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किसान क्यों करने लगे जेनेटिकली मोडिफाइड बीज का विरोध, इसके नुकसान समझिए

जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) बीज के नुकसान बताकर किसानों ने इंदौर सांसद शंकर लालवानी को ज्ञापन सौंपा. इन पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है.

genetically modified seeds
जेनेटिकली मोडिफाइड बीज का विरोध (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 2 hours ago

इंदौर : फसलों की उन्नत नस्ल बताकर बीज किसानों को बेचा जा रहा है. ये बीज किसानों के लिए मुसीबत बन चुके हैं. यही वजह है कि बीटी कॉटन और बीटी बैगन उगाने के बाद आई परेशानियों के चलते अब जीएम (जेनेटिकली मोडिफाइ) बीज का विरोध होने लगा है. इसी मुद्दे को लेकर शुक्रवार को भारतीय किसान संघ ने इंदौर में सांसद शंकर लालवानी को ज्ञापन सौंपा है. इसमें जीएम बीज की बिक्री रोकने की मांग की गई है.

भारतीय किसान संघ ने जीएम सीड्स के नुकसान बताए

बता दें कि मालवा-निमाड़ समेत सहित पूरे प्रदेश में इस समय बोवनी का दौर जारी है. ऐसी स्थिति में कई बीज उत्पादक कंपनियां अब कपास समेत अन्य फसलों के जेनेटिकली मोडिफाइड बीज बेच रही हैं. इसको लेकर किसानों और खासकर भारतीय किसान संघ को खासी आपत्ति है. भारतीय किसान संघ के प्रांताध्यक्ष लक्ष्मीनारायण पटेल का कहना है "जीएम बीज देश में आवश्यक नहीं हैं. यह रासायनिक खेती, पर्यावरण और किसानों के लिए हानिकारक हैं. जीएम फसलों के कारण जैव विविधता में गिरावट आ सकती है और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ सकती है. बीटी कपास बीटी बैंगन इसका उदाहरण हैं."

किसानों ने इंदौर सांसद शकर लालवानी को सौंपा ज्ञापन (ETV BHARAT)

इंदौर सांसद शंकर लालवानी ने सुनी किसानों की समस्या

भारतीय किसान संघ ने इंदौर सांसद से मांग की है कि जीएम नीति पर केंद्र सरकार से अपने स्तर पर चर्चा करें और इस पर तुरंत रोक लगाएं. बीज पर राष्ट्रीय नीति तैयार होनी चाहिए. किसानों का कहना है कि यदि हमारी मांग नहीं मानी तो आंदोलन किया जाएगा. किसानों के दल ने इंदौर सांसद शंकर लालवानी को अपनी समस्या बताई. इस दौरान सांसद शंकर लालवानी ने कहा "जीएम बीज प्रकृति के लिए खतरनाक है. वह इस मामले में वे स्वयं कृषि मंत्री से बात करेंगे और इन बीजों पर तुरंत रोक लगाने की मांग भी उठाएंगे."

क्या है जेनेटिकली मोडिफाइड बीज

जेनेटिकली मोडिफाइड बीज बनाने के लिए टिश्यू कल्चर, म्यूटेशन और नए सूक्ष्म जीवों के जरिए किसी भी पौधे में नए जीन का प्रवेश कराया जाता है. इससे नई फसल प्रजाति विकसित की जाती है. इस प्रक्रिया में पौधे में मनचाहे गुणों का समावेश किया जाता है, जो प्राकृतिक रूप से उस पौधे में नहीं होते हैं. ऐसे पौधे कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधक होते हैं. हालांकि इन बीजों को लेकर परेशानी यह है कि इन्हें एक बार ही बोया जा सकता है, दूसरी बार बोने पर पैदावार आधी रह जाती है.

इंदौर : फसलों की उन्नत नस्ल बताकर बीज किसानों को बेचा जा रहा है. ये बीज किसानों के लिए मुसीबत बन चुके हैं. यही वजह है कि बीटी कॉटन और बीटी बैगन उगाने के बाद आई परेशानियों के चलते अब जीएम (जेनेटिकली मोडिफाइ) बीज का विरोध होने लगा है. इसी मुद्दे को लेकर शुक्रवार को भारतीय किसान संघ ने इंदौर में सांसद शंकर लालवानी को ज्ञापन सौंपा है. इसमें जीएम बीज की बिक्री रोकने की मांग की गई है.

भारतीय किसान संघ ने जीएम सीड्स के नुकसान बताए

बता दें कि मालवा-निमाड़ समेत सहित पूरे प्रदेश में इस समय बोवनी का दौर जारी है. ऐसी स्थिति में कई बीज उत्पादक कंपनियां अब कपास समेत अन्य फसलों के जेनेटिकली मोडिफाइड बीज बेच रही हैं. इसको लेकर किसानों और खासकर भारतीय किसान संघ को खासी आपत्ति है. भारतीय किसान संघ के प्रांताध्यक्ष लक्ष्मीनारायण पटेल का कहना है "जीएम बीज देश में आवश्यक नहीं हैं. यह रासायनिक खेती, पर्यावरण और किसानों के लिए हानिकारक हैं. जीएम फसलों के कारण जैव विविधता में गिरावट आ सकती है और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ सकती है. बीटी कपास बीटी बैंगन इसका उदाहरण हैं."

किसानों ने इंदौर सांसद शकर लालवानी को सौंपा ज्ञापन (ETV BHARAT)

इंदौर सांसद शंकर लालवानी ने सुनी किसानों की समस्या

भारतीय किसान संघ ने इंदौर सांसद से मांग की है कि जीएम नीति पर केंद्र सरकार से अपने स्तर पर चर्चा करें और इस पर तुरंत रोक लगाएं. बीज पर राष्ट्रीय नीति तैयार होनी चाहिए. किसानों का कहना है कि यदि हमारी मांग नहीं मानी तो आंदोलन किया जाएगा. किसानों के दल ने इंदौर सांसद शंकर लालवानी को अपनी समस्या बताई. इस दौरान सांसद शंकर लालवानी ने कहा "जीएम बीज प्रकृति के लिए खतरनाक है. वह इस मामले में वे स्वयं कृषि मंत्री से बात करेंगे और इन बीजों पर तुरंत रोक लगाने की मांग भी उठाएंगे."

क्या है जेनेटिकली मोडिफाइड बीज

जेनेटिकली मोडिफाइड बीज बनाने के लिए टिश्यू कल्चर, म्यूटेशन और नए सूक्ष्म जीवों के जरिए किसी भी पौधे में नए जीन का प्रवेश कराया जाता है. इससे नई फसल प्रजाति विकसित की जाती है. इस प्रक्रिया में पौधे में मनचाहे गुणों का समावेश किया जाता है, जो प्राकृतिक रूप से उस पौधे में नहीं होते हैं. ऐसे पौधे कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधक होते हैं. हालांकि इन बीजों को लेकर परेशानी यह है कि इन्हें एक बार ही बोया जा सकता है, दूसरी बार बोने पर पैदावार आधी रह जाती है.

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