तियां दे दी गई हैं." अभी तक मध्य प्रदेश में 11700 पदों पर भर्ती हो चुकी हैं और बाकी की प्रक्रिया अभी जारी है. लेकिन मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अब इस मामले में भर्ती प्रक्रिया के बीच में ही राज्य सरकार से कहा है कि इस विसंगति को दूर करके दो दिन के भीतर नए नियम बनाकर पेश किए जाएं.
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने दे दिए साफ संकेत
अधिवक्ता रामेश्वर सिंह का कहना है "नए नियमों के अनुसार फिर से काउंसलिंग करवानी होगी." रामेश्वर सिंह ने ऐसी संभावना भी जताई है "यदि नियम बदलते हैं तो हो सकता है कि कुछ उम्मीदवारों की नियुक्तियां कैंसिल की जा सकती हैं. हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि किनकी नौकरी जाएगी." अधिवक्ता रामेश्वर सिंह का कहना है "इस मामले में कोर्ट की ओर से यह संकेत मिला है कि जिन लोगों के प्रतिशत 50 से कम हैं, उनकी नियुक्तियां रद्द की जा सकती हैं, भले ही उनके डिवीजन सेकंड क्यों ना बताया गया हो."