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क्रिकेट बॉल जितना रसगुल्ला, इसे पूरा खाना हर किसी के बस की बात नहीं, दूर-दूर से आते हैं लोग

महाकौशल की पहचान बन चुका कटंगी का रसगुल्ला, विश्वजीत सिंह की रिपोर्ट में जानें कैसे इस गुलाब जामुन ने बदल दी एक शहर की पहचान.

Story of famous katangi rasgulla
कंटगी के मशहूर रसगुल्ले की कहानी (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 2, 2024, 2:08 PM IST

Updated : Dec 2, 2024, 2:46 PM IST

जबलपुर : महाकौशल के लोग जबलपुर के एक कस्बे को उसकी मिठाई की वजह से जानते हैं, इस कस्बे का नाम कटंगी है. और कटंगी की पहचान कटंगी के रसगुल्ले से है. तकरीबन 100 सालों से कटंगी अपने रसगुल्लों की वजह से महाकौशल क्षेत्र में मिठास बिखेर रहा है. ये रसगुल्ला स्वाद में तो अनोखा है ही, इसकी साइज भी सामान्य से काफी ज्यादा बड़ी होती है. देखने पर ये गुलाब जामुन क्रिकेट बॉल जितने बड़े होते हैं, जिसे पूरा खाना हर किसी के बस की बात नहीं.

कटंगी के रसगुल्ले का इतिहास

जबलपुर से दमोह रोड पर 35 किलोमीटर दूर कटंगी नाम का एक कस्बा है. इस कस्बे की आबादी 35 से 40 हजार है. आज से लगभग 90 साल पहले झुरे जैन नाम के एक हलवाई ने एक गुलाब जामुन बनाया, जिसकी साइज सामान्य गुलाब जामुन से तीन गुनी कर दी. यह गुलाब जामुन लगभग क्रिकेट की बॉल के बराबर था. लोगों को गुलाब जामुन का यह नया साइज इतना पसंद आया कि लोग गुलाब जामुन खरीदने दूर-दूर से आने लगे और देखते-देखते कटंगी अपने रसगुल्ले से मशहूर हो गया. 90 साल पहले से जो मिठाई कटंगी में बन रही थी, आज भी उसका स्वाद वैसा ही है और लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं.

क्रिकेट बॉल जितना रसगुल्ला (Etv Bharat)

तीसरी पीढ़ी घोल रही महाकौशल में मिठास

आज इस कारोबार को झुरे जैन की तीसरी पीढ़ी संभाल रही है. तीसरी पीढ़ी के रत्नेश जैन ने बताया, '' कटंगी के आसपास जंगल है और लोग इस इलाके में दूध वाले जानवर ज्यादा पालते हैं. इसी वजह से गांव में लोग बड़ी मात्रा में खोवा बनाते हैं. यही मावा रत्नेश जैन की दुकान तक पहुंचता है और इसमें थोड़ा सा गेहूं का आटा मिलाया जाता है और बड़ी-बड़ी बॉल बना ली जाती है. बीते 90 सालों से लगातार इसी तरह से गुलाब जामुन बनाए जा रहे हैं.'' रत्नेश जैन ने बताया कि इस इलाके में इसे गुलाब जामुन नहीं कहा जाता बल्कि इसे 'रसगुल्ला' कहा जाता है.

katangi k rasgulla history
दूर-दूर से ये गुलाब जामुन खाने आते हैं लोग (Etv Bharat)

जबलपुर दमोह आने जाने वालों का स्टॉपेज

कटंगी कस्बा जबलपुर दमोह रोड पर है, इसलिए यहां से गुजरने वाले लोग कटंगी के रसगुल्लों को खरीदकर अपने घर भी ले जाते हैं. इन्हें मिट्टी के बने हुए छोटे मटकों में दिया जाता है. रत्नेश जैन बताते हैं, '' दूर-दूर से लोग यहां आते हैं और इसे पैक करवा कर ले जाते हैं. यह ऐसा रसगुल्ला है जिसे केक की तरह काट के खाना होता है क्योंकि एक अकेला आदमी एक पूरा रसगुल्ला नहीं खा सकता. यहां पर इसे रबड़ी के साथ परोसा जाता है.''

jabalpur famous gulabjamun damoh road
मटकी में पैक किए जाते हैं कटंगी के गुलाब जामुन (Etv Bharat)

कटंगी जैसा स्वाद कहीं और नहीं

किसी मिठाई में कुछ ऐसा खास नहीं होता जो बाजार में ना मिलता हो लेकिन हर हलवाई की अपनी एक कला होती है. यही वजह है कि कटंगी के रसगुल्ले जैसा स्वाद कहीं और नहीं मिलता.

