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अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस : हिंदी के लिए राजस्थान ने बलिदान दिया, लेकिन अपनी भाषा के लिए आज तक कर रहा संघर्ष

International Mother Language Day, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम क्षेत्रों की संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा के साथ ही भाषाई, सांस्कृतिक विविधता और मातृभाषाओं के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण के लिए हर साल 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बलिदान देने वाला राजस्थान आज भी अपनी मातृभाषा के लिए जद्दोजहद कर रहा है...

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 21, 2024, 6:49 AM IST

Updated : Feb 21, 2024, 7:21 AM IST

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

जयपुर. 21 फरवरी को पूरे विश्व में 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है. दुनिया में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देने के लिए, साथ ही साथ, मातृभाषाओं से जुड़ी जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है. इस खास दिन राजस्थान की बात करें तो यहां भी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए लगातार मांग के साथ समय समय पर आंदोलन भी हुए, लेकिन केन्द्र सरकार ने अब तक राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं दी. जबकि एक वक्त देश में हिंदी भाषा को राष्ट्रीय मान्यता मिले, इसके लिए राजस्थान ने अपनी मातृभाषा राजस्थानी का त्याग किया था.

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस इतिहास : राजस्थानी भाषा को लेकर काम करने वाले आखर राजस्थानी के संयोजक प्रमोद शर्मा बताते हैं कि 21 फरवरी को पूरे विश्व में 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है. बचपन में घर पर सीखी गई पहली भाषा, उसकी मातृभाषा हुई. वहीं, जब विश्व स्तर पर कुछ ताकतें हावी हुईं तो उन्होंने अपनी भाषा को थोपने का काम किया. इसको लेकर कई तरह के आंदोलन हुए, लेकिन मौजूदा परिपेक्ष के लिहाज से देखें तो भारत देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ. हुन्दुओं के धर्म के लिहाज से एक भारत, दूसरा मुस्लिम धर्म के आधार पर पाकिस्तान बनाया. पाकिस्तान ने अपनी भाषा को उर्दू करार दिया, लेकिन बाद में अब पाकिस्तान के दो हिस्से थे पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान, जिसे अब बांग्लादेश के तौर पर पहचाना जाता है. वहां उनकी भाषा बंगलादेशी थी, तब एक आवाज उठी की जबरदस्ती उर्दू क्यों पढ़ें?

पढ़ें. मातृभाषा दिवस : जानें, भारत में कितनी भाषाओं का है प्रचलन

आज ही के दिन हुआ था नरसंहार : 1952 में ढ़ाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक विरोध प्रदर्शन किया. यह विरोध प्रदर्शन बहुत जल्द एक नरसंहार में बदल गया, जब तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसा दी. इस घटना में 16 लोगों की जान गई थी. प्रमोद शर्मा बताते हैं कि आजादी के कई आंदोलन हुए, लेकिन भाषा के लिए पहली बार कोई इस तरह का आंदोलन हुआ.

भाषा के इस बड़े आंदोलन में शहीद हुए लोगों की याद में 1999 में यूनेस्को ने पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की थी. नरसंहार 21 फरवरी को हुआ था, इसलिए हर साल इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. इस दिन का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम क्षेत्रों की संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा के साथ ही भाषाई, सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषावाद का प्रचार और दुनियाभर की तमाम मातृभाषाओं के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण है.

हिंदी के लिए राजस्थान ने दिया बलिदान : प्रमोद शर्मा बताते हैं कि मातृभाषा का अर्थ है मां की भाषा, यानी यह जीवन की पहली भाषा है, जो हम अपनी बचपन से सीखते हैं. आमतौर पर जो भाषा घरों में बोली जाती है, जिसे हम बचपन से सुनते हैं उसे मातृभाषा कहते हैं. देश में हजारों मातृभाषा हैं, क्योंकि हर छोटे-छोटे क्षेत्र में अलग-अलग तरह की भाषाएं बोली जाती हैं. मुख्य रूप से देश में संस्कृत, हिंदी, उर्दू, पंजाबी, बांग्ला, भोजपुरी, इंग्लिश समेत तमाम ऐसी भाषाएं हैं, जो प्रचलित हैं, लेकिन मातृभाषा इससे भिन्न ही होती है. देश के कई राज्यों में हिंदी भाषा बोली जाती है, लेकिन इन राज्यों में भी मातृभाषा अलग-अलग हो सकती है. राजस्थान में भी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए लम्बे समय से मांग उठती रही है.

