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किसान को 32 साल बाद मिला न्याय, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने रीवा कलेक्टर को लगाई ऐसी फटकार - JABALPUR HIGH COURT BIG DECISION

'लोगों का हक छीनने और शोषण करने के लिए आपको नहीं बनाया कलेक्टर', 25 हजार की कास्ट लगाते हुए जबलपुर हाईकोर्ट ने रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल को दी नसीहत. मामला एक किसान की जमीन अधिग्रहण से जुड़ा था.

Big decision of High Court farmer land case
किसान की जमीन मामले में हाईकोर्ट का बड़ा निर्णय (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 9 hours ago

Updated : 8 hours ago

जबलपुर: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल ने रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल पर 25000 रुपए की कॉस्ट लगाई है. 32 साल बाद एक मामूली किसान को हाई कोर्ट से न्याय मिल गया. हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि प्रशासन द्वारा जमीन अधिग्रहण का तरीका गलत था. बिना मुआवजे के जमीन कैसे अधिग्रहित की जा सकती है. हाउसिंग बोर्ड का जमीन अधिग्रहण का आदेश रद्द करते हुए किसान के पक्ष में फैसला सुनाया और उसे उसकी जमीन वापिस की. हाईकोर्ट में 2015 से यह मामला चल रहा था. इस मामले में जस्टिस विवेक अग्रवाल ने रीवा कलेक्टर को जमकर फटकार लगाई.

1993 में किया गया था जमीन अधिग्रहण

एडवोकेट राजेंद्र सिंह ने बताया कि "दरअसल रीवा के मामूली किसान राजेश कुमार तिवारी से जुड़ा हुआ है. राजेश कुमार तिवारी रीवा शहर के पास रहते हैं. इनके पास लगभग सवा एकड़ जमीन है और इसी जमीन से इनकी गुजर बसर होती है. 1993 में हाउसिंग बोर्ड ने एक घोषणा की कि वह राजेश तिवारी की जमीन पर एक कॉलोनी बनाने जा रही है और उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया. राजेश तिवारी को यह बात ना तो हाउसिंग बोर्ड ने बताई और ना ही राजस्व का कोई भी अधिकारी उनके पास आया. यहां तक की जमीन मालिक राजेश कुमार तिवारी को कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया."

किसान को 32 साल बाद मिला न्याय (ETV Bharat)

2015 में मिला बेदखली नोटिस

यह बात 1993 की है, लगभग 22 साल बाद 2015 में राजेश तिवारी को हाउसिंग बोर्ड का फिर एक नोटिस मिलता है जिसमें हाउसिंग बोर्ड की ओर से कहा गया कि राजेश तिवारी इस जमीन को छोड़ दें और मकान खाली कर दें. यह जमीन हाउसिंग बोर्ड की है. इस नोटिस के जवाब में राजेश तिवारी ने हाउसिंग बोर्ड को जवाब दिया कि वे जमीन नहीं छोड़ेंगे क्योंकि उन्हें इस जमीन का कभी कोई मुआवजा नहीं मिला. 7 दिन बाद हाउसिंग बोर्ड ने दूसरा नोटिस दिया जिसमें लिखा था कि यदि 7 दिन के भीतर उन्होंने खुद जमीन खाली नहीं की तो उन्हें जबरन इस जमीन से अलग कर दिया जाएगा.

किसान ने हाईकोर्ट में दायर की याचिका

हाउसिंग बोर्ड के नोटिस के बाद राजेश तिवारी ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की. उन्होंने हाई कोर्ट में अपील की कि उन्हें अपनी जमीन से बेदखल ना किया जाए. हाई कोर्ट ने राजेश तिवारी के पक्ष में अंतरिम फैसला देते हुए कहा कि जब तक इस मामले का अंतिम फैसला नहीं हो जाता तब तक राजेश तिवारी को उनकी जमीन से बेदखल नहीं किया जाएगा.

2015 से 2023 तक सुनवाई

2015 से 2023 तक यह मुकदमा चलता रहा. हाउसिंग बोर्ड ने भी जवाब दे दिया लेकिन राजस्व विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं आया. एडवोकेट राजेंद्र सिंह का कहना है कि जमीन के अधिग्रहण का काम राजस्व विभाग का होता है इसलिए राजस्व विभाग ने जमीन के अधिग्रहण में क्या कार्रवाई की कितना मुआवजा दिया यह जानकारी हाई कोर्ट ने मांगी लेकिन रीवा कलेक्टर यह जानकारी देने में असमर्थ रहे. इसलिए तत्कालीन कलेक्टर के खिलाफ ₹10000 की कास्ट भी लगाई गई.