Cricket ball size gulabjamun katangi jabalpur
क्रिकेट बॉल बराबर होते हैं कटंगी के गुलाब जामुन (Etv Bharat)

जबलपुर : महाकौशल के लोग जबलपुर के एक कस्बे को उसकी मिठाई की वजह से जानते हैं, इस कस्बे का नाम कटंगी है. और कटंगी की पहचान कटंगी के रसगुल्ले से है. तकरीबन 100 सालों से कटंगी अपने रसगुल्लों की वजह से महाकौशल क्षेत्र में मिठास बिखेर रहा है. ये रसगुल्ला स्वाद में तो अनोखा है ही, इसकी साइज भी सामान्य से काफी ज्यादा बड़ी होती है. देखने पर ये गुलाब जामुन क्रिकेट बॉल जितने बड़े होते हैं, जिसे पूरा खाना हर किसी के बस की बात नहीं.

कटंगी के रसगुल्ले का इतिहास

जबलपुर से दमोह रोड पर 35 किलोमीटर दूर कटंगी नाम का एक कस्बा है. इस कस्बे की आबादी 35 से 40 हजार है. आज से लगभग 90 साल पहले झुरे जैन नाम के एक हलवाई ने एक गुलाब जामुन बनाया, जिसकी साइज सामान्य गुलाब जामुन से तीन गुनी कर दी. यह गुलाब जामुन लगभग क्रिकेट की बॉल के बराबर था. लोगों को गुलाब जामुन का यह नया साइज इतना पसंद आया कि लोग गुलाब जामुन खरीदने दूर-दूर से आने लगे और देखते-देखते कटंगी अपने रसगुल्ले से मशहूर हो गया. 90 साल पहले से जो मिठाई कटंगी में बन रही थी, आज भी उसका स्वाद वैसा ही है और लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं.

क्रिकेट बॉल जितना रसगुल्ला (Etv Bharat)

तीसरी पीढ़ी घोल रही महाकौशल में मिठास

आज इस कारोबार को झुरे जैन की तीसरी पीढ़ी संभाल रही है. तीसरी पीढ़ी के रत्नेश जैन ने बताया, '' कटंगी के आसपास जंगल है और लोग इस इलाके में दूध वाले जानवर ज्यादा पालते हैं. इसी वजह से गांव में लोग बड़ी मात्रा में खोवा बनाते हैं. यही मावा रत्नेश जैन की दुकान तक पहुंचता है और इसमें थोड़ा सा गेहूं का आटा मिलाया जाता है और बड़ी-बड़ी बॉल बना ली जाती है. बीते 90 सालों से लगातार इसी तरह से गुलाब जामुन बनाए जा रहे हैं.'' रत्नेश जैन ने बताया कि इस इलाके में इसे गुलाब जामुन नहीं कहा जाता बल्कि इसे 'रसगुल्ला' कहा जाता है.

katangi k rasgulla history
दूर-दूर से ये गुलाब जामुन खाने आते हैं लोग (Etv Bharat)

जबलपुर दमोह आने जाने वालों का स्टॉपेज

कटंगी कस्बा जबलपुर दमोह रोड पर है, इसलिए यहां से गुजरने वाले लोग कटंगी के रसगुल्लों को खरीदकर अपने घर भी ले जाते हैं. इन्हें मिट्टी के बने हुए छोटे मटकों में दिया जाता है. रत्नेश जैन बताते हैं, '' दूर-दूर से लोग यहां आते हैं और इसे पैक करवा कर ले जाते हैं. यह ऐसा रसगुल्ला है जिसे केक की तरह काट के खाना होता है क्योंकि एक अकेला आदमी एक पूरा रसगुल्ला नहीं खा सकता. यहां पर इसे रबड़ी के साथ परोसा जाता है.''

jabalpur famous gulabjamun damoh road
मटकी में पैक किए जाते हैं कटंगी के गुलाब जामुन (Etv Bharat)

कटंगी जैसा स्वाद कहीं और नहीं

किसी मिठाई में कुछ ऐसा खास नहीं होता जो बाजार में ना मिलता हो लेकिन हर हलवाई की अपनी एक कला होती है. यही वजह है कि कटंगी के रसगुल्ले जैसा स्वाद कहीं और नहीं मिलता.

Cricket ball size gulabjamun katangi jabalpur
क्रिकेट बॉल बराबर होते हैं कटंगी के गुलाब जामुन (Etv Bharat)
Last Updated : Dec 2, 2024, 2:46 PM IST
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