जब देश के आजादी का आंदोलन था तो पूरे भारत में कांग्रेस के नेता बार-बार आते जाते थे. वो हिंदी भाषा बोलते थे, संपर्क की भाषा हिंदुस्तानी हो गई थी. वहीं, कुछ राज्यों में जिस भाषा में बात होती उस भाषा को मातृभाषा बना दिया गया. राजस्थान में भी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने का आग्रह किया तो सामने आया कि जब सभी अलग-अलग भाषा बोलेंगे तो हिंदी को जगह नहीं मिलेगी. ऐसे में उस वक्त राजस्थानी ने अपना बलिदान दिया.

पढे़ं. Special: अल्लाह जिलाई बाई का वो मांड गायन जो बन गया कालजयी, लेकिन राजस्थानी भाषा को आज भी नहीं मिला संवैधानिक दर्जा

स्वार्थ के बीच अटकी मान्यता : प्रमोद शर्मा बताते हैं कि राजस्थान प्रशासनिक सेवा में बाहर के प्रदेशों से भी लोग बहुत आए. राजस्थानी भाषा की मान्यता की बात आती है तो उन्हें लगता है कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल गई तो प्रदेश में राजस्थानी राजकाज की भाषा हो जाएगी. इसके बाद राजस्थानी जानना उनके लिए जरूरी होगा, जो परीक्षा का पेपर होगा उसमे राजस्थानी जरूरी होगा. इसलिए वो नहीं चाहते कि राजस्थान में राजस्थानी भाषा को मान्यता मिले. राजस्थान में हर क्षेत्र में अलग-अलग भाषा बोली जाती जाती है, लेकिन उन्हें कई बार समझाया भी जा चुका है वो भाषा नहीं बल्कि बोली है. दूसरा बड़ा कारण राजस्थानी भाषा के लिए कोई बड़ा राजनितिक आंदोलन भी नहीं हुआ. कुछ सामाजिक संगठनों की ओर से अपने अपने स्तर पर अलग अलग कार्यकर्मों के जरिए मांग उठती रहती है, उसी कड़ी में आखर राजस्थानी की ओर से भी हर साल कार्यक्रम के जरिए ये प्रयास जारी है. इस तरह के कार्यक्रम के जरिए युवा पीढ़ी को हमारी भाषा और संस्कृति से जोड़ कर भी रखा जा रहा है.

आज नहीं तो कल, मान्यता जरूर मिलेगी : प्रमोद शर्मा कहते हैं कि बड़ी विडंबना है कि एक तरफ अलग-अलग तर्क के जरिए राजस्थानी भाषा को मान्यता देने से रोका जाता है, जबकि केंद्रीय साहित्य अकादमी की ओर से राजस्थानी भाषा का पुरस्कार हर साल दिया जाता है. राजस्थानी भाषा में जो साहित्य लिखा जा रहा है उसके लिए बड़ा पुरस्कार है. राजस्थानी में अनुवाद का पुरस्कार है, राजस्थानी में युवा पुरस्कार है, तीन-तीन पुरस्कार केंद्र सरकार देती है. जब उनकी नजर में राजस्थानी भाषा नहीं है तो साहित्य अकादमी पुरस्कार क्यों देती है? उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में उसी की बात सुनी जाती है जो सड़क रोक देता है, तोड़फोड़ करता है, राजकीय संपत्ति को जलाता है, आंदोलन से लगता है कि बड़ी महत्व की बात है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति शांति से अपनी बात की बात रखता है तो सरकार उस पर ध्यान नहीं देती. फिर भी हमें विश्वास है कि आज नहीं तो कल मांग जरूर पूरी होगी.

यह पत्थर कौन सी चोट से टूटता ये तो वक्त बताएगा, लेकिन मान्यता जरूर मिलेगी. बता दें कि भारत के संविधान में भारतीय भाषाओं का उल्लेख है, जिसके तहत वर्तमान समय में भारत देश में 22 संवैधानिक भाषाएं हैं. इसमें हिंदी, संस्कृत, असमिया, बांग्ला, कन्नड़, पंजाबी, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, उड़िया, सिंधी, उर्दू, बोडो, मलयालम, कश्मीरी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, संथाली, मैथिली, डोगरी शामिल हैं. हालांकि, देश में हिंदी और अंग्रेजी अधिकारी रूप से राजभाषा हैं. यही नहीं भारत देश में हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले लोगों की संख्या करीब 32 करोड़ है, जो कुल जनसंख्या का करीब 27 फीसदी है.

