जयपुर: भारत की दिव्यांग क्रिकेट टीम श्रीलंका में हो रही चैंपियंस ट्रॉफी में भाग लेने के लिए रवाना हुई है. इस क्रिकेट टीम का अभ्यास शिविर राजधानी जयपुर के जयपुरिया क्रिकेट ग्राउंड पर आयोजित हो रहा था, जिसके बाद बुधवार रात टीम मुंबई के लिए रवाना हुई और मुंबई के बाद टीम श्रीलंका पहुंचेगी. राजस्थान रणजी टीम के पूर्व खिलाड़ी रोहित झालानी इस टीम के हेड कोच हैं और उन्हीं की देखरेख में खिलाड़ी जयपुर में अभ्यास कर रहे थे.
इस क्रिकेट टीम में कुछ ऐसे खिलाड़ी भी शामिल हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने क्रिकेट टैलेंट का लोहा बनवाया है. भले ही शारीरिक रूप से यह खिलाड़ी उतने सशक्त नहीं हों, लेकिन इसके बाद भी इनका खेल किसी सामान्य क्रिकेट खिलाड़ी से कम नहीं है. इतना ही नहीं, कुछ खिलाड़ी तो सामान्य क्रिकेट खिलाड़ियों के साथ भी काफी मैच खेल चुके हैं और भारत में ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी अपने क्रिकेट टैलेंट को दिखाया है.
जयपुर फुट लगाकर खेल रहे क्रिकेट : जोधपुर के रहने वाले सुरेंद्र कुमार भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम का हिस्सा हैं. सुरेंद्र बताते हैं कि बचपन से ही उनका एक पैर विकसित नहीं हुआ, लेकिन उनमें क्रिकेट खेलने की ललक थी उनके बड़े भाई क्रिकेट खेला करते थे तो वह भी उनके साथ बल्ले और गेंद के साथ मैदान पर उतर जाते थे, लेकिन एक पैर में परेशानी होने के कारण लोग उन्हें कहते थे कि तुम क्रिकेट नहीं खेल सकते. हालांकि, सुरेंद्र ने ठान लिया कि मुझे क्रिकेट में नाम कमाना है और वहां से सुरेंद्र की क्रिकेट की यात्रा शुरू हुई.
सुरेंद्र कुमार का कहना है कि बीते 8 साल से वह क्रिकेट खेल रहे हैं और कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं खेल चुके हैं. इसके अलावा नेपाल सीरीज के लिए भी उनका सिलेक्शन भारतीय टीम के लिए हुआ और वहां शानदार प्रदर्शन करने के बाद इंग्लैंड के लिए भारतीय टीम का हिस्सा रहे. सुरेंद्र कुमार सलामी बल्लेबाज है और जब मैदान पर उतरते हैं तो लंबे-लंबे छक्के लगाने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने बताया कि उनकी एक यादगार पारी भी है जब उन्होंने केरल के खिलाफ सेंचुरी ठोकी थी और इस पारी में उन्होंने 120 रन बनाए.
बल्लेबाजों में पवन का खौफ : इस भारतीय टीम का हिस्सा हरियाणा के पवन कुमार भी बने हैं. लेफ्ट आर्म स्पिनर पवन कुमार रविंद्र जडेजा को अपना आदर्श मानते हैं. भले ही पवन डिसएबल क्रिकेटर हों, लेकिन उनकी गेंदबाजी का खौफ साधारण क्रिकेट खेलने वाले बेहतरीन बल्लेबाजों में भी है. पवन कुमार बताते हैं कि पढ़ाई में मैं इतना अच्छा नहीं था, लेकिन क्रिकेट को मैंने अपना करियर चुना. हमारे गांव में क्रिकेट कोच एबल यानी सामान्य लोगों को क्रिकेट की ट्रेनिंग दिया करते थे.
ऐसे में मेरीभी इच्छा हुआ करती थी कि मैं भी क्रिकेट खेलूं ऐसे में मैने भी क्रिकेट खेलना और सीखना शुरू किया. पवन का कहना है कि मुझे एक बार फील्डिंग करने का मौका मिला. फील्डिंग के बाद मुझे उसी मैच में बल्लेबाजी करने का भी मौका दिया गया और मैंने दोनों ही क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया. पवन सामान्य लोगों के साथ भी क्रिकेट खेला करते हैं और अभी तक पूरे देश में अलग-अलग स्थान पर सामान्य क्रिकेट मुकाबलो में खेल चुके हैं.
एक क्रिकेट टूर्नामेंट ने बदली जिंदगी : भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम के उप कप्तान रविंद्र गोपीनाथ शिंदे का भी क्रिकेट से जुड़ाव भी काफी लंबे समय तक रहा है. इंग्लैंड में आयोजित हुए वर्ल्ड कप में रविंद्र भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा थे और फाइनल में खेली गई उनकी पारी के बदौलत ही भारत ने यह वर्ल्ड कप जीता था. रविंद्र बताते हैं कि पहले वह टेनिस बॉल से क्रिकेट खेला करते थे, लेकिन उसे समय डिसएबल क्रिकेटर्स के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन लेदर बॉल से किया गया और उसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई. इस टूर्नामेंट में रविंद्र की मुलाकात रवि पाटिल से हुई जो मौजूदा भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम के असिस्टेंट कोच भी हैं. रविंद्र बताते हैं कि रवि पाटिल ने ही उन्हें क्रिकेट की बारीकियां के बारे में सिखाया इसके बाद रविंद्र का चयन महाराष्ट्र की टीम के लिए हुआ और टीम में शानदार प्रदर्शन करने के बाद रवींद्र भारतीय टीम का हिस्सा बने. इंग्लैंड में आयोजित हुए वर्ल्ड कप में रविंद्र मैन ऑफ द सीरीज रहे थे.