भोपाल। पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव नोया से निकली मणिमाला की कहानी आपको इसलिए जाननी चाहिए कि कोई स्त्री अगर चाहे लीक से हटकर चलने का हौसला दिखाए, तो कैसे धारणाओं मान्यताओं को किनारे करके पूरी दुनिया नाप आती है. पटुआ चित्रकारी की सिद्धहस्त कलाकार मणिमाला मुसलमान हैं और हिंदू पौराणिक कथाएं पहले गीतों पर बुनती हैं और फिर रंगों को चुनकर उन्हें किस्सा-किस्सा कैनवास पर उतारती हैं. किसी सिनेमा की तरह एक पूरा चित्र कई छोटी छोटी कथाओं से पूरा होता है.
गीतों से उतारकर रंगों की धार्मिक कथाओं को कहने की ये विधा केवल पुरुषों के हाथ में थी. मणिमाला अपने गांव की पहली अकेली महिला चित्रकार हैं. जिसने अपने दादाजी से चोरी-चोरी इसे सीखा और फिर एक दिन हाथ में कूची थामे अपने नाम मणिमाला के आगे लिख दिया चित्रकार. मणिमाला भोपाल के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में इस पारंपरिक चित्रकारी को स्थाई करने के काम में जुटी हैं.
मणिमाला ने कूची थामी और पूछा मैं क्यों नहीं
मणिमाला चित्रकार हैं और उनके मुताबिक चित्रकार का मजहब रंग होता है और उसकी कलाकारी. इसलिए मुस्लिम परिवार में जन्म के बाद जब मणिमाला बंगाल में राम के वनवास और कृष्ण राधा के प्रेम की कथाएं बांग्ला में गाती हैं और कथाओं में इसे कैनवास पर बनाती हैं. तो वाकई वो धर्म के दायरे तोड़कर बाहर खड़ी हो जाती हैं. हालांकि बंगाल की इस ढाई हजार साल पुरानी पटुआ कला के लिए खुद मणिमाला ने कम संघर्ष नहीं किया. पिटाई भी सही और ताने भी. जिस समाज में लड़कियों को देहरी से बाहर आने की बंदिश हो. वहां मणिमाला ने पहले चोरी-चोरी हिंदू पौराणिक कथाओं के गीत सीखे, फिर उन्हें कैनवास पर उतारा और फिर पटुआ की चित्रकारी के आकाश को विस्तार देती गईं.
मणिमाला बताती हैं, 'यह आसान नहीं था, दादा जी से गाना सुनती थीं. धीरे-धीरे सीखा, लेकिन लड़कियों के लिए चित्रकारी बनाने की बंदिश थी. मैंने बहुत लड़ाई लड़ी कि पुरुष ही क्यों औरत क्यों नहीं, आखिरकार मैंने पटुआ चित्रकारी सीख ही ली.
मुस्लिम हिंदू नहीं मणिमाला केवल इंसान है
मुस्लिम हैं आप लेकिन हिंदू देवी-देवताओं की कथाएं गाती हैं. इस सवाल पर मणिमाला कहती हैं,' मैं चित्रकार हूं और उससे पहले एक इंसान हूं. मेरे चित्रों में राम के वनवास की कथा भी है और राधा की प्रतीक्षा भी. मां दुर्गा की शक्ति की कहानियां भी मैंने उतारी है. ये पटुआ चित्रकारी विधा ही ऐसी है. इसमें सिनेमा की तरह पूरे चित्र में एक-एक दृश्य दिखाया जाता है. वो अपने चित्र दिखाते हुए कहती हैं, ये देखिए कैसे एक-एक हिस्से में एक-एक कहानी है. खास बात ये है कि मैं सारे नेचुरल कलर्स से इन्हें बनाती हूं.' मणिमाला इन दिनों भोपाल के राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में इस पटुआ कला को स्थाई देने में जुटी हैं. यहां दीवारों पर वो इस चित्रकला की एक पूरी कहानी उतार रही हैं.
पटुआ कला सिखाने आधी दुनिया घूम चुकी है
मणिमाला को इस कला के लिए पश्चिम बंगाल सरकार में कई पुरस्कार भी मिले. इस ढाई हजार साल पुरानी कहन वाली चित्रकारी की बदौलत ये चित्रकार अमरिका, लंदन, न्यूजीलैंड, आकलैण्ड, थाईलैड, लिथउनिया, बुडापेस्ट, हंगरी और बांग्लादेश जैसे तमाम देशों की यात्रा कर चुकी हैं. मणिमाला कहती हैं मैंने आधी दुनिया घूम ली. भारत तो पूरा है. ऐसे तो कोई ख्वाहिश बची नहीं लेकिन मैं अब ये चाहती हूं कि ये कला बेटियों के हाथों में आगे बढ़े. मेरे गांव की लड़कियां ढाई हजार साल पुरानी पौराणिक कथाओं की इस चित्रकारी को आगे बढ़ाएं. राम कृष्ण की कथाएं मेरी तरह सुने गुने और दुनिया तक पहुंचाएं.