प्रशासन नहीं दे पाया जवाब

इस मामले में 6 जनवरी 2025 को एक बार फिर सुनवाई हुई. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल ने राज्य शासन के एडवोकेट से कहा कि इस मामले में राजस्व विभाग ने राजेश तिवारी को कितना मुआवजा दिया. अधिग्रहण की क्या कार्रवाई की गई इसको रिकॉर्ड में शामिल किया जाए, लेकिन राज्य सरकार के अधिवक्ता इस मामले में कागजात पेश नहीं कर पाए.

कलेक्टर को उपस्थित होने का दिया आदेश

जस्टिस विवेक अग्रवाल ने 6 जनवरी को ही यह आदेश दिया कि 7 जनवरी को रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल इस मामले से जुड़े पूरे कागजात लेकर कोर्ट में मौजूद रहें. लेकिन रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल की ओर से एक आवेदन लगाया गया, जिसमें उन्होंने कहा कि उनके पति बीमार हैं इसलिए वह कोर्ट नहीं आ सकती.जस्टिस विवेक अग्रवाल इस आवेदन से सहमत नहीं थे.

7 जनवरी को प्रतिभा पाल भू अधिग्रहण से जुड़े हुए कागजात लेकर कोर्ट पहुंची. जस्टिस विवेक अग्रवाल ने राज्य सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल और रीवा कलेक्टर को जमकर फटकार लगाई और कहा कि आपका काम गैर जिम्मेदाराना है, आपको अधिकार जनता की सेवा करने के लिए दिए गए हैं ना कि उनका शोषण करने के लिए.

कलेक्टर पर 25000 की कास्ट

इस मामले की अंतिम सुनवाई 8 जनवरी को हुई, जिसमें जस्टिस विवेक अग्रवाल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकार और रीवा कलेक्टर यह बताने में असमर्थ रहे हैं कि उन्होंने राजेश तिवारी को कब मुआवजा दिया. इसलिए राजेश तिवारी को उनकी जमीन वापस की जाए और रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल पर₹25000 की कास्ट लगाई जाए.

32 साल बाद मिला न्याय

एडवोकेट राजेंद्र सिंह ने बताया कि "वर्तमान में जिस जमीन पर राजेश तिवारी रह रहे हैं वह जमीन नगर निगम सीमा के भीतर आ गई है. कोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि इसके बाद भी सरकार इस जमीन को अधिग्रहित करना चाहती है तो राजेश तिवारी की जमीन के लिए अधिग्रहण की नई नीति के तहत मुआवजा देना होगा. नई नीति में शहरी क्षेत्र में रजिस्ट्री रेट से दोगुने दाम पर जमीन का अधिग्रहण किया जा सकता है. इसके साथ ही जमीन पर रहने वाले लोगों की अजीविका का साधन भी सरकार को बताना होगा." इस तरह 1993 से 2025 तक 32 साल बाद एक किसान को न्याय मिला.

जबलपुर: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल ने रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल पर 25000 रुपए की कॉस्ट लगाई है. 32 साल बाद एक मामूली किसान को हाई कोर्ट से न्याय मिल गया. हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि प्रशासन द्वारा जमीन अधिग्रहण का तरीका गलत था. बिना मुआवजे के जमीन कैसे अधिग्रहित की जा सकती है. हाउसिंग बोर्ड का जमीन अधिग्रहण का आदेश रद्द करते हुए किसान के पक्ष में फैसला सुनाया और उसे उसकी जमीन वापिस की. हाईकोर्ट में 2015 से यह मामला चल रहा था. इस मामले में जस्टिस विवेक अग्रवाल ने रीवा कलेक्टर को जमकर फटकार लगाई.

1993 में किया गया था जमीन अधिग्रहण

एडवोकेट राजेंद्र सिंह ने बताया कि "दरअसल रीवा के मामूली किसान राजेश कुमार तिवारी से जुड़ा हुआ है. राजेश कुमार तिवारी रीवा शहर के पास रहते हैं. इनके पास लगभग सवा एकड़ जमीन है और इसी जमीन से इनकी गुजर बसर होती है. 1993 में हाउसिंग बोर्ड ने एक घोषणा की कि वह राजेश तिवारी की जमीन पर एक कॉलोनी बनाने जा रही है और उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया. राजेश तिवारी को यह बात ना तो हाउसिंग बोर्ड ने बताई और ना ही राजस्व का कोई भी अधिकारी उनके पास आया. यहां तक की जमीन मालिक राजेश कुमार तिवारी को कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया."

