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राजस्थान में मसालों का बंपर उत्पादन फिर भी स्पाइसेज बोर्ड मेहरबान नहीं, विशेष नीति का इंतजार - SPICES PRODUCTION

राजस्थान में मसाला फसलों का उत्पादन बढ़ा है, लेकिन किसानों और व्यापारियों को इसका पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है. जानिए क्यों.

राजस्थान में मसालों का बंपर उत्पादन
राजस्थान में मसालों का बंपर उत्पादन (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 11, 2025, 6:32 AM IST

Updated : Feb 11, 2025, 7:02 AM IST

जोधपुर : राजस्थान में मसाला फसलों का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है, जिससे सालाना कारोबार 20 हजार करोड़ रुपए से अधिक हो गया है. इसके बावजूद, स्पाइसेज बोर्ड ने अब तक प्रदेश के लिए कोई विशेष नीति नहीं बनाई है. दिलचस्प बात यह है कि जहां मसालों से जुड़ी नीतियां बनाई जाती हैं, वहां मसालों का कुल कारोबार मात्र तीन हजार करोड़ रुपए का है.

राजस्थान के लिए विशेष नीति की जरूरत : व्यापारी बनवारीलाल अग्रवाल का कहना है कि पहले केरल में मसाला फसलों की खेती सबसे अधिक होती थी, इसलिए कोच्चि में स्पाइसेज बोर्ड का मुख्यालय स्थापित किया गया, लेकिन अब राजस्थान मसाला उत्पादन में अग्रणी है, इसलिए यहां के मसालों को बढ़ावा देने के लिए बोर्ड को अलग से नीति बनानी चाहिए. एक ऐसा कार्यालय राजस्थान में खोला जाए, जो स्थानीय उत्पादन को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सके.

इसे भी पढ़ें- राजस्थान के हाड़ौती में फैली धनिए की खुशबू, बढ़ा रकबा, फिर भी कम हुई बुआई

कसूरी मैथी अब भी मसालों की श्रेणी से बाहर : राजस्थान में बड़े पैमाने पर कसूरी मेथी का उत्पादन होता है, लेकिन इसे अभी तक मसालों की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया है, जबकि सूखी मेथी को मसाले के रूप में गिना जाता है. व्यापारियों का कहना है कि स्पाइसेज बोर्ड का मुख्य कार्य बाजार तैयार करना और निर्यात को बढ़ावा देना है, लेकिन राजस्थान में इस दिशा में प्रभावी प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. पिछले 20 वर्षों में राजस्थान में मसाला फसलों का उत्पादन तेजी से बढ़ा है. यहां जीरा, ईसबगोल, मेथी, धनिया, अजवायन, मिर्च और सौंफ का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है. देश का 70% से अधिक जीरा और 90% सौंफ राजस्थान में पैदा होती है. यह हजारों करोड़ रुपए के व्यापार का केंद्र बन चुका है.

नागौरी मेथी को पहचान का इंतजार : नागौर जिले में पान मेथी का सबसे अधिक उत्पादन होता है. यहां हर साल 10 से 12 लाख बोरी मेथी पैदा होती है, जिसका उपयोग देशभर के होटलों और घरों में किया जाता है. इसके बावजूद, नागौरी मेथी को अब तक जीआई टैग नहीं मिला है और स्पाइसेज बोर्ड ने इसे मसालों की सूची में भी शामिल नहीं किया है, यदि इस दिशा में नीति बनाई जाए, तो यह क्षेत्र और तेजी से विकास कर सकता है.

इसे भी पढ़ें- कसूरी मेथी के नाम से बिक रही नागौरी पान मेथी को जल्द मिलेगी स्वदेशी पहचान

राजस्थान एसोसिएशन ऑफ स्पाइसेज के अध्यक्ष श्याम जाजू के अनुसार, स्पाइसेज बोर्ड का मुख्यालय कोच्चि में है, जहां से मसालों की मार्केटिंग होती है, यदि राजस्थान में भी ऐसी व्यवस्था बनाई जाए, तो किसानों और व्यापारियों को सीधा लाभ मिलेगा. राजस्थान में ऑर्गेनिक (IPM) जीरा बड़े पैमाने पर उत्पादित होता है, जिसकी मार्केटिंग पर ध्यान दिया जाए तो निर्यात में वृद्धि हो सकती है. वर्तमान में राजस्थान से मसालों का निर्यात काफी कम है. यहां के मसाले दूसरे राज्यों में ले जाए जाते हैं और वहां से निर्यात किए जाते हैं. केंद्र और राज्य सरकार को इस दिशा में कदम उठाने चाहिए, ताकि स्पाइसेज बोर्ड राजस्थान के लिए अलग से नीति बनाए और प्रदेश के मसाला उद्योग को वैश्विक पहचान मिल सके.

