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जबलपुर के कई बुक पब्लिशर्स व सेलर्स जेल में, अब कलेक्टर की कार्रवाई पर उठने लगे सवाल - Jabalpur action against publishers

जबलपुर में फर्जी आईएसबीएन नंबर (FAKE ISBN NUMBER) डालकर पुस्तकें छपवाने के मामले में कलेक्टर की ताबड़तोड़ कार्रवाई का अब विरोध देखने को मिल रहा है. फेडरेशन ऑफ एजुकेशनल बुक पब्लिशर आफ इंडिया ने दो पत्र जारी किए हैं, जिसमें उन्होंने आईएसबीएन नंबर की अनिवार्यता और उसके ऊपर उठे सवालों का जवाब दिया है.

Jabalpur action against publishers
जबलपुर में फर्जी आईएसबीएन नंबर डालकर पुस्तकें छपवाने का मामला (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jun 14, 2024, 6:43 PM IST

Updated : Jun 14, 2024, 7:17 PM IST

जबलपुर। मध्य प्रदेश सरकार ने एक आदेश निकाला था. इसके तहत निजी स्कूलों के पुस्तकों की फीस और ड्रेस मैटेरियल की साठगांठ की जांच की जानी थी. इसके तहत जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कुछ स्कूलों की जांच की. साथ ही सबसे बड़ी जांच पुस्तकों के आईएसबीएन नंबर की थी. दरअसल, आईएसबीएन नंबर किसी भी पुस्तक की यूनिक आइडेंटिटी होती है, जिसका महत्व राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होता है. जबलपुर में जिला प्रशासन ने जब पुस्तकों की जांच की तो कई पुस्तकों में आईएसबीएन फर्जी मिला. इस आधार पर कुटरचित दस्तावेज बनाने का मुकदमा प्रकाशकों के खिलाफ बनाया गया. कई प्रकाशकों के खिलाफ FIR दर्ज की गई. करीब 50 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है. इनमें कई लोग गिरफ्तार हो गए हैं और कई लोगों के खिलाफ वारंट जारी है.

द फेडरेशन ऑफ एजुकेशन पब्लिशर ऑफ़ इंडिया का पत्र

इसी बीच में द फेडरेशन ऑफ एजुकेशन पब्लिशर ऑफ़ इंडिया का एक पत्र सामने आया है, जिसमें फेडरेशन के महासचिव गोपाल शर्मा ने जबलपुर जिला प्रशासन से मांग की है कि जिस आईएसबीएन नंबर के आधार पर पब्लिशर के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए हैं, दरअसल, कानून के तहत उसकी अनिवार्यता नहीं है. यह जरूरी नहीं है कि पाठ्यक्रम में जो पुस्तक इस्तेमाल की जा रही है, उसे आईएसबीएन नंबर लेना ही हो. इसमें यह भी बताया गया है कि पहले आईएसबीएन नंबर ऑनलाइन नहीं थे. इसलिए पुस्तकों में जो आईएसबीएन नंबर मिले हैं, जरूरी नहीं है कि वह ऑनलाइन चेक किया जा सकें. इसलिए इस आधार पर जो मुकदमे बनाए गए हैं उन्हें वापस लिया जाए.

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बुक पब्लिशर्स के पक्ष में दूसरा पत्र भी चर्चा में

इस मामले में एक और पत्र जारी किया गया है, जो भारत सरकार के आईएसबीएन नंबर जारी करने वाली संस्था के अधिकारी के जे बोबडे ने लिखा है. इसमें यह कहा गया है कि आईएसबीएन से जुड़ी हुई तमाम जानकारी पोर्टल पर उपलब्ध हैं. इसमें यह कहा गया है कि दरअसल आईएसबीएन नंबर पुस्तकों की यूनिक आइडेंटिटी के लिए बनाया गया था, ताकि कोई इसी तरह की दूसरी पुस्तक ना बन सके. यह पत्र जबलपुर कलेक्टर को भेजा गया है. इसमें प्रकाशको का दावा है कि उन्होंने कोई गड़बड़ी नहीं की.