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

जयपुर. 21 फरवरी को पूरे विश्व में 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है. दुनिया में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देने के लिए, साथ ही साथ, मातृभाषाओं से जुड़ी जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है. इस खास दिन राजस्थान की बात करें तो यहां भी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए लगातार मांग के साथ समय समय पर आंदोलन भी हुए, लेकिन केन्द्र सरकार ने अब तक राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं दी. जबकि एक वक्त देश में हिंदी भाषा को राष्ट्रीय मान्यता मिले, इसके लिए राजस्थान ने अपनी मातृभाषा राजस्थानी का त्याग किया था.

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस इतिहास : राजस्थानी भाषा को लेकर काम करने वाले आखर राजस्थानी के संयोजक प्रमोद शर्मा बताते हैं कि 21 फरवरी को पूरे विश्व में 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है. बचपन में घर पर सीखी गई पहली भाषा, उसकी मातृभाषा हुई. वहीं, जब विश्व स्तर पर कुछ ताकतें हावी हुईं तो उन्होंने अपनी भाषा को थोपने का काम किया. इसको लेकर कई तरह के आंदोलन हुए, लेकिन मौजूदा परिपेक्ष के लिहाज से देखें तो भारत देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ. हुन्दुओं के धर्म के लिहाज से एक भारत, दूसरा मुस्लिम धर्म के आधार पर पाकिस्तान बनाया. पाकिस्तान ने अपनी भाषा को उर्दू करार दिया, लेकिन बाद में अब पाकिस्तान के दो हिस्से थे पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान, जिसे अब बांग्लादेश के तौर पर पहचाना जाता है. वहां उनकी भाषा बंगलादेशी थी, तब एक आवाज उठी की जबरदस्ती उर्दू क्यों पढ़ें?

पढ़ें. मातृभाषा दिवस : जानें, भारत में कितनी भाषाओं का है प्रचलन

आज ही के दिन हुआ था नरसंहार : 1952 में ढ़ाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक विरोध प्रदर्शन किया. यह विरोध प्रदर्शन बहुत जल्द एक नरसंहार में बदल गया, जब तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसा दी. इस घटना में 16 लोगों की जान गई थी. प्रमोद शर्मा बताते हैं कि आजादी के कई आंदोलन हुए, लेकिन भाषा के लिए पहली बार कोई इस तरह का आंदोलन हुआ.

भाषा के इस बड़े आंदोलन में शहीद हुए लोगों की याद में 1999 में यूनेस्को ने पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की थी. नरसंहार 21 फरवरी को हुआ था, इसलिए हर साल इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. इस दिन का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम क्षेत्रों की संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा के साथ ही भाषाई, सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषावाद का प्रचार और दुनियाभर की तमाम मातृभाषाओं के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण है.

हिंदी के लिए राजस्थान ने दिया बलिदान : प्रमोद शर्मा बताते हैं कि मातृभाषा का अर्थ है मां की भाषा, यानी यह जीवन की पहली भाषा है, जो हम अपनी बचपन से सीखते हैं. आमतौर पर जो भाषा घरों में बोली जाती है, जिसे हम बचपन से सुनते हैं उसे मातृभाषा कहते हैं. देश में हजारों मातृभाषा हैं, क्योंकि हर छोटे-छोटे क्षेत्र में अलग-अलग तरह की भाषाएं बोली जाती हैं. मुख्य रूप से देश में संस्कृत, हिंदी, उर्दू, पंजाबी, बांग्ला, भोजपुरी, इंग्लिश समेत तमाम ऐसी भाषाएं हैं, जो प्रचलित हैं, लेकिन मातृभाषा इससे भिन्न ही होती है. देश के कई राज्यों में हिंदी भाषा बोली जाती है, लेकिन इन राज्यों में भी मातृभाषा अलग-अलग हो सकती है. राजस्थान में भी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए लम्बे समय से मांग उठती रही है.