जोधपुर : राजस्थान में मसाला फसलों का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है, जिससे सालाना कारोबार 20 हजार करोड़ रुपए से अधिक हो गया है. इसके बावजूद, स्पाइसेज बोर्ड ने अब तक प्रदेश के लिए कोई विशेष नीति नहीं बनाई है. दिलचस्प बात यह है कि जहां मसालों से जुड़ी नीतियां बनाई जाती हैं, वहां मसालों का कुल कारोबार मात्र तीन हजार करोड़ रुपए का है.

राजस्थान के लिए विशेष नीति की जरूरत : व्यापारी बनवारीलाल अग्रवाल का कहना है कि पहले केरल में मसाला फसलों की खेती सबसे अधिक होती थी, इसलिए कोच्चि में स्पाइसेज बोर्ड का मुख्यालय स्थापित किया गया, लेकिन अब राजस्थान मसाला उत्पादन में अग्रणी है, इसलिए यहां के मसालों को बढ़ावा देने के लिए बोर्ड को अलग से नीति बनानी चाहिए. एक ऐसा कार्यालय राजस्थान में खोला जाए, जो स्थानीय उत्पादन को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सके.

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कसूरी मैथी अब भी मसालों की श्रेणी से बाहर : राजस्थान में बड़े पैमाने पर कसूरी मेथी का उत्पादन होता है, लेकिन इसे अभी तक मसालों की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया है, जबकि सूखी मेथी को मसाले के रूप में गिना जाता है. व्यापारियों का कहना है कि स्पाइसेज बोर्ड का मुख्य कार्य बाजार तैयार करना और निर्यात को बढ़ावा देना है, लेकिन राजस्थान में इस दिशा में प्रभावी प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. पिछले 20 वर्षों में राजस्थान में मसाला फसलों का उत्पादन तेजी से बढ़ा है. यहां जीरा, ईसबगोल, मेथी, धनिया, अजवायन, मिर्च और सौंफ का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है. देश का 70% से अधिक जीरा और 90% सौंफ राजस्थान में पैदा होती है. यह हजारों करोड़ रुपए के व्यापार का केंद्र बन चुका है.

नागौरी मेथी को पहचान का इंतजार : नागौर जिले में पान मेथी का सबसे अधिक उत्पादन होता है. यहां हर साल 10 से 12 लाख बोरी मेथी पैदा होती है, जिसका उपयोग देशभर के होटलों और घरों में किया जाता है. इसके बावजूद, नागौरी मेथी को अब तक जीआई टैग नहीं मिला है और स्पाइसेज बोर्ड ने इसे मसालों की सूची में भी शामिल नहीं किया है, यदि इस दिशा में नीति बनाई जाए, तो यह क्षेत्र और तेजी से विकास कर सकता है.

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राजस्थान एसोसिएशन ऑफ स्पाइसेज के अध्यक्ष श्याम जाजू के अनुसार, स्पाइसेज बोर्ड का मुख्यालय कोच्चि में है, जहां से मसालों की मार्केटिंग होती है, यदि राजस्थान में भी ऐसी व्यवस्था बनाई जाए, तो किसानों और व्यापारियों को सीधा लाभ मिलेगा. राजस्थान में ऑर्गेनिक (IPM) जीरा बड़े पैमाने पर उत्पादित होता है, जिसकी मार्केटिंग पर ध्यान दिया जाए तो निर्यात में वृद्धि हो सकती है. वर्तमान में राजस्थान से मसालों का निर्यात काफी कम है. यहां के मसाले दूसरे राज्यों में ले जाए जाते हैं और वहां से निर्यात किए जाते हैं. केंद्र और राज्य सरकार को इस दिशा में कदम उठाने चाहिए, ताकि स्पाइसेज बोर्ड राजस्थान के लिए अलग से नीति बनाए और प्रदेश के मसाला उद्योग को वैश्विक पहचान मिल सके.

Last Updated : Feb 11, 2025, 7:02 AM IST
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