जिला शिक्षा अधिकारी क्या बोले

इस मामले में जबलपुर जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम सोनी का कहना है बुक पब्लिशर का दावा गलत है. क्योंकि जब जबलपुर जिला प्रशासन की टीम ने पुस्तक विक्रेताओं और स्कूल संचालकों से पुस्तकों में डले आईएसबीएन नंबर के बारे में जानकारी मांगी थी तब पुस्तक विक्रेता और स्कूल संचालक यह जानकारी नहीं दे पाए. आईएसबीएन नंबर की अनिवार्यता जरूरी नहीं है, यह बात ठीक है लेकिन गलत आईएसबीएन नंबर क्यों डाले गए. इसका जवाब भी जब नहीं मिला तब आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की गई.

जबलपुर। मध्य प्रदेश सरकार ने एक आदेश निकाला था. इसके तहत निजी स्कूलों के पुस्तकों की फीस और ड्रेस मैटेरियल की साठगांठ की जांच की जानी थी. इसके तहत जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कुछ स्कूलों की जांच की. साथ ही सबसे बड़ी जांच पुस्तकों के आईएसबीएन नंबर की थी. दरअसल, आईएसबीएन नंबर किसी भी पुस्तक की यूनिक आइडेंटिटी होती है, जिसका महत्व राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होता है. जबलपुर में जिला प्रशासन ने जब पुस्तकों की जांच की तो कई पुस्तकों में आईएसबीएन फर्जी मिला. इस आधार पर कुटरचित दस्तावेज बनाने का मुकदमा प्रकाशकों के खिलाफ बनाया गया. कई प्रकाशकों के खिलाफ FIR दर्ज की गई. करीब 50 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है. इनमें कई लोग गिरफ्तार हो गए हैं और कई लोगों के खिलाफ वारंट जारी है.

द फेडरेशन ऑफ एजुकेशन पब्लिशर ऑफ़ इंडिया का पत्र

इसी बीच में द फेडरेशन ऑफ एजुकेशन पब्लिशर ऑफ़ इंडिया का एक पत्र सामने आया है, जिसमें फेडरेशन के महासचिव गोपाल शर्मा ने जबलपुर जिला प्रशासन से मांग की है कि जिस आईएसबीएन नंबर के आधार पर पब्लिशर के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए हैं, दरअसल, कानून के तहत उसकी अनिवार्यता नहीं है. यह जरूरी नहीं है कि पाठ्यक्रम में जो पुस्तक इस्तेमाल की जा रही है, उसे आईएसबीएन नंबर लेना ही हो. इसमें यह भी बताया गया है कि पहले आईएसबीएन नंबर ऑनलाइन नहीं थे. इसलिए पुस्तकों में जो आईएसबीएन नंबर मिले हैं, जरूरी नहीं है कि वह ऑनलाइन चेक किया जा सकें. इसलिए इस आधार पर जो मुकदमे बनाए गए हैं उन्हें वापस लिया जाए.

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इस मामले में एक और पत्र जारी किया गया है, जो भारत सरकार के आईएसबीएन नंबर जारी करने वाली संस्था के अधिकारी के जे बोबडे ने लिखा है. इसमें यह कहा गया है कि आईएसबीएन से जुड़ी हुई तमाम जानकारी पोर्टल पर उपलब्ध हैं. इसमें यह कहा गया है कि दरअसल आईएसबीएन नंबर पुस्तकों की यूनिक आइडेंटिटी के लिए बनाया गया था, ताकि कोई इसी तरह की दूसरी पुस्तक ना बन सके. यह पत्र जबलपुर कलेक्टर को भेजा गया है. इसमें प्रकाशको का दावा है कि उन्होंने कोई गड़बड़ी नहीं की.

जिला शिक्षा अधिकारी क्या बोले

इस मामले में जबलपुर जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम सोनी का कहना है बुक पब्लिशर का दावा गलत है. क्योंकि जब जबलपुर जिला प्रशासन की टीम ने पुस्तक विक्रेताओं और स्कूल संचालकों से पुस्तकों में डले आईएसबीएन नंबर के बारे में जानकारी मांगी थी तब पुस्तक विक्रेता और स्कूल संचालक यह जानकारी नहीं दे पाए. आईएसबीएन नंबर की अनिवार्यता जरूरी नहीं है, यह बात ठीक है लेकिन गलत आईएसबीएन नंबर क्यों डाले गए. इसका जवाब भी जब नहीं मिला तब आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की गई.

Last Updated : Jun 14, 2024, 7:17 PM IST
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