जबलपुर: कर्मचारियों के पक्ष में जारी आदेश को वापस लेने के लिए आदिवासी वित्त व विकास विभाग ने जबलपुर हाई कोर्ट में आवेदन दायर किया था. जस्टिस संजय द्विवेदी ने विभाग द्वारा दायर उस आवेदन को खारिज कर दिया है, जिसमें कर्मचारियों के पक्ष में जारी आदेश को वापस लेने की मांग की गई थी. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आदेश वापस लेने के लिए कोई उचित कारण होना चाहिए. किसी को पहले से दिए गए किसी भी अधिकार या शक्ति को किसी आदेश या पत्र द्वारा नहीं निरस्त किया जा सकता है.
1996 में दो साल के लिए संविदा पर हुई थी नियुक्ति
आदिवासी वित्त व विकास निगम के 22 कर्मचारियों ने अपने नियमितीकरण की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. जबलपुर हाई कोर्ट में इस याचिका की सुनवाई हुई, जिसमें हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर वर्ष 1996 में जारी आदेश के अनुसार दो साल के लिए संविदा पद पर नियुक्ति दी गई थी. 2 साल का संविदा कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था. याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि विभाग ने नियमित पदों का सृजन किया था और उनके बाद नियुक्ति पाए संविदा कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया. इस पर एकलपीठ ने जनवरी 2024 में कर्मचारियों के पक्ष में आदेश जारी किया था.
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हाई कोर्ट ने आवेदन को कर दिया खारिज
आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए आदिवासी वित्त व विकास विभाग ने हाई कोर्ट में आवेदन दायर किया था. विभाग ने कहा था कि कर्मचारियों को वर्ष 2016 में नियमित कर दिया गया है. नियमित होने की तिथि से ही उन्हें इसका लाभ मिलना चाहिए. विभाग ने यह भी दावा किया कि याचिकाकर्ताओं ने तथ्यों को छुपाकर याचिका दायर की थी. कोर्ट ने पाया कि पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान विभाग को पक्ष प्रस्तुत करने का पर्याप्त अवसर दिया गया था. इस आधार पर एकलपीठ ने विभाग के आवेदन को खारिज कर दिया.