JABALPUR BOOK FAIR: प्रदेश सरकार ने निजी स्कूलों की पुस्तक और ड्रेस की लूट को खत्म करने के लिए निजी स्कूलों पर कार्रवाई करने के आदेश दिए थे. हालांकि, यह आदेश कुछ देरी से लागू हुए. लेकिन फिर भी जबलपुर में इन आदेशों का कड़ाई से पालन किया गया. इसी बीच जिला प्रशासन ने एक मेले का आयोजन किया है जिसमें बहुत सी दुकान लगाई गई हैं. जिन पर पाठ्य पुस्तकें मिल रही हैं. इस पर लोगों का कहना है कि जिला प्रशासन लेट हो गया है. अब 90% से ज्यादा अभिभावकों ने पुस्तक और ड्रेस खरीद ली हैं, ऐसी स्थिति में मेला लगाने का कोई औचित्य नहीं है.
जल्दी लिया जाता निर्णय तो और बेहतर होता
जबलपुर जिला प्रशासन ने निजी स्कूलों, पुस्तकों और ड्रेस विक्रेताओं की साठगांठ को तोड़ने के लिए एक पुस्तक मेले का आयोजन किया है. निजी स्कूलों की इस साठगांठ को खत्म करने के लिए यह एक अच्छा प्रयास है. इसी मेले में पहुंचे एक अभिभावक योगेंद्र ने हमें बताया कि सरकार को यदि यह प्रयास करना था तो 1 अप्रैल के पहले करती. क्योंकि 1 अप्रैल से निजी स्कूल खुल जाते हैं और बच्चों की कॉपी-किताब 1 अप्रैल के पहले ही खरीद ली जाती है. ऐसी स्थिति में जब लगभग 95% छात्र-छात्राओं की पुस्तकें खरीदी जा चुकी हैं. तब इस पुस्तक मेले का आयोजन बहुत सार्थक नहीं रहेगा. लोगों का कहना है कि अगले साल से इसका आयोजन मार्च के महीने में किया जाए.
मेले में नहीं मिली कुछ स्कूलों की पुस्तकें
वहीं इसी पुस्तक मेले में हमारी मुलाकात आलोक तिवारी से हुई. आलोक तिवारी का बच्चा सेंट्रल एकेडमी नाम के स्कूल में पढ़ता है और सेंट्रल अकादमी ने इन्हें जिन पुस्तकों को खरीदने की लिस्ट दी है मेले में नहीं मिल रही हैं. इसलिए आलोक तिवारी का कहना है कि मेले के बारे में उन्होंने काफी कुछ सुना था लेकिन उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ.
कलेक्टर ने कहा, जो मेले में नहीं मिलेगा वह स्कूल में नहीं चलेगा
जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कहा, ' जो पुस्तक मेले में नहीं मिलेगी, वह पुस्तक स्कूल में नहीं चलेगी.' दरअसल कलेक्टर दीपक सक्सेना ने एक आदेश जारी किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि पुस्तक सर्व सुलभ होनी चाहिए और किसी एक नियत दुकान पर ही पुस्तक मिलेगी, यदि ऐसी शिकायत सही पाई गई तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी. कल तक मेले में बहुत सी पुस्तक उपलब्ध नहीं थी लेकिन अब पुस्तक विक्रेता यहां सभी पुस्तक उपलब्ध करवा रहे हैं.
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जबलपुर जिला प्रशासन ने बेशक बहुत अच्छी कार्रवाई की है, लेकिन यही कार्रवाई यदि फरवरी के महीने में हो जाती तो जबलपुर के 100% अभिभावकों को फायदा हो जाता. क्योंकि अप्रैल के महीने में स्कूल शुरू हो गए हैं और अब ज्यादातर लोगों ने कापी-किताबें और ड्रेस खरीद ली हैं. ऐसी स्थिति में मेला केवल एक आयोजन बनकर रह गया है यदि यह प्रयास आने वाले सालों में भी जारी रहा तो स्कूल की मोनोपोली तोड़ने में सफलता मिलेगी .