बस्ती : एक बार फिर से बस्ती जिले में यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए पूर्व छात्र नेता रहे दुर्गादत्त पांडे ने पहल शुरू की है. उनके निवेदन पर अब तक 10 से अधिक जनप्रतिनिधि और शिक्षा के जानकारों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है, जिसमें बीजेपी के कई विधायक और सांसद भी शामिल हैं. अब बस्ती जनपद में यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए हर्रैया विधानसभा के भाजपा विधायक अजय सिंह ने विधानसभा में नियम 51 के तहत सवाल लगाया है, जिसमें योगी सरकार के मंत्री इस प्रकरण में अपना जवाब देंगे.
बस्ती जिला महान साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जन्मस्थली रही है. इसके बावजूद जिले में उनके नाम पर किसी खास चीज की स्थापना नहीं की गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी इस मामले को लेकर प्रतिनिधि मंडल मिल चुका है. लगातार एक अभियान चलाकर हर वर्ग को इससे जोड़ा जा रहा है ताकि विश्वविद्यालय की मांग को प्रबल तरीके से पूरी कराया जा सके.
हिन्दी साहित्य के पुरोधा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के नाम पर हिन्दी विश्वविद्यालय बनाने की मांग तेज हो गई है. पिछले कई वर्षों से यह मांग की जा रही है. इसी क्रम में हर्रैया विधायक अजय सिंह ने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के नाम पर हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना के संदर्भ में नियम 51 के अंतर्गत सूचना देकर वक्तव्य की मांग की. इसके उत्तर में विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप कुमार दुबे ने पत्र जारी कर जानकारी दी है कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उक्त सूचना को वक्तव्य के लिए स्वीकार किया गया है.
सदन में वक्तव्य दिए जाने के लिए 2 अगस्त 2024 की तिथि निर्धारित की गई है. विश्वविद्यालय की मांग कर रहे विधायक अजय सिंह सहित अन्य लोगों का कहना है कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है और उनका जन्म जनपद बस्ती की पवित्र धरा पर हुआ है, इसलिए उनके सम्मान और योगदान को देखते हुए हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना बस्ती में अति आवश्यक है.
विधायक अजय सिंह ने कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखकर इतिहास लेखन और समीक्षा, आलोचना को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठा दी. वे हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ निबंधकार, मूर्धन्य आलोचक, निष्पक्ष इतिहासकार एवं युग प्रवर्तक थे. उन्होंने हिन्दी निबंध को नया आयाम देकर उसे ठोस धरातल पर प्रतिष्ठित किया. विधायक अजय सिंह ने बताया कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के नाम से विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए लंबे समय से मांग चल रही है. दुर्गादत्त पाण्डेय के साथ ही अनेक शिक्षक, छात्र निरंतर इस मांग को लेकर सरकार से रचनात्मक पहल का आग्रह करते रहे हैं.
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