जब देश के आजादी का आंदोलन था तो पूरे भारत में कांग्रेस के नेता बार-बार आते जाते थे. वो हिंदी भाषा बोलते थे, संपर्क की भाषा हिंदुस्तानी हो गई थी. वहीं, कुछ राज्यों में जिस भाषा में बात होती उस भाषा को मातृभाषा बना दिया गया. राजस्थान में भी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने का आग्रह किया तो सामने आया कि जब सभी अलग-अलग भाषा बोलेंगे तो हिंदी को जगह नहीं मिलेगी. ऐसे में उस वक्त राजस्थानी ने अपना बलिदान दिया.

पढे़ं. Special: अल्लाह जिलाई बाई का वो मांड गायन जो बन गया कालजयी, लेकिन राजस्थानी भाषा को आज भी नहीं मिला संवैधानिक दर्जा

स्वार्थ के बीच अटकी मान्यता : प्रमोद शर्मा बताते हैं कि राजस्थान प्रशासनिक सेवा में बाहर के प्रदेशों से भी लोग बहुत आए. राजस्थानी भाषा की मान्यता की बात आती है तो उन्हें लगता है कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल गई तो प्रदेश में राजस्थानी राजकाज की भाषा हो जाएगी. इसके बाद राजस्थानी जानना उनके लिए जरूरी होगा, जो परीक्षा का पेपर होगा उसमे राजस्थानी जरूरी होगा. इसलिए वो नहीं चाहते कि राजस्थान में राजस्थानी भाषा को मान्यता मिले. राजस्थान में हर क्षेत्र में अलग-अलग भाषा बोली जाती जाती है, लेकिन उन्हें कई बार समझाया भी जा चुका है वो भाषा नहीं बल्कि बोली है. दूसरा बड़ा कारण राजस्थानी भाषा के लिए कोई बड़ा राजनितिक आंदोलन भी नहीं हुआ. कुछ सामाजिक संगठनों की ओर से अपने अपने स्तर पर अलग अलग कार्यकर्मों के जरिए मांग उठती रहती है, उसी कड़ी में आखर राजस्थानी की ओर से भी हर साल कार्यक्रम के जरिए ये प्रयास जारी है. इस तरह के कार्यक्रम के जरिए युवा पीढ़ी को हमारी भाषा और संस्कृति से जोड़ कर भी रखा जा रहा है.

आज नहीं तो कल, मान्यता जरूर मिलेगी : प्रमोद शर्मा कहते हैं कि बड़ी विडंबना है कि एक तरफ अलग-अलग तर्क के जरिए राजस्थानी भाषा को मान्यता देने से रोका जाता है, जबकि केंद्रीय साहित्य अकादमी की ओर से राजस्थानी भाषा का पुरस्कार हर साल दिया जाता है. राजस्थानी भाषा में जो साहित्य लिखा जा रहा है उसके लिए बड़ा पुरस्कार है. राजस्थानी में अनुवाद का पुरस्कार है, राजस्थानी में युवा पुरस्कार है, तीन-तीन पुरस्कार केंद्र सरकार देती है. जब उनकी नजर में राजस्थानी भाषा नहीं है तो साहित्य अकादमी पुरस्कार क्यों देती है? उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में उसी की बात सुनी जाती है जो सड़क रोक देता है, तोड़फोड़ करता है, राजकीय संपत्ति को जलाता है, आंदोलन से लगता है कि बड़ी महत्व की बात है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति शांति से अपनी बात की बात रखता है तो सरकार उस पर ध्यान नहीं देती. फिर भी हमें विश्वास है कि आज नहीं तो कल मांग जरूर पूरी होगी.

यह पत्थर कौन सी चोट से टूटता ये तो वक्त बताएगा, लेकिन मान्यता जरूर मिलेगी. बता दें कि भारत के संविधान में भारतीय भाषाओं का उल्लेख है, जिसके तहत वर्तमान समय में भारत देश में 22 संवैधानिक भाषाएं हैं. इसमें हिंदी, संस्कृत, असमिया, बांग्ला, कन्नड़, पंजाबी, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, उड़िया, सिंधी, उर्दू, बोडो, मलयालम, कश्मीरी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, संथाली, मैथिली, डोगरी शामिल हैं. हालांकि, देश में हिंदी और अंग्रेजी अधिकारी रूप से राजभाषा हैं. यही नहीं भारत देश में हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले लोगों की संख्या करीब 32 करोड़ है, जो कुल जनसंख्या का करीब 27 फीसदी है.

Last Updated : Feb 21, 2024, 7:21 AM IST
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