किसान को 32 साल बाद मिला न्याय (ETV Bharat)

2015 में मिला बेदखली नोटिस

यह बात 1993 की है, लगभग 22 साल बाद 2015 में राजेश तिवारी को हाउसिंग बोर्ड का फिर एक नोटिस मिलता है जिसमें हाउसिंग बोर्ड की ओर से कहा गया कि राजेश तिवारी इस जमीन को छोड़ दें और मकान खाली कर दें. यह जमीन हाउसिंग बोर्ड की है. इस नोटिस के जवाब में राजेश तिवारी ने हाउसिंग बोर्ड को जवाब दिया कि वे जमीन नहीं छोड़ेंगे क्योंकि उन्हें इस जमीन का कभी कोई मुआवजा नहीं मिला. 7 दिन बाद हाउसिंग बोर्ड ने दूसरा नोटिस दिया जिसमें लिखा था कि यदि 7 दिन के भीतर उन्होंने खुद जमीन खाली नहीं की तो उन्हें जबरन इस जमीन से अलग कर दिया जाएगा.

किसान ने हाईकोर्ट में दायर की याचिका

हाउसिंग बोर्ड के नोटिस के बाद राजेश तिवारी ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की. उन्होंने हाई कोर्ट में अपील की कि उन्हें अपनी जमीन से बेदखल ना किया जाए. हाई कोर्ट ने राजेश तिवारी के पक्ष में अंतरिम फैसला देते हुए कहा कि जब तक इस मामले का अंतिम फैसला नहीं हो जाता तब तक राजेश तिवारी को उनकी जमीन से बेदखल नहीं किया जाएगा.

2015 से 2023 तक सुनवाई

2015 से 2023 तक यह मुकदमा चलता रहा. हाउसिंग बोर्ड ने भी जवाब दे दिया लेकिन राजस्व विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं आया. एडवोकेट राजेंद्र सिंह का कहना है कि जमीन के अधिग्रहण का काम राजस्व विभाग का होता है इसलिए राजस्व विभाग ने जमीन के अधिग्रहण में क्या कार्रवाई की कितना मुआवजा दिया यह जानकारी हाई कोर्ट ने मांगी लेकिन रीवा कलेक्टर यह जानकारी देने में असमर्थ रहे. इसलिए तत्कालीन कलेक्टर के खिलाफ ₹10000 की कास्ट भी लगाई गई.

प्रशासन नहीं दे पाया जवाब

इस मामले में 6 जनवरी 2025 को एक बार फिर सुनवाई हुई. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल ने राज्य शासन के एडवोकेट से कहा कि इस मामले में राजस्व विभाग ने राजेश तिवारी को कितना मुआवजा दिया. अधिग्रहण की क्या कार्रवाई की गई इसको रिकॉर्ड में शामिल किया जाए, लेकिन राज्य सरकार के अधिवक्ता इस मामले में कागजात पेश नहीं कर पाए.

कलेक्टर को उपस्थित होने का दिया आदेश

जस्टिस विवेक अग्रवाल ने 6 जनवरी को ही यह आदेश दिया कि 7 जनवरी को रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल इस मामले से जुड़े पूरे कागजात लेकर कोर्ट में मौजूद रहें. लेकिन रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल की ओर से एक आवेदन लगाया गया, जिसमें उन्होंने कहा कि उनके पति बीमार हैं इसलिए वह कोर्ट नहीं आ सकती.जस्टिस विवेक अग्रवाल इस आवेदन से सहमत नहीं थे.

7 जनवरी को प्रतिभा पाल भू अधिग्रहण से जुड़े हुए कागजात लेकर कोर्ट पहुंची. जस्टिस विवेक अग्रवाल ने राज्य सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल और रीवा कलेक्टर को जमकर फटकार लगाई और कहा कि आपका काम गैर जिम्मेदाराना है, आपको अधिकार जनता की सेवा करने के लिए दिए गए हैं ना कि उनका शोषण करने के लिए.

कलेक्टर पर 25000 की कास्ट

इस मामले की अंतिम सुनवाई 8 जनवरी को हुई, जिसमें जस्टिस विवेक अग्रवाल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकार और रीवा कलेक्टर यह बताने में असमर्थ रहे हैं कि उन्होंने राजेश तिवारी को कब मुआवजा दिया. इसलिए राजेश तिवारी को उनकी जमीन वापस की जाए और रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल पर₹25000 की कास्ट लगाई जाए.

32 साल बाद मिला न्याय

एडवोकेट राजेंद्र सिंह ने बताया कि "वर्तमान में जिस जमीन पर राजेश तिवारी रह रहे हैं वह जमीन नगर निगम सीमा के भीतर आ गई है. कोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि इसके बाद भी सरकार इस जमीन को अधिग्रहित करना चाहती है तो राजेश तिवारी की जमीन के लिए अधिग्रहण की नई नीति के तहत मुआवजा देना होगा. नई नीति में शहरी क्षेत्र में रजिस्ट्री रेट से दोगुने दाम पर जमीन का अधिग्रहण किया जा सकता है. इसके साथ ही जमीन पर रहने वाले लोगों की अजीविका का साधन भी सरकार को बताना होगा." इस तरह 1993 से 2025 तक 32 साल बाद एक किसान को न्याय मिला.

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